पटना

Bihar Election में क्या फिर नीतीश के वोट चुराएंगे चिराग? जानिए बढ़ती खटास के 3 कारण

Bihar Election : 1976 से बिहार में नरसंहार का दौर शुरू हुआ। इसके बाद अति पिछड़ा वर्ग और पिछड़ा वर्ग के वोट पैटर्न में बदलाव आने लगा।

2 min read
Jul 13, 2025
बिहार विधानसभा चुनाव में लोजपा (रामविलास) प्रमुख चिराग पासवान से नीतीश कुमार (दाएं) को चुनौती मिलने वाली है! पत्रिका

बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और लोजपा (आर) चीफ चिराग पासवान के बीच आखिर ऐसी क्या खटास है, जिस कारण बीजेपी नीत एनडीए के दोनों सहयोगी आपस में फिर टकराव की स्थिति में हैं। राजनीतिक जानकार इसकी 3 वजहें गिनाते हैं। इनमें सबसे बड़ा कारण 1977 का बिहार का बेलछी नरसंहार है, जहां से इंदिरा गांधी को दोबारा सत्ता मिली।

ये भी पढ़ें

क्या बिहार की सियासत के सिकंदर हैं पासवान? नीतीश से पहले लालू को लगाया किनारे

1976 से बिहार में नरसंहार का दौर शुरू हुआ

1- राजनीतिक मामलों के जानकार चंद्रभूषण बताते हैं कि इमरजेंसी के बाद 1976 से बिहार में नरसंहार का दौर शुरू हुआ। इनमें 27 मई 1977 को पटना के बेलछी गांव में 14 दलितों की हत्या कर दी गई। इस हादसे में पासवान जाति के 8 लोग समेत 14 लोगों को जिंदा जला दिया गया था। इसका आरोप कुर्मी बिरादरी पर लगा था। इसके बाद अति पिछड़ा वर्ग और पिछड़ा वर्ग के वोट पैटर्न में बदलाव आने लगा। राम विलास पासवान दलित राजनीति का चेहरा बन गए जबकि पिछड़ा वर्ग के अगुवा लालू प्रसाद यादव और नीतीश कुमार बन गए। चंद्रभूषण के मुताबिक नीतीश कुमार और राम विलास या चिराग के बीच सियासी तालमेल में भी काफी समस्या आती है। गठबंधन में आ जाएं तो ज्यादा दिन नहीं चलता या फिर टकराव बना रहता है। एनडीए में जब से दोनों दल आए हैं तब से उनमें नहीं बनी है।

2021 में चिराग पासवान ने बताई थी राम विलास के अपमान की बात

2- पॉलिटिकल एनालिस्ट ओम प्रकाश इस खटास के पीछे चिराग पासवान के मन में दबी उस कसक को मानते हैं, जो बचपन में ही उनके दिल में घर कर गई। राम विलास पासवान के निधन के बाद 2021 में चिराग पासवान ने एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में कहा था कि उनके पिता राज्यसभा में सीट के लिए नीतीश कुमार के पास सपोर्ट मांगने गए थे, तब उनके साथ जो सुलूक हुआ उससे उन्हें अत्यधिक ठेस पहुंची थी और वह बात उन्हें आज भी कचोटती है।

चिराग की कसक 2020 के बिहार विधानसभा चुनाव में दिखाई दी

3- ओम प्रकाश बताते हैं कि चिराग के दिल की कसक ही है, जो 2020 के बिहार विधानसभा चुनाव में दिखाई दी। उन्होंने एनडीए में साथ होने के बावजूद जदयू के खिलाफ अपने उम्मीदवार उतारे। उनका मकसद चुनाव जीतना नहीं बल्कि नीतीश कुमार को नुकसान पहुंचाना था। और वह इसमें कामयाब हुए। चुनाव के नतीजे आए और जदयू के तीन दर्जन प्रत्याशी चुनाव हार गए। बीजेपी सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी। खास बात यह थी कि चिराग पासवान ने जिन सीटों पर बीजेपी लड़ी वहां अपना उम्मीदवार नहीं उतारा। वह जदयू के 10 से 20 हजार वोट काटने में सफल रहे। जदयू को 2020 के चुनाव में सिर्फ 43 सीटें मिली थीं जबकि बीजेपी को 74।

12 जनपथ बंगला भी छिन गया

ओम प्रकाश बताते हैं कि 2021 में चिराग पासवान एनडीए से बाहर हो गए। उनका दिल्ली में स्थित 12 जनपथ बंगला भी छिन गया। अगर वे केंद्र में मंत्री बन जाते तो 32 साल से अलॉट चल रहा बंगला न छिनता। ऐसी कयास लगती आई हैं कि लोजपा को बाहर कराने के पीछे भी नीतीश कुमार का हाथ था। क्योंकि 2020 के चुनाव में हार से वह काफी आहत थे। कुछ सार्वजनिक मंचों पर भी नीतीश कुमार ने यह बात रखी थी।

Also Read
View All

अगली खबर