अभी से संसाधनों के विस्तार की दीर्घकालिक योजनाएं बनाने की जरूरत है। शिक्षा, रोजगार, स्वास्थ्य, आवास, परिवहन आदि से जुड़े बुनियादी ढांचे का विस्तार करना होगा। प्रजनन दर की तरह गरीबी पर भी अंकुश की कोशिश होनी चाहिए। आबादी बढ़ने की स्वाभाविक प्रकिया के बीच आबादी और संसाधनों में बेहतर तालमेल की जरूरत है।
विश्व जनसंख्या दिवस पर जारी संयुक्त राष्ट्र की रिपोर्ट भारत के लिए आने वाले समय में नई चुनौतियों के संकेत दे रही है। रिपोर्ट में अनुमान जताया गया है कि भारत की आबादी 2060 के दशक की शुरुआत में करीब 1.7 अरब तक पहुंच सकती है। इसके बाद 12 फीसदी की गिरावट के बावजूद यह पूरी सदी के दौरान दुनिया की सबसे ज्यादा आबादी वाला देश बना रहेगा। भारत सरकार की ओर से जारी प्रजनन दर के आंकड़े इस लिहाज से राहत देने वाले हैं कि देश के 36 में से 31 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में कुल प्रजनन दर (टीएफआर) गिरकर 1.91 (प्रति महिला बच्चों का जन्म) पर आ गई है।
प्रजनन दर की यह गिरावट बड़ी उपलब्धि है। पचास के दशक में जब टीएफआर 6.4 थी, बढ़ती आबादी देश के लिए चिंता के बड़े कारणों में से एक थी। यह परिवार नियोजन के कार्यक्रमों का सुखद परिणाम है कि टीएफआर लगातार घटती गई। अब यह 1990 के 4.6 से भी काफी नीचे है। संयुक्त राष्ट्र की संभावना रिपोर्ट में भारत की मौजूदा टीएफआर को आधार बनाया गया या नहीं, स्पष्ट नहीं है। भारत की आबादी को लेकर विभिन्न राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीय संगठन जो रिपोर्ट जारी करते रहे हैं, उनमें 2011 की जनगणना को पूर्वानुमानों का आधार बनाया जाता है। उस जनगणना के बाद के अधिकृत आंकड़े किसी के पास नहीं हैं। भारत में हर दस साल में होने वाली जनगणना 2021 में कोरोना के कारण टालनी पड़ी थी। अब जनगणना जल्द से जल्द कराने की जरूरत है, ताकि देश की आबादी को लेकर तस्वीर साफ हो सके। वैसे भी जनगणना के आधार पर ही सरकार की विभिन्न योजनाएं आकार लेती हैं। दरअसल, बढ़ती आबादी अब भारत के लिए उस तरह की चिंता का कारण कतई नहीं है, जिससे हम पचास-साठ साल पहले जूझ रहे थे। संतोषजनक प्रजनन दर का स्तर हम हासिल कर चुके हैं। इसमें गिरावट को लेकर हमारे सामने वैसी समस्याएं भी नहीं हैं, जिनसे चीन और जापान जैसे देश दो-चार हो रहे हैं। चीन में प्रजनन दर 1.2 और जापान में 1.3 तक गिरने के बाद वहां की सरकारों को आबादी बढ़ाने के लिए तरह-तरह की प्रोत्साहन योजनाएं चलानी पड़ रही हैं।
संयुक्त राष्ट्र के पूर्वानुमान पर भरोसा किया जाए तो अभी से संसाधनों के विस्तार की दीर्घकालिक योजनाएं बनाने की जरूरत है। शिक्षा, रोजगार, स्वास्थ्य, आवास, परिवहन आदि से जुड़े बुनियादी ढांचे का विस्तार करना होगा। प्रजनन दर की तरह गरीबी पर भी अंकुश की कोशिश होनी चाहिए। आबादी बढ़ने की स्वाभाविक प्रकिया के बीच आबादी और संसाधनों में बेहतर तालमेल की जरूरत है।