यित्जाक राबिन या शिमोन पेरेज के बाद इजरायली राजनीतिक नेतृत्व से निराश हो गए थे, क्योंकि उन्हें अपने भविष्य के लिए बेहतर दृष्टिकोण या फिलिस्तीनियों के साथ संघर्ष का समाधान खोजने वाला कोई नेता नहीं मिला।
इजरायल के लिए आने वाला समय और भी कठिनाई भरा हो सकता है। गाजा में युद्ध किसी नतीजे पर नहीं पहुंच पा रहा है। बंधकों पर समझौते की संभावना कम है। ईरान-हिज्बुल्लाह-हूथियों की आक्रामकता लगातार बढ़ रही है। देश अंतरराष्ट्रीय स्तर पर निंदा के कारण अलग-थलग पडऩे की तरफ बढ़ रहा है और उसके पुराने सहयोगी किनारा करते जा रहे हैं।
ऐसी बाहरी चुनौतियां दशकों से इजरायली राजनीति और विदेश नीति का हिस्सा रही है। लेकिन अब इजरायल के अंदर से ही कहीं अधिक खतरनाक और नियंत्रण से बाहर होता जा रहा खतरा उपज रहा है — सेना और सरकार गाजा युद्ध की नीति को लेकर टकरा रहे हैं। रक्षा मंत्री योआव गैलेंट खुलकर प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू की आलोचना कर रहे हैं और यह आरोप लगा रहे हैं कि उन्होंने बंधकों को छोड़ दिया है। वह युद्ध के लक्ष्यों को बार-बार बदल रहे हैं और हमास के बाद गाजा का भविष्य तय करने के विषय में राजनीतिक निर्णय नहीं ले पा रहे हैं। गैलेंट और इजरायल के अन्य सुरक्षा एजेंसी प्रमुख अब बंधकों के सौदे के मामले में नेतन्याहू सरकार के प्रति अपने अविश्वास को छिपा भी नहीं रहे हैं बल्कि खुलकर व्यक्त कर रहे हैं।
वेस्ट बैंक पर मौजूदा सरकार और उसकी नीतियों के खिलाफ चिंता का एक और तात्कालिक कारण यह है कि सेना वेस्ट बैंक पर विभिन्न बस्तियों में रहने वाले इजरायलियों के खिलाफ एक और छोटा युद्ध लड़ रही है, क्योंकि वे फिलिस्तीनियों पर हमला करके उन्हें मार रहे हैं। शिन-बेत (इजरायल की आंतरिक खुफिया एजेंसी) के प्रमुख ने वेस्ट बैंक में इन हमलों को 'यहूदी आतंकवाद' कहा है और प्रधानमंत्री से अपने गठबंधन सहयोगियों के खिलाफ तत्काल हस्तक्षेप करने की मांग की है। यह एक ऐसा मुद्दा है जिस पर नेतन्याहू बोलने या इसे मानने से कतराते हैं, क्योंकि उन्हें डर है कि इससे उनकी सरकार गिर सकती है। संसद सदस्य और वर्तमान राष्ट्रीय रक्षा मंत्री इत्मार बेन-ग्वीर जैसे उनके गठबंधन सहयोगी को सेना और पुलिस के खिलाफ उकसाते रहते हैं। वह और कुछ अन्य अति-धार्मिक और राष्ट्रवादी नेता दो-राज्य समाधान या धार्मिक स्थलों को लेकर यरुशलम में यथास्थिति में एकतरफा बदलाव के खिलाफ बिना किसी झिझक के बोलते हैं।
ये घटनाक्रम आंतरिक हैं, पर ये इजरायल की राष्ट्रीय सुरक्षा और गाजा में उसके युद्ध प्रबंधन को और भी अस्थिर बना रहे हैं। इस घरेलू अराजकता के बीच गाजा में बंधकों के शवों की खबर आई, जिन्हें इजरायली सेना के पहुंचने से ठीक पहले हमास ने मार डाला था। ये छह बंधक गाजा की सुरंगों में लगभग ग्यारह महीने तक कैद में रहे और जून या जुलाई में बंधक सौदा होने पर उन्हें रिहा किया जाना था। उनकी मौत की खबर सुनकर इजरायली जनता में भारी आक्रोश फैल गया जो सरकार के खिलाफ बड़े पैमाने पर विरोध प्रदर्शन करने सड़कों पर उतर आई। इनमें तेल अवीव में करीब तीन