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खाद्य पदार्थों की कीमतों पर रखनी होगी नजर

इसलिए यह समझना आवश्यक है कि महंगाई एक ऐसी समस्या है जिसका निवारण जनता को देश की आर्थिक नीतियों में नहीं दिखता है और इसे अपने दिन -प्रतिदिन के जीवन का हिस्सा समझकर अनदेखा करने की ही कोशिश करता है।

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May 21, 2024

डॉ. पी.एस. वोहरा
आर्थिक मामलों के जानकार बीती सर्दियों में भारतीयों ने यकीनन यह महसूस किया होगा कि सब्जियों के मूल्य में गिरावट का दौर नहीं देखने को मिला। आम तौर पर गर्मियों में सर्दियों की तुलना में सब्जियां व फल अधिक महंगे मिलते हैं। बीते वित्तीय वर्ष 2023-24 में उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (सीपीआई) के आधार पर भारत में घरेलू मोर्चे पर महंगाई की दर 5.4 प्रतिशत आंकी गई है जो कि तुलनात्मक रूप से अधिक है। यहां पर यह बताना भी आवश्यक है कि उपभोक्ता मूल्य सूचकांक के आधार पर महंगाई की गणना में एक आम आदमी के जीवन में उपयोग आने वाली विभिन्न वस्तुओं व पदार्थों को कुल छह भागों में विभक्त किया जाता है। इनके अंतर्गत सबसे अधिक महत्त्व भोजन के लिए उपयोग में आने वाले विभिन्न खाद्य व पेय पदार्थों का होता है। इन पदार्थों के अंतर्गत सब्जियां, फल, दूध, दालें, मसाले, चीनी, मीट, मछली, तेल इत्यादि सम्मिलित हंै। उपभोक्ता मूल्य सूचकांक महंगाई की दर को प्रस्तुत करता है। इसकी गणना में लगभग 46 प्रतिशत का वेटेज एक आम आदमी के भोजन व खाद्य पदार्थों में हुए खर्च को दिया जाता है। ग्रामीण क्षेत्र में भोजन व खाद्य पदार्थ का आम आदमी के जीवन में दिन- प्रतिदिन के खर्चों में 54 प्रतिशत का हिस्सा है, वहीं शहरी क्षेत्र में यह 36 प्रतिशत रहता है। शहरी क्षेत्र में अपने आवास में रहने की लागत तकरीबन 22 प्रतिशत होती है जो कि ग्रामीण क्षेत्र में शून्य है। इसलिए तकरीबन यह बात हमेशा चर्चा में रहती है कि महंगाई की दर को खाद्य पदार्थों के मूल्य में हुए उतार-चढ़ाव ही नियंत्रित करते हैं। दालों के मूल्यों में पिछले वित्तीय वर्ष 2023-24 के अंतर्गत काफी ज्यादा उछाल देखने को मिला है जिसके चलते आम आदमी के खाद्य पदार्थों पर खर्च का बजट भी बहुत बढ़ा जो अंतत: महंगाई की सालाना दर को 5 प्रतिशत से ऊपर ले गया। यह बात भी बहुत आश्चर्यजनक है कि भारत के कुछ राज्यों में दालों के मूल्यों में बहुत अधिक महंगाई देखी गई, जो दालों के सबसे बड़े उत्पादक राज्य भी हैं। मसलन, मध्य प्रदेश, जो कि दालों का सबसे बड़ा उत्पादक राज्य है, में वर्ष 2022-23 की तुलना में बीते वर्ष 2023-24 में दालों के मूल्य 1.9 प्रतिशत से बढ़कर 21 प्रतिशत ज्यादा महंगे हो गए। कर्नाटक में यह लगभग 20 प्रतिशत, महाराष्ट्र व गुजरात में 18 प्रतिशत, उत्तर प्रदेश व छत्तीसगढ़ में 15 प्रतिशत अधिक महंगे हो गए। यह बात भी अक्सर सुनने को मिलती है कि भारत में बेरोजगारी तथा महंगाई अनवरत रूप से चलने वाली आर्थिक समस्याएं हैं। इनसे निपटने के प्रयास तो किए जाते हैं परंतु यह भी एक कड़वी सच्चाई है कि ये दोनों सदैव किसी भी नियंत्रण से बाहर हैं। आश्चर्य तब ज्यादा होता है जब मुल्क चुनावों के दौर में से निकल रहा हो और तब भी जनता स्वयं आर्थिक मुद्दों पर अपने आप को केंद्रित न करके दूसरे विभिन्न विमर्शों पर केंद्रित हो जाए।
