नई दिल्ली

यहां जो भी मुख्यमंत्री रहा, उसकी सरकार गई! क्या अब बदलेगी शापित बंगले की कहानी?

Delhi Jinx Bungalow: 2003 में तत्कालीन श्रम मंत्री दीप चंद बंधु ने इस बंगले की बदनामी को चुनौती दी। वह यह कहते हुए यहां रहने आए कि घर बुरा नहीं होता, इंसान का इरादा मायने रखता है, लेकिन कुछ ही महीनों बाद एक गंभीर बीमारी ने उनकी जान ले ली। उसके बाद से यह बंगला लगभग वीरान पड़ा है।

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दिल्ली के सरकारी भूत बंगले की क‌‌हानी।

Delhi Jinx Bungalow: दिल्ली के सिविल लाइंस इलाके में स्थित 33, श्याम नाथ मार्ग का वह भव्य लेकिन वीरान बंगला, जो बीते दो दशकों से रहस्यों और अंधविश्वासों की परतों में लिपटा हुआ है, एक बार फिर चर्चा में है। दिल्ली के समाज कल्याण मंत्री रविंदर इंद्रज ने इस ऐतिहासिक बंगले को अपना नया निवास बनाने की इच्छा जताई है। सवाल यह है कि क्या वह इस बंगले की मनहूस छवि को मिटा पाएंगे या फिर यह बंगला अपने ‘शापित’इतिहास की नई कड़ी जोड़ने वाला है? दरअसल, 1920 के दशक में बना यह दो मंजिला औपनिवेशिक बंगला, कभी सत्ता और वैभव का प्रतीक हुआ करता था।

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दिल्ली के पहले सीएम को आवंटित हुआ था बंगला

दिल्ली के पहले मुख्यमंत्री चौधरी ब्रह्म प्रकाश को 1952 में इसे आवंटित किया गया था। लेकिन उनका कार्यकाल समय से पहले समाप्त हो गया और यहीं से शुरू हुई इस बंगले की 'बदकिस्मती' की कहानी। कहते हैं, इतिहास खुद को दोहराता है। और इस बंगले ने शायद इसी बात को सच साबित किया। 1993 में जब दिल्ली को राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र (NCT) का दर्जा मिला, तब यह बंगला तत्कालीन मुख्यमंत्री मदन लाल खुराना को मिला। लेकिन कुछ ही समय में हवाला घोटाले के आरोपों ने उनकी कुर्सी छीन ली। अफवाहों का बाजार गर्म हुआ और यह बंगला 'शापित' घोषित कर दिया गया।

दिल्ली के सरकारी भूत बंगले की कहानी।

साहब सिंह वर्मा से भी जुड़ा है इतिहास

इसके बाद साहब सिंह वर्मा ने इसे केवल कैंप ऑफिस की तरह इस्तेमाल किया, हालांकि उन्होंने इसमें रहने का जोखिम नहीं उठाया। इसके बावजूद साहब सिंह वर्मा अपना कार्यकाल पूरा नहीं कर पाए। इसके बाद दिल्ली की मुख्यमंत्री बनी कांग्रेस नेता शीला दीक्षित ने तो इस बंगले के भीतर कदम रखने से ही इनकार कर दिया। उन्होंने अपने पुराने मथुरा रोड स्थित आवास को ही चुना। इसके बाद धीरे-धीरे इस बंगले की छवि 'मनहूस घर' के रूप में स्थायी होती चली गई।

आखिरी किरायेदार और बंगले की खामोशी

2003 में तत्कालीन श्रम मंत्री दीप चंद बंधु ने इस बंगले की बदनामी को चुनौती देने का फैसला किया। इसके बाद वह यह कहते हुए यहां रहने आए कि घर बुरा नहीं होता, इंसान का इरादा मायने रखता है, लेकिन नियति जैसे उनके फैसले से सहमत नहीं थी। कुछ ही महीनों बाद एक गंभीर बीमारी ने उनकी जान ले ली। उसके बाद से यह बंगला लगभग वीरान पड़ा है।

2013 में वरिष्ठ आईएएस अधिकारी शक्ति सिन्हा ने इसे अल्प समय के लिए अपना घर बनाया, लेकिन सेवानिवृत्ति के बाद वह भी इसे छोड़कर चले गए। उसके बाद इस बंगले ने कई नए रूप अपनाए। कभी राज्य अतिथि गृह तो कभी दिल्ली डायलॉग एंड डेवलपमेंट कमीशन (DDDC) का ऑफिस। मगर 2022 में DDDC के भंग होने के साथ ही यह बंगला फिर से सुनसान हो गया।

अब नया अध्याय शुरू होने की उम्मीद

अब समाज कल्याण मंत्री रविंदर इंद्रज इस बंगले को नया जीवन देने का विचार कर रहे हैं। वर्तमान में वह 8, राज निवास मार्ग पर रहते हैं, लेकिन नया ठिकाना तलाश रहे हैं। लोक निर्माण विभाग (PWD) के अधिकारियों ने जब उन्हें 33 श्याम नाथ मार्ग का विकल्प दिखाया तो उन्होंने इसे खुद जाकर देखा भी। हालांकि, इंद्रज ने अभी इसे पूरी तरह स्वीकार नहीं किया है। उन्होंने HT को बताया "मेरे कार्यालय ने बंगला देखा है, लेकिन अभी कोई पक्का प्लान नहीं है।"

दिल्ली के सरकारी भूत बंगले की पूरी कहानी।

क्या कहता है मनोविज्ञान?

मनोविज्ञान के अनुसार, ऐसे शापित स्थानों की कहानियां सामूहिक अवचेतन (Collective Subconscious) और स्वयं पूर्ण भविष्यवाणी (Self-Fulfilling Prophecy) की उपज होती हैं। जब किसी स्थान को बार-बार मनहूस कहा जाता है तो उससे जुड़ा भय और संदेह लोगों के मन में गहराई से बैठ जाता है। यह मनोवैज्ञानिक दबाव त्वरित निर्णयों, रहने वालों के व्यवहार और होने वाली घटनाओं को प्रभावित करता है। व्यक्ति जाने-अनजाने परिणाम को वही रूप दे देता है, जिससे वह डरता है। यानी, मनुष्य का डर ऐसी कहानियों पर विश्वास कर लेता है, जिनका कोई अस्तित्व नहीं होता या फिर उनके पीछे कोई अन्य कारण होता है। शुभ या अशुभ लोग अपने अनुसार तय कर लेते हैं।

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