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देश में रेलवे सेवाओं में सुधार का कार्य तेजी से चल रहा है। द्रुत गति की और आधुनिक सुविधाओं वाली रेलगाड़ियां चलाई जा रही हैं। इसके साथ ही रेलवे स्टेशनों को अंतरराष्ट्रीय मानकों और स्तर का बनाने का काम भी तेजी से चल रहा है। एयरपोर्ट्स की तरह रेलवे स्टेशनों पर भी खाने-पीने के सामान के आउटलेट्स खोले जा रहे हैं। यहां तक तो ठीक है, लेकिन हाल में सामने आए एक समाचार ने चिंता पैदा कर दी है। इस समाचार के अनुसार रेलवे स्टेशनों पर मैकडॉनल्ड, केएफसी जैसे अंतरराष्ट्रीय ब्रांड्स ने भी अपने आउटलेट्स खोलने में दिलचस्पी दिखाई है। इस दिलचस्पी को देखते हुए रेलवे ने आउटलेट्स की एक नई ‘प्रीमियम ब्रांड कैटरिंग’श्रेणी सृजित भी कर दी है।
रेलवे स्टेशनों का आधुनिकीकरण करते समय एयरपोर्ट्स को आदर्श के रूप में सामने रखना उचित नहीं होगा। भारतीय रेल देश के आम नागरिकों की यात्रा का एक सुलभ और लोकप्रिय साधन है। रेलवे केवल यात्रा का पड़ाव या प्रारंभिक स्थल ही नहीं है, बल्कि ये हमारे सांस्कृतिक और सामाजिक जीवन का महत्वपूर्ण केन्द्र है। यहां हर तबके के यात्री मिल जाएंगे। पूरे स्टेशन का वातावरण अपनापन लिए होता है। ऐसे में ध्यान यह रखना होगा कि कहीं प्रीमियम ब्रांड्स के नाम पर विदेशी ब्रांड्स को जगह तो दे दें पर स्थानीय व्यंजनों को दूर कर दें। यह तय है कि इन आउटलेट्स को हासिल करने की प्रक्रिया शुरू होगी तो अपने साधनों और प्रभाव के कारण विदेशी ब्रांड स्टेशनों पर छा जाएंगे।
आज हर एयरपोर्ट्स पर खान-पान के एक जैसे ब्रांड दिखाई देते हैं। इससे यात्रियों को सभी जगह खान-पान का समान अनुभव होता है। सारे एयरपोर्ट्स एक जैसे दिखाई देते हैं। भारत की विविधता का कहीं अनुभव नहीं होता। कम से कम खान-पान के बारे में तो यही सच है। क्या हमारे रेलवे- स्टेशनों को भी हम उसी दिशा में ले जाना चाहते हैं? होना तो यह चाहिए कि रेलवे स्टेशनों पर स्थानीय खान-पान को प्राथमिकता दी जाए। हर स्टेशन पर उस क्षेत्र की खान-पान की सामग्री और प्रसिद्ध व्यंजन उपलब्ध हो। इससे न केवल यात्रियों का अलग-अलग स्टेशनों पर जायका बदलेगा, बल्कि उस स्टेशन की पहचान भी विशिष्ट हो जाएगी। उदाहरण के लिए जयपुर स्टेशन पर घेवर-फीणी, आगरा में पूड़ी-भाजी और पैठा, चेन्नई में इडली-डोसा उपलब्ध हो। इससे स्थानीय व्यवसायों को भी बढ़ावा मिलेगा और रोजगार भी बढ़ेगा। स्थानीय खान-पान हमारी संस्कृति और परम्पराओं का परिचय कराते हैं। ये व्यंजन भारत की जलवायु के अनुकूल होते हैं।
अफसरशाही मुख्यत: पाश्चात्य प्रभाव में काम करती है। इसलिए उसकी प्राथमिकता विदेशी ब्रांड और उत्पादन होते हैं। उसे देश की माटी की पहचान और अपनापन से ज्यादा मतलब नहीं होता। रेलवे स्टेशनों का आधुनिकीकरण करते समय हमें इस बात को ध्यान में रखना होगा कि इन्हें हम अपनी संस्कृति से दूर न ले जाएं। चहल-पहल, खान-पान, - इन सबसे ही हमारे स्टेशनों की सांस्कृतिक पहचान है जो अंधानुकरण के चलते खोनी नहीं चाहिए।
bhuwan.jain@epatrika.com
Updated on:
27 Dec 2025 02:38 pm
Published on:
27 Dec 2025 02:14 pm
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