अक्सर यह बात भी चर्चा में रहती है कि विभिन्न वैश्विक उठापटक के कारण भी घरेलू मोर्चे पर महंगाई कई दफा बढ़ती है। रूस व यूक्रेन युद्ध के चलते जब कच्चे तेल के मूल्य में वैश्विक स्तर पर बढ़ोतरी हुई तो उससे घरेलू बाजार में जब पेट्रोल व डीजल के मूल्य बढऩे के कारण आवागमन की लागत बढ़ी और उसके चलते घरेलू बाजार में तकरीबन सभी चीजें महंगी हुईं। इसमें खाद्य पदार्थ, सब्जियां व फल इत्यादि भी सम्मिलित थे। हालांकि उस दौरान तो महंगाई की डबल मार पड़ी थी क्योंकि पेट्रोल व डीजल का महंगा होना प्रत्यक्ष व अप्रत्यक्ष दोनों तरह से वित्तीय रूप से प्रभावित करता है। वैश्वीकरण के इस दौर में इन सब चीजों के सामने विवश होना जायज है परंतु घरेलू मोर्चे पर बिना किसी वैश्विक कारणों के जब खाद्य पदार्थों, सब्जियों, दालों आदि के मूल्य में बढ़ोतरी हो तो यह समझ से बाहर प्रतीत होता है और इसके निवारण के लिए इसका चर्चा में आना अत्यंत आवश्यक है। हालांकि, सरकारें सामाजिक कल्याण की योजनाओं के अंतर्गत इन समस्या पर अपना ध्यान केंद्रित करती हैं। कई तरह के उपाय भी किए जाते हैं। किसानों को राहत देने की बात की जाए तो एमएसपी बढ़ाना और फसल को गारंटी के साथ खरीदना जैसे कदम उठाए जाते हैं। दूसरी तरफ गरीबों को मुफ्त में अनाज वितरित करना भी सराहनीय है। इसके बावजूद यह बात भी समझना अत्यंत आवश्यक है कि यह सब महंगाई को नियंत्रण में करने के स्थायी विकल्प नहीं हंै। भारत के संदर्भ में यह बात भी देखने को मिली है कि बीते वित्तीय वर्ष में जलवायु परिवर्तन के चलते कृषि क्षेत्र को अधिक मार झेलनी पड़ी है। इस कारण कृषि उत्पादन तुलनात्मक रूप से कम हुआ है। फिर घरेलू मोर्चे पर खाद्य पदार्थों के मूल्य नियंत्रण में रहे, इसके लिए कृषि पदार्थों के निर्यात पर आंशिक नियंत्रण भी किया गया और इन पदार्थों की भंडारण क्षमता पर भी। इन सबके चलते पिछले वित्तीय वर्ष में भारत का कृषि निर्यात काफी कम रहा है जबकि वर्ष 2022-23 में यह लगभग 15 बिलियन अमरीकी डॉलर के बराबर था।
यहां पर यह बात भी गौर करने लायक है कि महंगाई को नियंत्रण में करने के लिए अंत में सब की निगाहें आरबीआइ की तरफ मुड़ जाती है। यह आशा की जाती है कि कुछ रेट कट किए जाएंगे जिसके माध्यम से भारतीय रुपए की तरलता को समाज में नियंत्रित किया जा सकेगा। हालांकि इससे महंगाई पर प्रत्यक्ष नियंत्रण तो नहीं होता है परंतु आम आदमी के लिए वित्तीय ऋण महंगे हो जाते हैं और उससे उसकी क्रय क्षमता कम हो जाती है। ऋण महंगे होने से कंपनियों के विस्तार की क्षमता भी कम हो जाती है जिससे रोजगार के अवसर अधिक नहीं बढ़ पाते हैं। इन सबके अलावा यह भी आज एक सच्चाई है कि भारत का केंद्रीय बैंक वैश्विक स्थिति को देखे बगैर किसी भी तरह के निर्णय लेने में असमर्थ है। मसलन, अमरीकी फेड के द्वारा अगर किसी भी तरह का रेट कट नहीं होता है तो भारत में भी इसकी संभावना कम प्रतीत होती है। इसके अलावा कच्चे तेल के वैश्विक मूल्यों में उठा- पटक की भी कोई संभावना इसे और अधिक अनिश्चित बना देती है। इसलिए यह समझना आवश्यक है कि महंगाई एक ऐसी समस्या है जिसका निवारण जनता को देश की आर्थिक नीतियों में नहीं दिखता है और इसे अपने दिन -प्रतिदिन के जीवन का हिस्सा समझकर अनदेखा करने की ही कोशिश करता है।

Published on:
21 May 2024 08:51 pm
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