आरके सिंह ने डिप्टी सीएम सम्राट चौधरी और प्रदेश अध्यक्ष दिलीप जायसवाल पर लगे भ्रष्टाचार के आरोपों पर सफाई मांगी है। उन्होंने चुनाव में कुछ खास लोगों को टिकट मिलने पर उनके विरोध में प्रचार करने की चेतावनी भी दी है।
बिहार की राजनीति में विधानसभा चुनाव 2025 से पहले एक नया तूफ़ान खड़ा हो गया है। भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के वरिष्ठ नेता और पूर्व केंद्रीय मंत्री आरके सिंह ने अपनी ही पार्टी के नेताओं पर सीधा हमला बोल दिया है। उन्होंने डिप्टी सीएम सम्राट चौधरी और भाजपा प्रदेश अध्यक्ष दिलीप जायसवाल से भ्रष्टाचार के आरोपों पर सफाई मांगी है। यही नहीं, उन्होंने यह भी चेतावनी दी है कि अगर 2025 चुनाव में उन्हें हराने वाले ‘अपने ही लोग’ दोबारा टिकट पाते हैं, तो वे गठबंधन के खिलाफ खुलकर प्रचार करेंगे।
जन सुराज पार्टी के संस्थापक प्रशांत किशोर बीते महीनों से लगातार एनडीए नेताओं पर भ्रष्टाचार के गंभीर आरोप लगा रहे हैं। उन्होंने सम्राट चौधरी पर नाम बदलने, पुराने आपराधिक मामलों और डिग्री विवाद का जिक्र किया। वहीं, भाजपा प्रदेश अध्यक्ष दिलीप जायसवाल पर भ्रष्टाचार और पार्टी फंडिंग में गड़बड़ी का आरोप लगाया।
पीके ने कहा था, “नीतीश कुमार ईमानदार हो सकते हैं, लेकिन उनके मंत्री और अधिकारी करोड़ों की लूट में शामिल हैं। भाजपा के नेता आरजेडी से भी ज्यादा भ्रष्ट हैं।” अब उन्हीं आरोपों को आरके सिंह ने हवा दी है और साफ कहा है कि जनता को भरोसा दिलाने के लिए इन नेताओं को मंच पर आकर अपना पक्ष रखना होगा।
आरके सिंह 2024 लोकसभा चुनाव में आरा सीट से हार गए थे। उन्होंने अपनी हार के पीछे पार्टी के ही कुछ नेताओं की “अंदरूनी साजिश” को जिम्मेदार बताया था। अब विधानसभा चुनाव से पहले उन्होंने साफ कहा, “अगर उन्हीं लोगों को दोबारा टिकट दिया गया तो मैं खुले तौर पर भाजपा-जदयू गठबंधन के खिलाफ प्रचार करूंगा।” उनका यह बयान न केवल भाजपा, बल्कि पूरे एनडीए गठबंधन के लिए खतरे की घंटी है।
सम्राट चौधरी फिलहाल डिप्टी सीएम हैं और भाजपा उन्हें बिहार की राजनीति का अगला बड़ा चेहरा बना रही है। दिलीप जायसवाल पार्टी संगठन के शीर्ष पद पर बैठे हैं। इन दोनों नेताओं पर सवाल उठना सीधे-सीधे भाजपा की विश्वसनीयता पर चोट है। अगर पार्टी आरोपों को नजरअंदाज करती है, तो यह संदेश जाएगा कि भाजपा भ्रष्टाचार को गंभीरता से नहीं लेती। अगर कार्रवाई करती है, तो संगठन में अंदरूनी विद्रोह और बढ़ सकता है। यानी, किसी भी रास्ते पर पार्टी की मुश्किलें कम नहीं होंगी।
आरके सिंह भारतीय प्रशासनिक सेवा (IAS) से राजनीति में आए और मोदी सरकार में गृह राज्य मंत्री और ऊर्जा मंत्री जैसे अहम पदों पर रहे। आरा सीट से वे दो बार सांसद चुने गए, लेकिन 2024 में उन्हें हार का सामना करना पड़ा। भोजपुर, बक्सर और आरा क्षेत्र भाजपा का पारंपरिक गढ़ माना जाता है, जहां आज भी आरके सिंह का प्रभाव है। ऐसे में उनकी नाराजगी विधानसभा चुनाव में भाजपा-जदयू गठबंधन को महंगी पड़ सकती है।
भाजपा फिलहाल इस पूरे विवाद पर चुप्पी साधे हुए है। लेकिन अंदरखाने यह चर्चा है कि आर.के. सिंह की नाराजगी को नज़रअंदाज करना पार्टी के लिए आत्मघाती साबित हो सकता है। अब बड़ा सवाल यही है कि क्या भाजपा इन आरोपों की जांच कराएगी और नेताओं से सफाई मांगेगी या फिर मामले को टालकर आरके सिंह की नाराजगी को और भड़काएगी? विधानसभा चुनाव से पहले पार्टी को यह संकट और गहरा सकता है।