ग्लोबल वार्मिंग के कारण ही दुनिया में जगह-जगह जंगल धधक रहे हैं, जहरीली गैसों से ओजोन परत को भारी नुकसान हो रहा हैै और प्राकृतिक जल संसाधन सूखते जा रहे हैं। जलवायु परिवर्तन के मानव जनित खतरों पर ठोस नीति बनाकर ही काफी हद तक अंकुश लगाया जा सकता है।
जलवायु परिवर्तन के बढ़ते खतरों को लेकर दुनिया भर में लगातार चिंता जताई जाती रही है। इस संकट को लेकर बड़े देश शिखर सम्मेलन करते हैं। विभिन्न तरह की संधियां भी होती हैं, लेकिन जमीनी स्तर पर इन उपायों के ठोस नतीजे नजर नहीं आते। जो तस्वीर सामने आ रही है उससे यह साफ है कि इन खतरों से निपटने के लिए पूरी दुनिया में सामूहिक अभियान तेजी से शुरू करने की जरूरत है। सीधे तौर पर कहा जा सकता है कि ऐसे प्रयासों को तत्परता से गति मिले, तब जाकर ही मानव जाति का भला होगा। तमाम तरह की चिंताओं के बीच तमिलनाडु के अन्ना विश्वविद्यालय के जलवायु परिवर्तन और आपदा प्रबंधन केंद्र की ताजा रिपोर्ट में अनुमान लगाया गया है कि समय पर कदम नहीं उठाए गए तो वर्ष २०५० तक राज्य के घने जंगल शुष्क रेगिस्तानी जंगलों में तब्दील हो जाएंगे। रिपोर्ट में कहा गया है कि वन क्षेत्रों में यह चिंताजनक गिरावट उच्च तापमान, परिवर्तित वर्षा पैटर्न और मानसून के बाद के मौसम में लंबे समय तक शुष्क रहने के कारण है।
जलवायु परिवर्तन के दुष्प्रभावों को सिर्फ तमिलनाडु के जंगलों तक ही नहीं देखा जाना चाहिए। जलवायु परिवर्तन का बारिश के चक्र, समुद्री जल स्तर, खेती, जैव विविधता और मानव स्वास्थ्य पर विपरीत प्रभाव दिखने लगा है। मौसम वैज्ञानिकों का मानना है कि जलवायु परिवर्तन के प्रभाव से मौसम बदलाव की चरम स्थितियों से जूझना पड़ सकता है। ऐसी स्थितियों में ग्लेशियर तेजी से पिघल सकते हैं जिससे लोगों को बाढ़ जैसे खतरों से जूझना पड़ सकता है। वनों के लिहाज से देखा जाए तो लगातार उच्च तापमान बने रहने से पेड़ों की रहवास उपयुक्तता (हैबिटेट सूटेबिलिटी) में बदलाव आ रहा है। इससे घने जंगलों के भी भविष्य में रेगिस्तान में बदलने का खतरा बना हुआ है।
देखा जाए तो शहरीकरण, औद्योगिकीकरण, वनोन्मूलन और रासायनिक कीटनाशकों एवं उर्वरकों के अंधाधुंध प्रयोगों ने जलवायु परिवर्तन के खतरों को बढ़ाया है। यह कहा जा सकता है कि जलवायु परिवर्तन के दुष्प्रभावों को कम करने के लिए केंद्र और राज्यों की सरकारों ने जो प्रयास किए हैं, उनमें भी समय के साथ तेजी लाने की जरूरत है। इस बीच जंगलों में भीषण आग के मामले सामने आ रहे हैं। ग्लोबल वार्मिंग के कारण ही दुनिया में जगह-जगह जंगल धधक रहे हैं, जहरीली गैसों से ओजोन परत को भारी नुकसान हो रहा हैै और प्राकृतिक जल संसाधन सूखते जा रहे हैं। जलवायु परिवर्तन के मानव जनित खतरों पर ठोस नीति बनाकर ही काफी हद तक अंकुश लगाया जा सकता है।