Bihar Politics: बिहार चुनाव में मिली करारी हार के बाद तेज प्रताप यादव अब अपनी पार्टी का विस्तार राष्ट्रीय स्तर पर करना है चाहते हैं। उन्होंने ऐलान किया है कि जन शक्ति जनता दल बंगाल और उत्तर प्रदेश का विधानसभा चुनाव लड़ेगी।
Bihar Politics: बिहार विधानसभा चुनाव में मिली करारी हार के बाद जहां अधिकतर नेता आत्ममंथन और खामोशी के रास्ते पर चले गए, वहीं तेज प्रताप यादव ने बिल्कुल उलटी चाल चल दी। उनकी पार्टी जन शक्ति जनता दल (JJD) चुनाव में एक भी सीट नहीं जीत पाई थी, यहां तक की खुद तेज प्रताप महुआ में तीसरे स्थान पर रहे। इस हार के बाद अब उन्होंने राष्ट्रीय राजनीति के बारे में बात करना शुरू कर दिया। अब उनकी नजर उत्तर प्रदेश और पश्चिम बंगाल पर है और यह सवाल सबसे बड़ा है कि आखिर क्यों?
दरअसल, 12 दिसंबर को तेज प्रताप यादव ने जनशक्ति जनता दल के सदस्यता अभियान 2025-28 की शुरुआत की थी। इस दौरान उन्होंने घोषणा करते हुए कहा था कि उनकी पार्टी जनशक्ति जनता दल आगामी बंगाल चुनाव लड़ेगी और 2027 में उत्तर प्रदेश का चुनाव भी लड़ेगी। उन्होंने कहा था कि JJD अब सिर्फ बिहार तक सीमित नहीं रहेगी और राष्ट्रीय स्तर की पार्टी बनेगी।
कहा जाता है कि राजनीति में हार के बाद दो रास्ते होते हैं। या तो नेता पीछे हटता है, या फिर नई दिशा तलाशता है। तेज प्रताप ने दूसरा रास्ता चुना। बिहार में मिली नाकामी को उन्होंने ‘फुल स्टॉप’ नहीं, बल्कि ‘कॉमा’ मान लिया। यही वजह है कि वे बिहार की जमीन पर दोबारा पांव जमाने की बजाय सीधे राज्य से बाहर की राजनीति की बात कर रहे हैं।
राजनीतिक जानकार और वरिष्ठ पत्रकार लव कुमार मिश्रा कहते हैं कि तेज प्रताप को यह अच्छी तरह पता है कि बिहार के भीतर लालू प्रसाद यादव की राजनीतिक विरासत अब लगभग तयशुदा तरीके से तेजस्वी यादव के हाथों में जा चुकी है। पार्टी, संगठन और विपक्षी नेतृत्व हर मोर्चे पर तेजस्वी यादव की पकड़ मजबूत है। ऐसे में बिहार के भीतर तेज प्रताप के लिए स्पेस सीमित होता जा रहा है। लेकिन बिहार के बाहर तस्वीर अलग है। उत्तर प्रदेश और पश्चिम बंगाल जैसे राज्यों में न तो RJD की मजबूत मौजूदगी रही है और न ही लालू यादव की राजनीति का कोई तय वारिस। तेज प्रताप इसी खाली जगह को अपनी एंट्री पॉइंट मान रहे हैं।
तेज प्रताप की राजनीति का सबसे मजबूत कार्ड उनकी पहचान है कि वो लालू प्रसाद यादव के बेटे हैं। उनका मानना है कि यादव पहचान और लालू यादव के राजनीतिक करिश्मे की स्मृति बिहार की सीमा से बाहर भी पूरी तरह खत्म नहीं हुई है। खासकर यूपी में, जहां यादव राजनीति दशकों से प्रभावशाली रही है, तेज प्रताप को लगता है कि उनकी मौजूदगी एक नई हलचल पैदा कर सकती है। हालांकि यह भी कहा जा रहा है कि जहां बिहार में वे प्रभावी साबित नहीं हो पाए, वहां यूपी या बंगाल में बड़ी सफलता की उम्मीद कम है।
लव कुमार मिश्रा का मानना है कि तेज प्रताप का लक्ष्य फिलहाल यूपी या बंगाल में कोई बहुत बड़ी पार्टी बनकर उभरना नहीं है। उनका असली मकसद अपनी मौजूदगी दर्ज कराना है। यूपी में उनकी यह मौजूदगी समाजवादी पार्टी के यादव वोट बैंक में सेंधमारी कर सकती है। यानी जीत से ज्यादा असर डालने की राजनीति। बंगाल में भी मामला कुछ ऐसा ही है, जहां पहचान बनाना ही पहली लड़ाई है।
लव कुमार मिश्रा कहते हैं कि यूपी और बंगाल दोनों ऐसे राज्य हैं जो राष्ट्रीय सत्ता के समीकरण में बहुत महत्वपूर्ण हैं। UP से 80 और बंगाल से 42 लोकसभा सीटें आती हैं। तेज प्रताप की सोच यह भी हो सकती है कि अगर 2026 बंगाल और 2027 यूपी में वे भले 3–5% वोट शेयर ही हासिल कर लें, कुछ सीटें जीत लें या कई सीटों पर वोट कटवा बन जाएं, तो 2029 के राष्ट्रीय चुनावों से पहले उन्हें महत्वपूर्ण सहयोगी के रूप में प्लेसमेंट मिल सकता है।
बिहार की तुलना में यूपी और बंगाल तेज प्रताप के लिए इसलिए भी आकर्षक हैं क्योंकि वहां उन्हें पारिवारिक सत्ता संघर्ष का सामना नहीं करना पड़ेगा। बिहार में RJD, संगठन, कैडर, विपक्षी चेहरा, सब कुछ तेजस्वी के हाथ में है। तेज प्रताप चाहे जितनी भी कोशिश करें, वहां हर कदम पर उन्हें परिवार से निकाला गया नेता के रूप में ही देखा जाएगा। इसके उलट यूपी और बंगाल में वे खुद को नई पार्टी का राष्ट्रीय चेहरा और लालू की सामाजिक न्याय की विरासत को आगे बढ़ाने वाला नेता के रूप में प्रोजेक्ट कर सकते हैं। यहां उनके सामने तेजस्वी जैसा सीधा पारिवारिक प्रतिद्वंद्वी नहीं है और न ही RJD जैसी स्थापित मशीनरी।