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क्या बिहार की सियासत के सिकंदर हैं पासवान? नीतीश से पहले लालू को लगाया किनारे

नीतीश कुमार जब भी एनडीए में रहे तब तब राम विलास पासवान और उसके बाद चिराग पासवान पर गुपचुप तरीके से वार करते रहे।

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पटना

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Ashish Deep

Jul 12, 2025

Chirag Paswan

चिराग पासवान (फोटो - IANS)

Bihar Assembly Election 2025 : बिहार में चिराग पासवान एक बार फिर विधानसभा चुनाव लड़ने जा रहे हैं। उन्होंने ऐलान किया है कि उनकी पार्टी लोजपा-आर सभी 243 सीटों पर चुनाव लड़ेगी। इस खबर के आने के बाद एनडीए में सहयोगी नीतीश कुमार अलर्ट मोड में आ गए हैं। उन्हें लग रहा है कि कहीं चिराग पासवान 2020 के विधानसभा चुनावों वाला पैंतरा फिर न दोहरा दें। यही पैंतरा 2005 के विधानसभा चुनाव में चिराग के पिता राम विलास पासवान ने पहली बार चला था और बिहार में लालू यादव के 15 साल के शासन को विराम दे दिया।

लालू यादव भी पासवान से गच्चा खा चुके

राजनीतिक पंडित बताते हैं कि लालू यादव के बाद नीतीश कुमार एक बार पासवान से गच्चा खा चुके हैं। पहली बार 2005 में राम विलास पासवान लालू को अपनी चाल से शिकस्त देकर खुद किंग मेकर बनकर उभरे थे। जबकि दूसरी बार 2020 में चिराग पासवान ने वही पैंतरा अपनाकर नीतीश कुमार की जदयू को चुनाव में जबर्दस्त नुकसान पहुंचाया।

चिराग पासवान ने 130 सीटों पर अपने प्रत्याशी उतारे थे

राजनीतिक मामलों के जानकार चंद्रभूषण के मुताबिक 2020 के विधानसभा चुनाव में चिराग पासवान ने 130 सीटों पर अपने प्रत्याशी उतारे थे। लेकिन जीते सिर्फ 1 सीट पर थे। उन्हें 2020 के विधानसभा चुनाव में अपने पिता राम विलास पासवान के जनाधार का समर्थन मिला था, जिससे वह नीतीश कुमार को झटका देने में कामयाब रहे। जदयू के 3 दर्जन से ज्यादा उम्मीदवार हार गए थे। अधिकतर सीटों पर चिराग के प्रत्याशी जदयू के उम्मीदवार के 10 से 20 हजार वोट काटने में कामयाब हुए। किसी भी राज्य के चुनाव में इतना वोट काटना किसी पार्टी को हराने के लिए काफी है। इस चुनाव में बीजेपी 74 सीट के साथ सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी। हालांकि मुख्यमंत्री पद नीतीश कुमार को ही मिला। चिराग ने 2005 वाला पैंतरा अपनाते हुए बीजेपी के खिलाफ एक भी उम्मीदवार नहीं उतारा।

नीतीश, राम विलास और चिराग पर वार करते रहे हैं

एक अन्य राजनीतिक विश्लेषक ओपी अश्क बताते हैं कि नीतीश जब भी एनडीए में रहे तब तब राम विलास पासवान और उसके बाद चिराग पासवान पर गुपचुप तरीके से वार करते रहे हैं। लोजपा, राजद और जदयू थे तो बिहार के दल पर दोनों में कभी नही पटी। उसका कारण जातिगत मतभेद रहा है। लालू यादव के साथ भी 2005 के विधानसभा चुनाव में कुछ ऐसा ही हुआ था। उस समय केंद्र में संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन की सरकार थी, लेकिन बिहार चुनाव में राजद, कांग्रेस और लोजपा अलग-अलग लड़े।

2005 में खत्म किया था लालू का 15 साल का शासन

अश्क के मुताबिक राम विलास पासवान पूरी तरह से किंग मेकर बनना चाहते थे। लेकिन लालू यादव के 15 साल का शासन उनके आड़े आ रहा था। इसलिए उन्होंने जबर्दस्त पैंतरा चला। उन्होंने जहां से लालू के उम्मीदवार चुनाव लड़ रहे थे, वहां लोजपा के भी प्रत्याशी उतार दिए। राम विलास बिहार के लिए बड़ा दलित चेहरा हैं। उन्हें उसका फायदा मिला और लोजपा ने 29 विधानसभा सीटों पर जीत दर्ज की। जबकि लालू 75 सीट जीतकर सबसे बड़ा दल बनकर उभरे। इसमें राम विलास ने किया यह था कि उन्होंने लालू के उम्मीदवारों के वोट काटने के लिए अपने उम्मीदवार उतारे थे। उन्होंने कांग्रेस प्रत्याशियों के खिलाफ कोई भी उम्मीदवार नहीं उतारा। इससे वह लालू और राबड़ी के शासन को विराम देने में सफल रहे।