लाख लोग और अन्य शहरों में दो लाख लोग शामिल थे। इजरायल के सबसे बड़े श्रमिक संघ हिस्ताद्रुत ने देशव्यापी हड़ताल का आह्वान किया, जिससे अर्थव्यवस्था के लगभग सभी क्षेत्र और इजरायल का एकमात्र अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डा एक दिन के लिए बंद हो गए। हिस्ताद्रुत इजरायल में लगभग एक लाख सरकारी कर्मचारियों (विदेश में तैनात राजनयिकों और राजदूतों सहित) का प्रतिनिधित्व करने वाला प्रभावशाली संगठन है। इसने नेतन्याहू के खिलाफ तब कार्रवाई की, जब उन्होंने पिछले साल मार्च में उन न्यायिक सुधारों को लाने का प्रयास किया था, जो लोकतंत्र की भावना और संस्थागत नियंत्रण व संतुलन की पद्धति के विरुद्ध थे। दिलचस्प बात यह है कि पिछला राष्ट्रीय बंद तब हुआ था, जब रक्षा मंत्री योआव गैलेंट ने देश व सेना को बांटने के लिए प्रधानमंत्री का सार्वजनिक रूप से विरोध किया था।
यह राष्ट्रीय हड़ताल केवल एक दिन के लिए थी और न्यायालय ने यूनियन को इसे आगे न बढ़ाने का आदेश दिया था। लिहाजा अब नेतन्याहू को इसकी अधिक चिंता नहीं करनी होगी। हालांकि, बंधक परिवार फोरम अब हजारों लोगों को सड़कों पर उतार सकता है, क्योंकि 7 अक्टूबर के बाद से नेतन्याहू के खिलाफ सार्वजनिक आक्रोश अपने चरम पर है। उन्हें सेना द्वारा, विशेष रूप से रक्षा मंत्री योआव गैलेंट द्वारा, अपनी युद्ध नीति की बढ़ती आलोचना की अधिक चिंता है। क्या नेतन्याहू गाजा में अपनी कठोर युद्ध नीति जारी रख सकते हैं? यदि सेना आदेशों का पालन नहीं करती है, तो क्या वह रक्षा मंत्री को बर्खास्त कर सकते हैं (पिछली बार उन्होंने कोशिश की थी, लेकिन उन्हें योआव गैलेंट को हटाने का आदेश वापस लेना पड़ा क्योंकि जनता गैलेंट के समर्थन में उतर आई थी)? बाहर से देखने पर ऐसा लगता है कि हमास, हिज्बुल्लाह और ईरान के साथ चल रहे युद्ध के बीच इजरायल अपने भीतर ही युद्ध लड़ रहा है। इजरायलियों ने लंबे समय से वामपंथी और दक्षिणपंथी या धार्मिक और धर्मनिरपेक्ष राष्ट्रवादियों के बीच राजनीतिक झगड़ों के प्रति उदासीनता दिखाना शुरू कर दिया था। यित्जाक राबिन या शिमोन पेरेज के बाद वे राजनीतिक नेतृत्व से निराश हो गए थे, क्योंकि उन्हें अपने भविष्य के लिए बेहतर दृष्टिकोण या फिलिस्तीनियों के साथ संघर्ष का समाधान खोजने वाला कोई नेता नहीं मिला। सेना इजरायलियों के लिए एकता और उम्मीद की आखिरी लौ बनी हुई है। क्या सेना कुछ समय के लिए इजरायल में सत्ता संभाल सकती है? यह मध्य पूर्व के देशों के लिए कोई असामान्य बात नहीं है।
इजरायल ने खुद को लेकर पश्चिमी, विकसित, लोकतांत्रिक व आधुनिक राज्य के रूप में कल्पना की थी और उस महत्त्वाकांक्षा को कमोबेश हासिल भी किया। पर अब, यह देश अपने पड़ोसियों की तरह ही प्रतीत होता है — अस्थिर और भ्रष्ट नेतृत्व, लगातार सड़कों पर लड़ाइयां और हिंसक विरोध प्रदर्शन, कानून-व्यवस्था का ह्रास, धार्मिक उग्रवाद और निरंतर राजनीतिक अस्थिरता। इजरायल के पास दूसरों के साथ युद्ध के मामले में तो मजबूत सहयोगी हैं, पर वह अपने ही भीतर उघड़ा हुआ और असुरक्षित है।
— डॉ. खींवराज जांगिड़