Bastar Hulki Dance: जब मांदर की थाप पर थिरकते कदम और गीतों में गूंजती है परंपरा की आवाज़-तभी समझ आता है कि बस्तर में “हुलकी नृत्य” सिर्फ नृत्य नहीं, बल्कि संस्कृति की सांसें हैं।
बदलती दुनिया में, जहां लोक परंपराएं धीरे-धीरे खत्म हो रही हैं, वहीं बस्तर के कोयलीबेड़ा ब्लॉक के नवगेल और सोंडवापारा गांव आज भी अपनी सांस्कृतिक पहचान बनाए हुए हैं। दिवाली के मौके पर, ढोल की थाप गूंजती है, और पूरा गांव खुशी से भर जाता है जब लड़के और लड़कियां एक साथ "हुलकी डांस" करते हैं, जो अपनी पुश्तैनी परंपराओं को अगली पीढ़ी तक पहुंचाने का संदेश देता है। यह डांस सिर्फ़ मनोरंजन नहीं है, बल्कि एकता, सामूहिकता और बस्तर की जीवंत संस्कृति का प्रतीक है।
आधुनिकता की दौड़ में जहां परंपराएं धीरे-धीरे पीछे छूट रही हैं, वहीं बस्तर के कोयलीबेड़ा ब्लॉक के नवगेल और सोंडवापारा गांव आज भी अपनी सांस्कृतिक जड़ों को बचाए हुए हैं। (Bastar Hulki Dance) हर दिवाली, यहां मांदर और ढोलक की थाप गूंजती है, और इसी के साथ शुरू होता है हुल्की डांस-यह सिर्फ एक कला ही नहीं, बल्कि सामाजिक एकता, सामूहिकता और जश्न का जीता-जागता प्रतीक भी है।
गांव के गायक घसिया राम पोटाई बताते हैं कि हुल्की डांस हरेली के त्योहार से शुरू होता है—जब खेत नई फसल से लहलहाने लगते हैं। हरेली से शुरू होकर यह परंपरा दिवाली तक चलती है। इस पूरे समय, लड़के और लड़कियां गोटुल में इकट्ठा होते हैं, पारंपरिक संगीत वाद्ययंत्रों की धुन पर गाने गाते हैं और ग्रुप में नाचते हैं।
गोटुल सिर्फ़ मनोरंजन की जगह नहीं है, बल्कि गांव की शिक्षा, अनुशासन और सामाजिक मूल्यों का केंद्र है। यहां होने वाले डांस परफॉर्मेंस के ज़रिए युवा अपनी संस्कृति को जीते हैं। (Bastar Hulki Dance) बड़े-बुज़ुर्ग कहते हैं कि इस परंपरा ने पीढ़ियों को जोड़े रखा है—समय कितना भी बदल जाए, हुल्की डांस गांव की धड़कन बना हुआ है।
हुल्की डांस दिवाली पर होने वाला एक खास इवेंट है। गांव के सिंगर के घर से शुरू होकर, यह डांस गांव की गलियों में घूमता है। पारंपरिक कपड़े पहने, जवान लड़के और लड़कियां ढोल, बांसुरी और तुम्बा की धुन पर नाचते हैं। वे हर घर के सामने रुकते हैं, नाचते हैं और खुशी और खुशहाली का संदेश फैलाते हैं। इस दौरान, पूरा गांव एक परिवार की तरह जश्न मनाने के लिए इकट्ठा होता है।
इस डांस की सबसे बड़ी खासियत यह है कि इसमें गांव की सभी जातियों और वर्गों के लोग बराबर हिस्सा लेते हैं। यह डांस किसी धर्म या वर्ग तक सीमित नहीं है, बल्कि यह पूरे समाज को जोड़ने वाला एक धागा है।
गांव के बड़े-बुजुर्ग कहते हैं, "हुल्की सिर्फ़ एक डांस नहीं है; यह हमारी आत्मा की धुन है। (Bastar Hulki Dance) जब तक यह ज़िंदा है, हमारी संस्कृति ज़िंदा है।" नई पीढ़ी का इस परंपरा को लगातार बचाकर रखना इस बात का प्रतीक है कि मॉडर्निटी के बीच भी बस्तर की लोक भावना मज़बूत बनी हुई है।