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Alzheimer in India : भारत में 2036 तक दोगुना हो सकता है अल्जाइमर का खतरा, क्या हम तैयार हैं?

Alzheimer in India : भारत में अल्जाइमर के मरीजों की संख्या तेजी से बढ़ रही है। 2036 तक यह संख्या 1.69 करोड़ तक पहुंच सकती है। जानिए इसके कारण, लक्षण और देखभाल की चुनौतियां।

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Sep 21, 2025
Alzheimer in India

Alzheimer in India : भारत में अल्जाइमर एक बड़ी समस्या बनती जा रही है। हमारी बढ़ती उम्र और बदलती लाइफ स्टाइल के कारण यह रोग अब लाखों परिवारों को प्रभावित कर रहा है, जिससे देखभाल करने वालों, स्वास्थ्य सेवाओं और सामाजिक प्रणालियों पर भारी दबाव पड़ रहा है।

एक हालिया राष्ट्रीय शोध के अनुसार, भारत में 60 वर्ष और उससे अधिक आयु के लगभग 88 लाख लोग वर्तमान में डिमेंशिया से ग्रस्त हैं। यदि यही स्थिति रही तो केवल जनसंख्या वृद्धि के कारण यह संख्या 2036 तक बढ़कर लगभग 1.69 करोड़ हो जाएगी। यह आंकड़े बताते हैं कि सिर्फ एक दशक से कुछ ज़्यादा समय में डिमेंशिया के मरीजों की संख्या दोगुनी हो जाएगी।

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बढ़ता हुआ खतरा

पूरी दुनिया में, डिमेंशिया पहले से ही करोड़ों लोगों को प्रभावित कर चुका है और आने वाले दशकों में इसके और भी तेजी से बढ़ने की उम्मीद है, जिसमें से ज्यादातर मामले निम्न और मध्यम आय वाले देशों में सामने आएंगे। यह वैश्विक प्रवृत्ति भारत के लिए निदान, देखभाल और सहायता प्रणालियों को तैयार करने की तत्काल आवश्यकता को रेखांकित करती है।

भारत में अल्जाइमर के मामले बढ़ने के कई कारण हैं। सबसे पहले, जीवन प्रत्याशा (life expectancy) बढ़ी है, जिससे स्वाभाविक रूप से उम्र से संबंधित बीमारियां भी बढ़ी हैं। दूसरा, पिछले कुछ दशकों में डायबिटीज ,ब्लड शुगर, मोटापा और हार्ट डिजीज जैसी बीमारियां बढ़ी हैं. ये बीमारियां संज्ञानात्मक गिरावट (cognitive decline) और डिमेंशिया के लिए महत्वपूर्ण जोखिम कारक हैं और शहरी और ग्रामीण दोनों भारत में आम हैं। तीसरा, बदलती लाइफ स्टाइल, खराब नींद, शारीरिक निष्क्रियता, तनाव और प्रोसेस्ड फूड से भरपूर आहार भी बढ़ते जोखिम में योगदान करते हैं.

अल्जाइमर के लक्षण

Symptoms of Alzheimer (फोटो सोर्स: AI image@Gemini)

अल्जाइमर के मुख्य लक्षण नीचे दिए गए हैं, जिन पर आपको ख़ास ध्यान देना चाहिए:

याददाश्त का कमजोर होना

जैसे-जैसे हमारी उम्र बढ़ती है, याददाश्त में कुछ कमी आना सामान्य है, लेकिन कुछ प्रकार की याददाश्त संबंधी समस्याएं चिंता का कारण हो सकती हैं:

नई जानकारी को भूलना: शुरुआती लक्षणों में से एक है नई जानकारी को याद रखने में कठिनाई। व्यक्ति बार-बार एक ही सवाल या कहानी दोहरा सकता है।

महत्वपूर्ण तारीखों और घटनाओं को भूलना: जहां कई लोगों के लिए किसी मीटिंग की तारीख भूल जाना या बाद में याद आना सामान्य है, वहीं अल्जाइमर के मरीज महत्वपूर्ण घटनाओं को पूरी तरह से भूल सकते हैं और भविष्य में उन्हें कभी भी याद नहीं कर पाते।

मेमोरी एड्स पर निर्भरता: रोग बढ़ने पर व्यक्ति रोजमर्रा के कामों और घटनाओं को याद रखने के लिए नोट्स, रिमाइंडर या परिवार के सदस्यों की मदद पर ज्यादा निर्भर हो सकता है।

रोजमर्रा के कामों में कठिनाई

रोजमर्रा की गतिविधियों में कठिनाइयां अक्सर रोग के बढ़ने पर उभरती हैं.

