हाईकोर्ट ने कहा है कि यदि कोई पत्नी जानबूझकर अपनी आय और रोजगार की स्थिति छिपाती है, तो वह गुजारा भत्ता पाने की हकदार नहीं है।
दिल्ली हाईकोर्ट ने एक अहम फैसले में साफ किया है कि यदि पत्नी जानबूझकर अपनी आय और रोजगार से जुड़ी जानकारी छुपाती है, तो वह घरेलू हिंसा से महिलाओं का संरक्षण अधिनियम, 2012 (PWDV Act) के तहत भरण-पोषण की हकदार नहीं होगी। हालांकि कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि इससे पति की पत्नी और नाबालिग बच्चे को रहने की व्यवस्था उपलब्ध कराने की कानूनी जिम्मेदारी खत्म नहीं होती।
न्यायमूर्ति स्वर्ण कांता शर्मा (Justice Swarana Kanta Sharma) की एकल पीठ ने अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश (तीस हजारी कोर्ट) के एक आदेश के खिलाफ दायर आपराधिक पुनरीक्षण याचिका पर सुनवाई की।
हाईकोर्ट ने सत्र न्यायालय के उस फैसले को बरकरार रखा, जिसमें पत्नी को दिया गया मौद्रिक गुजारा भत्ता रद्द कर दिया गया था। कोर्ट ने पाया कि पत्नी ने अपनी वित्तीय स्थिति से संबंधित महत्वपूर्ण तथ्यों को छिपाया था।
कोर्ट ने गौर किया कि याचिकाकर्ता पत्नी के पिछले वर्षों के आयकर रिटर्न (ITR) से पता चला कि उसकी आय 3 लाख रुपये से अधिक थी। जबकि महिला ने दावा किया था कि उसके पास आय का कोई स्रोत नहीं है।
हाईकोर्ट ने निष्कर्ष निकाला कि वित्तीय जानकारी छिपाने के कारण वह व्यक्तिगत खर्चों के लिए अंतरिम गुजारा भत्ता पाने की हकदार नहीं है।
दोनों की शादी 19 फरवरी 2012 को हुई थी और जनवरी 2013 में उनके बेटे का जन्म हुआ। सितंबर 2020 में पत्नी ने घरेलू हिंसा और दहेज उत्पीड़न के आरोप लगाते हुए PWDV Act की धारा 12 के तहत शिकायत दर्ज कराई थी। उसने यह भी बताया था कि वह जुलाई 2020 से अपने नाबालिग बेटे के साथ अलग रह रही है। ट्रायल कोर्ट ने नवंबर 2020 में अंतरिम रूप से 30,000 रुपये मासिक भरण-पोषण दिया था, जिसे अप्रैल 2022 में संशोधित कर पत्नी और बच्चे को 15-15 हजार रुपये प्रतिमाह कर दिया गया।
इसके बाद दोनों पक्षों ने सत्र अदालत का रुख किया। 5 अप्रैल 2024 को अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश ने पत्नी की बढ़ोतरी की अपील खारिज कर दी और पति की अपील स्वीकार करते हुए पत्नी को मिलने वाला भरण-पोषण रद्द कर दिया, जबकि बच्चे के लिए दी जा रही राशि को बरकरार रखा। अदालत ने माना कि पत्नी ने अपनी आय और रोजगार से जुड़ी अहम जानकारी छुपाई थी। इसी आदेश को चुनौती देते हुए पत्नी दिल्ली हाईकोर्ट पहुंची।
दिल्ली हाईकोर्ट ने सत्र न्यायालय के आदेश में आंशिक संशोधन करते हुए एक महत्वपूर्ण टिप्पणी की। कोर्ट ने पत्नी के व्यक्तिगत गुजारा भत्ते को रद्द करने के फैसले को बरकरार रखा, लेकिन PWDV Act की धारा 19 के तहत उसके निवास के अधिकार को उचित ठहराया।
कोर्ट ने पति को निर्देश दिया कि वह याचिकाकर्ता पत्नी को किराए पर आवास लेने के लिए विशेष रूप से प्रति माह 10,000 रुपये दे, ताकि वह अपने और नाबालिग बच्चे के लिए सुरक्षित आवास सुनिश्चित कर सके।
वहीँ, नाबालिग बच्चे के लिए निचली अदालत द्वारा दिया गया प्रति माह 15,000 रुपये का अंतरिम गुजारा भत्ता अपरिवर्तित रखा गया है, क्योंकि पति द्वारा इसे चुनौती नहीं दी गई थी। कोर्ट ने इस बात पर जोर दिया कि बच्चे के कल्याण और बुनियादी आवास की जरूरतों की सुरक्षा सर्वोपरि है।