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हथियार डालने का विकल्प, वो चिट्ठी और हिड़मा का अंत

अपने आखिरी दिनों में हिड़मा ने आदिवासी समाज के एक मध्यस्थ को एक और चिट्ठी भेजी थी, जिसमें कहा था कि वह सरेंडर करने को तैयार है, लेकिन 'वन अधिकारों और आदिवासी स्वायत्तता' के मुद्दों पर बातचीत चाहता है।

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जयपुर

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Opinion Desk

Dec 29, 2025

शुभ्रांशु चौधरी, आदिवासी क्षेत्रों में सक्रिय सामाजिक कार्यकर्ता

16 जनवरी 2024 बस्तर में माओवादी आंदोलन के इतिहास का एक बहुत ही अहम मोड़ था। माओवादियों ने साउथ बस्तर की अपनी सारी टुकडिय़ों को इकट्ठा किया था ताकि वे छत्तीसगढ़ के बीजापुर जिले के पामेड़ इलाके में चिंतावागु नदी के पास बने धर्मावरम सीआरपीएफ कैंप पर हमला कर सकें। वे पुलिस कैंप स्थापित करने की राज्य सरकार की रणनीति को एक करारा जवाब देना चाहते थे, जो 2019 के बाद से बहुत तेज हो गई थी। धर्मावरम हमला एक तरह से नाकाम रहा। कम ही लोग जानते हैं कि उसके बाद क्या हुआ।

यह एक दुर्लभ पल था जब सभी माओवादी डिविजनल कमेटियां (डीवीसी) एक साथ थीं और उन्होंने वह सब लिखा जो उनके दिमाग में कुछ समय से चल रहा था। सभी माओवादी डीवीसी में लगभग 100 प्रतिशत आदिवासी लड़ाके हैं, हालांकि हर कमेटी में एक तेलुगु 'माइंडर' यानी सेक्रेटरी होता था, जिसकी ही आमतौर पर चलती थी। उस ड्राफ्ट चिट्ठी में कहा गया कि इन पुलिस कैंपों की वजह से लोगों से मिलना और समर्थन हासिल करना मुश्किल होता जा रहा है। हमारा सुझाव है कि लड़ाई जारी रखने के लिए वैकल्पिक रणनीति अपनानी चाहिए। हमें लगता है कि हमें कुछ समय के लिए हथियार डाल देने चाहिए व विकल्पों के बारे में सोचना चाहिए। हालांकि बस्तर में 99 प्रतिशत माओवादी कैडर आदिवासी थे, फिर भी उस समय तक पार्टी की सबसे ताकतवर सेंट्रल कमेटी (सीसी) में स्थानीय आदिवासियों का कोई प्रतिनिधित्व नहीं था। साउथ बस्तर की सेक्रेटरी सुजाता (जिसने बाद में तेलंगाना पुलिस के सामने सरेंडर कर दिया) से गुजारिश की गई कि वह इस चिट्ठी को सीसी तक ले जाए। शीर्ष आदिवासी माओवादी नेता हिड़मा से अनुरोध किया गया कि वह इस चिट्ठी के बारे में दूसरी डीवीसी की राय ले।

हिड़मा को इस महीने की शुरुआत में सुरक्षा बलों ने मार गिराया। बदकिस्मती से सीसी ने इस प्रस्ताव को खारिज कर दिया। यह उसी समय की बात है जब दिसंबर 2023 में छत्तीसगढ़ में भाजपा के सत्ता में आने के ठीक बाद गृह मंत्री विजय शर्मा ने शांति वार्ता की पेशकश की थी। भले ही चिट्ठी खारिज कर दी गई, लेकिन उसने अपना काम कर दिया था। हिड़मा को पूरे दंडकारण्य राज्य की लगभग सभी डीवीसी का समर्थन मिला जो लोगों के करीब रहते थे और रणनीति में बदलाव की उनकी इच्छा को दर्शाते थे। हाल में सरेंडर करने वाले माओवादी सीसी सदस्य वेणुगोपाल के अनुसार, उस चिट्ठी को सीसी में कुछ समर्थन मिला था और मई 2025 में अपनी मौत से ठीक पहले जनरल सेक्रेटरी नांबला केशव राव का मन बदलने में भी इसका हाथ था। नांबला केशव राव ने दूसरे सीसी सदस्यों को लिखना और शांति वार्ता की संभावनाएं तलाशने के लिए मध्यस्थों से संपर्क करना शुरू कर दिया था, जिसे माओवादी पार्टी का मौजूदा नेतृत्व झूठ बताकर खारिज करता है। हिड़मा, जो सीसी में स्थानीय आदिवासियों का एकमात्र प्रतिनिधि था (अब रामदेर नाम का एक और स्थानीय आदिवासी है), वन अधिकारों और स्वायत्तता के आदिवासी मुद्दों पर बातचीत में ज्यादा दिलचस्पी रखता था। जब 'बातचीत के बारे में बातचीत' से सरकार की ओर से कोई ठोस आश्वासन नहीं मिला, तो वेणुगोपाल ने एक और सीसी सदस्य रूपेश के साथ सरेंडर कर दिया, जिसने 'उस चिट्ठी का समर्थन किया था, लेकिन हिड़मा नए नेतृत्व के साथ चला गया और लड़ाई जारी रखने की कसम खाई।

इसी बीच, राज्य में नए जोश के साथ और ज्यादा कैंप लगाने की रणनीति, सरेंडर कर चुके माओवादियों और स्थानीय आदिवासी लड़ाकों की मदद से बहुत सफल साबित हो रही थी। इस आक्रामक अभियान में माओवादी पार्टी ने अपने कई तेलुगु सीसी नेताओं को खो दिया। उन्होंने शांति वार्ता की मांग करने के लिए अपने समर्थकों को सक्रिय किया, लेकिन तब पीछे हट गए जब वेणुगोपाल और रूपेश ने दावा किया कि उन्होंने सरकार से तीन मांगों पर बातचीत की है, जिसमें 'आदिवासी मुद्दों' पर बातचीत की हिड़मा की मांगें शामिल नहीं थीं। अपने आखिरी दिनों में हिड़मा ने आदिवासी समाज के एक मध्यस्थ को एक और चिट्ठी भेजी थी, जिसमें कहा था कि वह सरेंडर करने को तैयार है, लेकिन 'वन अधिकारों और आदिवासी स्वायत्तता' के मुद्दों पर बातचीत चाहता है। हिड़मा के समर्थकों का आरोप है कि हिड़मा की लोकेशन मौजूदा माओवादी नेतृत्व ने ही पुलिस को लीक की थी, जिन्होंने उसे मरवा दिया। इस कहानी की सच्चाई चाहे जो भी हो, लेकिन इस चार दशक में आदिवासियों ने बड़ी कीमत चुकाई है और बदले में उन्हें लगभग कुछ नहीं मिला।