नोएडा

एसटीएफ ने तोड़ा 100 करोड़ के स्कैम का जाल: एमबीए, सीएस और बैंकिंग प्रोफेशनलों की गैंग ने कई राज्यों में फैला रखा था नेटवर्क

Noida News: नोएडा एसटीएफ ने बिल्डरों और बैंक कर्मियों की मिलीभगत से चल रहे 100 करोड़ रुपये के होम-लोन घोटाले का भंडाफोड़ किया है। टीम ने आठ आरोपियों को गिरफ्तार किया, जिनमें एमबीए, कंपनी सेक्रेटरी और बैंकिंग प्रोफेशनल शामिल हैं।

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Dec 06, 2025
एसटीएफ ने तोड़ा 100 करोड़ के स्कैम का जाल: Image Source - Pexels

Noida stf busts 100 crore home loan scam: नोएडा एसटीएफ ने एक विशाल वित्तीय धोखाधड़ी का खुलासा करते हुए ऐसे गैंग का भंडाफोड़ किया है, जिसने बिल्डरों और बैंक कर्मचारियों की मिलीभगत से होम लोन के नाम पर 100 करोड़ रुपये से अधिक की ठगी कर डाली। एसटीएफ ने गिरोह के सरगना रामकुमार सहित आठ लोगों को गिरफ्तार किया है। पकड़े गए आरोपी अलग-अलग पेशेवर बैकग्राउंड से आते हैं, कंपनी सेक्रेटरी, एमबीए, बैंकिंग विशेषज्ञ, कानूनी पढ़ाई कर चुके सदस्य और वित्तीय प्रक्रियाओं में प्रशिक्षित लोग हैं। इन सभी ने मिलकर वर्षों तक नकली प्रोफाइल, फर्जी दस्तावेज़ और अस्तित्वहीन संपत्तियों के सहारे करोड़ों रुपये का लोन पास कराया।

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एचडीएफसी बैंक अधिकारी की शिकायत से खुली परतें

इस घोटाले का भंडाफोड़ तब शुरू हुआ जब एचडीएफसी बैंक के एक वरिष्ठ अधिकारी ने संदिग्ध लोन प्रोसेसिंग की शिकायत दर्ज कराई। मामला एसटीएफ को सौंपा गया। बृहस्पतिवार दोपहर सूरजपुर थाना क्षेत्र में की गई कार्रवाई में एसटीएफ ने गिरोह के सभी आठ सक्रिय सदस्यों को धर दबोचा। जांच में सामने आया कि गैंग कई राज्यों में फर्जी नामों और दस्तावेज़ों के आधार पर लोगों की संपत्तियों पर करोड़ों के लोन मंजूर करवा चुका था।

गिरफ़्तार आरोपी और जब्त सामान की चौंकाने वाली लिस्ट

एसटीएफ की टीम ने गिरफ्तार आरोपियों की पहचान रामकुमार (गैंग लीडर), अनुज यादव, नितिन जैन, अशोक उर्फ दीपक, मोहम्मद वसी, शमशाद आलम, इंद्रकुमार कर्माकर और ताहिर हुसैन के रूप में की। इनके कब्जे से 126 बैंक चेकबुक-पासबुक, 170 डेबिट कार्ड, 45 आधार कार्ड, 27 पैन कार्ड, कई नकली रजिस्ट्री दस्तावेज, 5 वोटर आईडी, 26 मोबाइल फोन, 3 लैपटॉप और 3 लग्जरी गाड़ियाँ बरामद की गईं। एसटीएफ ने गैंग से जुड़े 220 से अधिक बैंक खातों को भी फ्रीज कर दिया है।

जालसाजी का तरीका: नकली बिल्डर, फर्जी खरीदार और झूठे प्रोजेक्ट

गैंग बड़े पैमाने पर व्यवस्थित तरीके से ठगी को अंजाम देता था। सबसे पहले फर्जी बिल्डर की कंपनी और नकली प्रोजेक्ट तैयार किया जाता था। इसके बाद किसी निवेशक या खरीदार की प्रोफाइल बनाई जाती थी और बैंक जाकर होम लोन मंजूर कराया जाता था। जैसे ही लोन राशि खाते में आती, आरोपी पूरा नेटवर्क गायब हो जाता। कई बार बिल्डरों से साठगांठ करके भी फर्जी फ्लैटों या अस्तित्वहीन संपत्तियों पर लोन पास करा लिया जाता था।

कैसे जुटाते थे डेटा और बनाते थे फर्जी दस्तावेज़

पुलिस के अनुसार, आरोपी पहले किसी व्यक्ति की निजी जानकारी निकालते थे और फिर उसके आधार पर नकली आधार कार्ड, पैन कार्ड और अन्य दस्तावेज तैयार करते थे। इन्हें अलग-अलग बैंकों में जमा कराकर लोन प्रोसेसिंग को आगे बढ़ाया जाता था। बिल्डरों की मिलीभगत से अप्रूवल प्रक्रिया आसान हो जाती थी। लोन खाते में पहुँचते ही नकली प्रोफाइल हमेशा के लिए गायब हो जाती।

गैंग का पुराना कनेक्शन

गिरोह का सदस्य अनिल शर्मा मार्च में दिल्ली ईओडब्ल्यू द्वारा एलआईसी हाउसिंग को 1.25 करोड़ रुपये का फर्जी होम लोन ठगने के आरोप में गिरफ्तार किया गया था। जांच में पता चला कि यह मामला भी उसी बड़े नेटवर्क से जुड़ा है जिसे अब एसटीएफ ने पकड़ा है। गैंग की जड़ें नोएडा, लखनऊ, वाराणसी, हरिद्वार, चंडीगढ़, दिल्ली और गुरुग्राम तक फैली हुई हैं। इसके अलावा, इन्होंने 20 से अधिक शेल कंपनियां फर्जी पहचान पर खोल रखी थीं ताकि लोन से प्राप्त धन की निकासी और ट्रांसफर आसानी से किया जा सके।

मृत महिला की संपत्ति पर 4.8 करोड़ रुपये का लोन भी पास करा दिया

जांच में सामने आया कि गैंग ने दिल्ली स्थित रतनावासुदेवा नाम की महिला जिनकी पहले ही मृत्यु हो चुकी थी, की संपत्ति को भी जालसाजी का साधन बना लिया। उनकी जगह शाहिदा अहमद नाम की महिला को पेश किया गया और संपत्ति को सना उल्लाह अंसारी के नाम पर दिखाया गया। इस फर्जी प्रोसेस के जरिए 4.8 करोड़ रुपये का होम लोन पास कर लिया गया।

काम का बंटवारा: कोई दस्तावेज़ बनाता था, कोई बैंकिंग संभालता था

मुख्य आरोपी रामकुमार एमबीए है, जबकि मोहम्मद वसी कंपनी सेक्रेटरी है और कई वर्षों तक एक्सचेंजर कंपनी में लीगल एवं रिस्क मैनेजर रहा है। अन्य आरोपी भी बैंकिंग प्रक्रियाओं के जानकार हैं। गिरोह में हर सदस्य का अलग रोल था। दस्तावेज़ तैयार करना, बैंकिंग प्रक्रिया संभालना, फर्जी खरीदार तैयार करना, बिल्डरों से संपर्क करना और पैसों के ट्रांसफर की प्लानिंग करना। सभी सदस्य अपनी वास्तविक पहचान छिपाकर ही काम करते थे, जिससे वे लाखों-करोड़ों की ठगी आसानी से अंजाम दे पाते थे।

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