Tis Hazari Court: दिल्ली की तीस हजारी कोर्ट ने आरोपी पिता को आजीवन कारावास और 20 हजार रुपये जुर्माने की सजा सुनाई है। मामला 23 अप्रैल 2019 का है।
Tis Hazari Court: दिल्ली के मुंडका इलाके में सात साल की मासूम बेटी के लिए हैवान बने पिता को कोर्ट ने आजीवन कारावास की सजा सुनाई है। इसके साथ ही आरोपी पर 20 हजार रुपये जुर्माना भी लगाया है। दिल्ली की तीस हजारी कोर्ट की अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश सौम्या चौहान की अदालत ने दोषी पिता विराज राय को भारतीय दंड संहिता की धारा 302 के तहत दोषी ठहराते हुए गंभीर टिप्पणी की। साथ ही कहा कि जुर्माना न चुकाने की स्थिति में आरोपी को छह माह की अतिरिक्त सजा भुगतनी होगी।
सजा सुनाते हुए अदालत ने कहा कि पिता का पहला कर्तव्य अपनी संतान को आर्थिक, भावनात्मक और शारीरिक सुरक्षा प्रदान करना होता है, लेकिन इस मामले में दोषी ने अपने कर्तव्य को त्यागते हुए रक्षक से भक्षक का रूप धारण कर लिया। कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि आरोपी ने अपनी पत्नी के चरित्र पर शक करते हुए ही बेटी का गला घोंटकर हत्या की थी। यह दर्दनाक वारदात 23 अप्रैल 2019 को हुई थी। आरोपी विराज राय अपनी पत्नी के चरित्र पर शक करता था। घटना से एक दिन पहले दोनों ने आपसी सहमति से अलग होने का फैसला किया था। लेकिन अगले ही दिन विराज ने अपनी सात साल की बेटी की हत्या कर दी।
पुलिस के अनुसार, आरोपी अपनी पत्नी से अपमान का बदला लेना चाहता था, क्योंकि उसे लगता था कि उसकी पत्नी का किसी अन्य पुरुष से अवैध संबंध है। इसीलिए वह उसे छोड़कर प्रेमी के साथ रहना चाहती है। इसको लेकर दोनों में बहस हुई। इसके बाद पत्नी ने उससे अलग होने की बात कही। इसे आरोपी अपना अपमान समझ रहा था। हालांकि बाद में उसे पछतावा हुआ तो उसने फोन पर पत्नी से माफी मांगी, लेकिन बेटी की मौत से उसकी पत्नी को गहरा सदमा लगा। इसके बाद पत्नी ने आरोपी पति पर बेटी की हत्या का मुकदमा दर्ज कराया।
सुनवाई के दौरान आरोपी के वकील ने अदालत से सजा में नरमी बरतने की अपील की। उनका कहना था कि 47 वर्षीय विराज राय परिवार का इकलौता कमाने वाला सदस्य है और जेल जाने से पहले वह एक निजी कंपनी में हाउसकीपिंग का काम करता था, जहां उसे करीब 13 हजार रुपये मासिक वेतन मिलता था। वकील ने दलील दी कि आरोपी का कोई आपराधिक इतिहास नहीं है और उसने पूरे ट्रायल के दौरान अच्छा आचरण बनाए रखा।
वहीं अभियोजन पक्ष ने इस अपराध को गंभीर और जघन्य बताते हुए अदालत से दोषी को फांसी की सजा देने की मांग की। लेकिन अदालत ने इसे "दुर्लभ से दुर्लभतम श्रेणी" का मामला मानने से इनकार कर दिया। कोर्ट ने आदेश में कहा कि हत्या के बाद भी आरोपी अपनी बच्ची को अस्पताल लेकर गया था और पत्नी को फोन कर रोते हुए माफी भी मांगी थी। अदालत के अनुसार यह उसके पछतावे का संकेत है, इसलिए इसे मृत्युदंड का मामला नहीं माना जा सकता।