Arvind Kejriwal and Manish Sisodia: दिल्ली चुनाव 2025 के बाद अरविंद केजरीवाल और वरिष्ठ नेता मनीष सिसोदिया ने सियासत से दूरी बना ली है। आम आदमी पार्टी की पूरी जिम्मेदारी दिल्ली की पूर्व सीएम आतिशी ने अपने कंधों पर उठा ली है।
Arvind Kejriwal and Manish Sisodia: दिल्ली विधानसभा चुनाव का परिणाम आने के बाद एक ओर जहां अरविंद केजरीवाल ने चुप्पी साध ली है। वहीं आम आदमी पार्टी के वरिष्ठ नेता मनीष सिसोदिया ने भी सियासत से दूरी बनाकर रखी। एक समय हर छोटी-बड़ी बात पर सोशल मीडिया से लेकर प्रेस कॉन्फ्रेंस तक जनता का ध्यान खींचने वाले नेताओं की चुप्पी पर हर कोई हैरान है। दिल्ली चुनाव में मिली हार के बाद इन दोनों नेताओं ने न तो कोई सियासी बयान दिया है और न ही कोई ऐसी पहल की। जिससे यह दोनों नेता फिर से चर्चा में आ सकें। हालांकि अरविंद केजरीवाल पिछले दिनों एक बार चर्चा में जरूर आए। जब वो विपश्यना के लिए पंजाब रवाना हुए। उस दौरान उनकी भारी भरकम सुरक्षा को लेकर सियासी गलियारों में चर्चा जरूर शुरू हुई, लेकिन मनीष सिसोदिया तो पूरे राजनीतिक परिदृश्य से ही गायब रहे। हालांकि अब मनीष सिसोदिया ने खुद इसकी जानकारी दी है। आइए जानते हैं।
दिल्ली चुनाव के बाद राजनीतिक रूप से मौन हुए मनीष सिसोदिया ने अपनी पिछले दिनों की यात्रा की जानकारी दी है। उन्होंने अपने सोशल मीडिया अकाउंट ‘X’ पर बताया “पिछले 11 दिन से मैं राजस्थान के एक गांव में विपश्यना ध्यान शिविर में था। मौन, एकांत, और अपने ही अंतर्मन का अवलोकन। फोन भी बंद था, बाहरी दुनिया से पूरी तरह कटा हुआ। आज सुबह ही शिविर पूरा हुआ। विपश्यना शिविर में अपने चित्त को समझने और निर्मल बनाने की जो आध्यात्मिक प्रगति मिलती है, वह तो अद्भुत है ही… लेकिन शिविर की सबसे प्रभावशाली और विशेष बात जो मुझे लगती है, वह है दस दिनों का मौन। पूर्ण मौन।”
उन्होंने आगे लिखा “विपश्यना सिर्फ ध्यान नहीं, एक गहरी आध्यात्मिक यात्रा है। दिन में 12+ घंटे केवल अपनी सांसों को देखना, बिना किसी प्रतिक्रिया के बस अपने मन और शरीर को समझना। गौतम बुद्ध की वही सीख- चीजों को वैसे ही देखना, जैसी वे वास्तव में हैं, न कि जैसी हम उन्हें देखना चाहते हैं।”
मनीष सिसोदिया ने सोशल मीडिया पर लिखा “इस यात्रा में कोई संवाद नहीं। न फोन, न किताबें, न लेखन, न ही किसी से नज़रों का सामना। यहां तक कि किसी से आँखें मिलाने या इशारों में बात करने की भी मनाही। बस, आप और आपका अंतर्मन। पहले कुछ दिन दिमाग़ भागता है, बेचैन होता है, लेकिन धीरे-धीरे समय ठहरने लगता है। एक अजीब-सी शांति हर हलचल के बीच जन्म लेने लगती है। तब समझ में आता है कि हम दिनभर अपने ही दिमाग़ में कितना बोलते रहते हैं। और तभी यह भी स्पष्ट समझ में आता है कि उपनिषद क्यों कहते हैं-परमात्मा मौन है। परमात्मा की भाषा मौन है। तुम भी मौन हो जाओ, परमात्मा और कोई भाषा जानता नहीं।”
उन्होंने आगे लिखा “सबसे दिलचस्प बात यह लगी कि शिविर में 75% लोग 20-35 वर्ष की उम्र के थे। जब आख़िरी दिन बातचीत की, तो पता चला कि सफलता की दौड़ थकान, उलझती ज़िंदगियाँ और भीतर की बेचैनी उन्हें इतनी कम उम्र में ही इस राह पर ले आई है। उनकी शिकायत थी कि जिस शिक्षा ने उन्हें सफलता की इस दौड़ के लायक़ बनाया है उसमें इस थकान और इन उलझनों से निपटने का मंत्र भी सिखा दिया जाता तो हर पढ़े लिखे इंसान की ज़िंदगी कितनी खुशहाल भी हो सकती है।”
मनीष सिसोदिया ने विपश्यना की जानकारी देते हुए कहा “मुझे ख़ुशी है कि दिल्ली का शिक्षा मंत्री रहते हुए स्कूलों मे हैप्पीनेस पाठ्यक्रम के तहत रोज़ाना हर बच्चे के लिए #HappinessClass शुरू करा सका। यह शिक्षा के मानवीयकरण की दिशा में एक बड़ा कदम है जिसका ज़िक्र विपासना ध्यान में दस दिन बिताने के बाद के बाद ये युवा कर रहे थे।”
सिसोदिया ने आगे लिखा “आज शाम तक दिल्ली लौटूँगा, नई ऊर्जा और नए जोश के साथ। और संकल्प वही—देश के हर बच्चे को शानदार शिक्षा मिले। अच्छी शिक्षा हर बच्चे को न सिर्फ़ सफल बल्कि एक बेहतर इंसान बनाए। शिक्षा के मानवीयकरण का काम भी तो आगे बढ़ाना है और हां, अगर जीवन में आपको भी कभी मौका मिले, तो 10 दिन का यह अनुभव ज़रूर लें। यह केवल चित्त की शांति का मार्ग नहीं, बल्कि स्वयं को जानने का एक दुर्लभ अवसर है। मेडिटेशन कोर्स का विवरण यहाँ देख सकते हैं।”