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CG News: प्राचीन कला और स्थापत्य की झलक, भोपालपटनम तालाब किनारे पर्यटन की संभावना

CG News: भोपालपटनम तालाब किनारे बिखरी प्राचीन मूर्तियाँ क्षेत्र की गौरवशाली सांस्कृतिक और धार्मिक परंपरा की कहानी बयां करती हैं। प्रशासन और पुरातत्व विभाग पहल करें तो यह स्थल सांस्कृतिक पर्यटन का केंद्र बन सकता है।

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सांस्कृतिक विरासत की अनदेखी (Photo source- Patrika)

सांस्कृतिक विरासत की अनदेखी (Photo source- Patrika)

CG News: मो. इरशाद खान/इतिहास की परतें कई बार हमारे आस-पास ही बिखरी पड़ी होती हैं, बस उनकी ओर ध्यान देने की जरूरत होती है। भोपालपटनम नगर के बड़े तालाब किनारे का दृश्य इसी का प्रमाण है। यहां झाड़ियों और सूखे पत्तों के बीच देवी-देवताओं की प्राचीन मूर्तियाँ बिखरी हुई पड़ी हैं।

उपेक्षा और समय की मार झेलते-झेलते ये प्रतिमाएँ खंडित हो चुकी हैं, लेकिन इनके स्वरूप आज भी इस क्षेत्र की सांस्कृतिक और धार्मिक समृद्धि की कहानी कहते हैं। आज भले ही ये खंडित प्रतिमाएँ मौन हैं, लेकिन इनमें छिपी कहानियाँ इस क्षेत्र की गौरवशाली परंपरा को जीवित रखने की पुकार कर रही है।

CG News: पर्यटन की संभावना

कुछ मूर्तियाँ इतनी क्षतिग्रस्त हो चुकी हैं कि उनका स्वरूप पहचानना कठिन है, जबकि कई प्रतिमाओं में देवी-देवताओं की झलक साफ देखी जा सकती है। माना जाता है कि ये मूर्तियाँ किसी प्राचीन मंदिर या धार्मिक स्थल का हिस्सा रही होंगी। समय और अनदेखी के कारण मंदिर तो विलुप्त हो गया, मगर उसकी धरोहर तालाब किनारे उपेक्षित हालत में रह गई। इन प्रतिमाओं को देखने से सहज ही अंदाजा लगाया जा सकता है कि उस दौर में कला और स्थापत्य कितना विकसित था।

पत्थरों पर की गई नक्काशी और सूक्ष्म कलात्मकता उस समय के शिल्पकारों की दक्षता को दर्शाती है। यदि प्रशासन और पुरातत्व विभाग मिलकर पहल करें, तो भोपालपटनम का यह स्थल न केवल ऐतिहासिक धरोहर के रूप में संरक्षित हो सकता है बल्कि सांस्कृतिक पर्यटन का केंद्र भी बन सकता है। इससे स्थानीय लोगों को रोजगार के अवसर भी मिलेंगे और आने वाली पीढ़ियाँ अपनी जड़ों से जुड़ सकेंगी।

विरासत का संरक्षण जरूरी

CG News: आज ये मूर्तियाँ बारिश, धूप और बदलते मौसम की मार झेल रही हैं। यदि समय रहते संरक्षण की पहल नहीं हुई, तो आने वाले कुछ वर्षों में यह मूल्यवान धरोहर पूरी तरह नष्ट हो सकती है। बस्तर अंचल के कई हिस्सों में उपेक्षित धरोहरों की स्थिति यही सवाल खड़ा करती है कि क्या हम अपनी सांस्कृतिक धरोहरों के प्रति सचेत हैं।