रोजमर्रा के काम में दिक्कत: जो काम पहले बहुत आसान थे, वे धीरे-धीरे जटिल होने लगते हैं, जैसे खाना बनाना, बिल भरना या पैसों का हिसाब रखना।

दिशा का ज्ञान खोना: अल्जाइमर से ग्रस्त व्यक्ति परिचित जगहों पर भी अपनी दिशा का ज्ञान खो सकता है।

निर्णय लेने में परेशानी

ध्यान केंद्रित करने में दिक्कत: किराने की लिस्ट को ट्रैक करने में कठिनाई या गणितीय गणनाओं से जूझना, ये सब संज्ञानात्मक कार्य में गिरावट का संकेत देते हैं।

खराब निर्णय: अचानक लिए गए अजीब फैसले, जैसे खराब वित्तीय विकल्प या मौसम के हिसाब से अनुचित कपड़े पहनना भी चिंता का कारण बन सकते हैं।

समय की अवधारणा पर प्रभाव

दिन और मौसम भूलना: मरीज अक्सर सप्ताह का दिन या वर्तमान मौसम भूल जाते हैं।

भ्रम: अपने वर्तमान स्थान के बारे में भ्रम होना भी बहुत विचलित करने वाला हो सकता है।

दृष्टि में परिवर्तन

अल्जाइमर से ग्रसित लोगों में दृश्य और स्थानिक कौशल (visual and spatial skills) में भी बदलाव हो सकते हैं, जिससे दूरी का अनुमान लगाने या दर्पण में परिचित चेहरों को पहचानने में कठिनाई हो सकती है।

संचार में कठिनाई

संवाद करते समय बीच में रुकना या खुद को बार-बार दोहराना अल्जाइमर के शुरुआती संकेत हो सकते हैं।

मरीज को अपने विचारों को व्यक्त करने के लिए सही शब्द ढूंढने में भी कठिनाई हो सकती है, जिससे दोनों पक्षों को निराशा होती है।

चीजें रखकर भूल जाना

अल्जाइमर का एक आम लक्षण है चीज़ों को रखकर भूल जाना। व्यक्ति रोज़मर्रा की चीजों को अजीब जगहों पर रखने लग सकता है, जैसे कार की चाबियां फ्रिज में या चश्मा रसोई के बर्तनों के बीच।

व्यवहार और मूड में बदलाव

अचानक मूड बदलना: बिना किसी स्पष्ट कारण के मूड में अचानक बदलाव हो सकते हैं।

सामाजिक अलगाव: अल्जाइमर के मरीज़ अक्सर उन गतिविधियों और शौक से दूर हो जाते हैं जिनका वे कभी आनंद लेते थे।

व्यक्तित्व में बदलाव: बढ़ती बेचैनी, चिंता या डर भी अल्ज़ाइमर के शुरुआत का संकेत हो सकते हैं।

उपचार और रोकथाम

हालांकि विज्ञान में बहुत उन्नति हुई है, लेकिन सबसे शक्तिशाली उपाय अभी भी सार्वजनिक स्वास्थ्य से जुड़े हुए हैं। हाई ब्लड प्रेशरप और डायबिटीज को नियंत्रित करना, शारीरिक गतिविधि को बढ़ावा देना, नींद में सुधार करना, धूम्रपान और अत्यधिक शराब का सेवन कम करना, सामाजिक मेल-जोल बनाए रखना और जीवन भर सीखने को प्रोत्साहित करना, ये सभी डिमेंशिया के जोखिम को कम करते हैं या इसकी शुरुआत में देरी करते हैं। स्वास्थ्य प्रणालियों को जागरूकता अभियानों, प्राथमिक देखभाल प्रदाताओं के लिए प्रशिक्षण और देखभाल करने वालों के लिए सामुदायिक सहायता को प्राथमिकता देनी चाहिए।

अगर भारत अभी से रोकथाम को बढ़ाने, शुरुआती निदान का विस्तार करने और देखभाल के तरीकों को मजबूत करने के लिए काम करता है तो सबसे खराब आर्थिक और सामाजिक प्रभावों को कम किया जा सकता है। लेकिन अगर देश देरी करता है, तो लाखों और परिवारों को देखभाल और विकलांगता की लंबी और महंगी अवधि का सामना करना पड़ेगा। आने वाले दो दशक क्षमता निर्माण, जागरूकता फैलाने और नए निदान और उपचार विकल्पों को नैतिक तरीके से एकीकृत करने के लिए महत्वपूर्ण समय है।

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