क्या आप जानते हैं संगीत से कैसे बंध गई शास्त्रीय गायिका बेगम परवीन सुल्ताना की जिंदगी? क्या संगीत उन्हें विरासत में मिला…? अगर नहीं, तो patrika.com पर जानें, 'जन्नत की आवाज' का नाम पाने वाली सुरों की मलिका बेगम परवीन सुल्ताना के अनकहे किस्से… बता दें कि वे भोपाल आईं और अपनी खूबसुरत आवाज के जादू यहां की फिजाओं में घोल गईं... लोग आज भी गा रहे हैं, हमें तुमसे प्यार कितना..
MP News: मानसून सीजन और बरसाती मौसम के मिजाज में ढली शाम… और फिजाओं में सुनाई दिया रेशमी अहसास देने वाला मीठा सा साज…राग यमन के सुरों भीगा…'हमें तुमसे प्यार कितना ये हम नहीं जानते… 44 साल पहले सा वही जादू, जिसने हर सुनने वाले का मन बांध लिया। 1981 में आई फिल्म कुदरत का ये गीत मखमली आवाज की जादूगर बेगम परवीन सुल्ताना ने गाया तो भारत भवन का सभागार तालियों की गूंज से नाच उठा।
संगीत प्रेमियों के लिए ये गीत आज भी उतना ही नया है, जितना उस वक्त था। और राजधानी भोपाल की सुरमयी शाम में वही आवाज, वही तरन्नुम और वही राग सुनकर दर्शक झूम उठे। उनकी बंदिशों और तराने ने दर्शकों को ऐसा बांधा कि वह सीट से उठते तालियां बजाते और फिर बैठ जाते…पद्मश्री परवीन सुल्ताना 74 साल की उम्र में भी सुरो-साज की उतनी ही पक्की, जैसी 44 साल पहले हुआ करती थी, न उनकी आवाज बदली न सुरों की रूहानियत और रवानी...
दुनियाभर में मशहूर शास्त्रीय गायिका बेगम परवीन सुल्ताना (begham parveen sultana) जब मंच पर आईं, तो भारत भवन का सभागार खचाखच भरा था। उनके पहले ही आलाप ने माहौल को भक्ति और श्रृंगार के सुरों ने भर दिया था। लेकिन उनके आते ही फिजाओं का रंग बदला, सुरों का चलन बदला और राग यमन से लेकर बंदिश, ठुमरी और फिल्मी गीत 'हमें तुमसे प्यार कितना' तक…हर प्रस्तुति ने दर्शकों को सुरों के समंदर में डुबो दिया। वो उनकी आवाज में ऐसे खो गए जैसे शहद हवाओं में घुल गया हो।
परवीन सुल्ताना का जन्म 10 जुलाई 1950 को असम के नागांव जिले के पहाड़ीपुर गांव में हुआ। उन्हें संगीत विरासत में मिला। उनके पिता इकरामुल मजिद शौकिया गायक थे और मां भी संगीत प्रेमी थीं। घर का माहौल ऐसा था कि छोटी उम्र से ही सुर-ताल उनके जीवन का हिस्सा बन गए।
उन्होंने शास्त्रीय संगीत की शिक्षा असम के नामी गुरु मोहम्मद दिलशाद खान और बाद में पंडित चिन्मोय लाहिरी से ली। किशोरावस्था तक आते-आते उनकी आवाज में ऐसी परिपक्वता आ गई कि लोग उन्हें 'संगीत की बाल प्रतिभा' कहने लगे।
परवीन सुल्ताना ने महज 12 साल की उम्र में मंच पर गाना शुरू कर दिया था। 1972 में उन्हें फिल्म 'पाकीज़ा' और फिर 'मेरे जीवने सखी' से पहचान मिली। लेकिन असली लोकप्रियता उन्हें 1981 की फिल्म 'कुदरत' के गीत 'हमें तुमसे प्यार कितना' से मिली। उनका करियर सिर्फ फिल्मी गीतों तक सीमित नहीं रहा। उन्होंने हजारों शास्त्रीय संगीत कार्यक्रमों में हिस्सा लिया। भारत के कोने-कोने और विदेश में अपनी आवाज का जादू बिखेरा। अमेरिका, इंग्लैंड, कनाडा और खाड़ी देशों में उनकी आवाज को 'स्वर्ग की आवाज' कहा गया। वे हिंदुस्तानी शास्त्रीय संगीत के पटियाला घराने से जुड़ी मानी जाती हैं।
-पद्मश्री (1979)
-पद्मभूषण (2014)
-संगीत नाटक अकादमी अवॉर्ड (1999)
कई बार राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय पुरस्कार बेगम परवीन सुल्ताना ने अपने नाम किए हैं।
परवीन सुल्ताना ने शास्त्रीय संगीत के मशहूर सरोद वादक उस्ताद दिलशाद खान से शादी की। दोनों की जोड़ी को संगीत जगत में आदर्श माना जाता है। यह रिश्ता सिर्फ वैवाहिक बंधन तक नहीं सिमटा था, बल्कि सुरों का संगम माना जाता है
परवीन सुल्ताना ने बॉलीवुड पर ही नहीं, बल्कि कई असमिया और बंगाली फिल्मों में भी अपना अलग मुकाम हासिल किया। उनके गाए गीत आज भी क्षेत्रीय संगीत प्रेमियों की जुबान पर हैं।
भोपालमें आयोजित कार्यक्रम में उन्होंने शास्त्रीय आलाप से शुरुआत की और फिर ठुमरी 'बाबुल मोरा नैहर छूटो ही जाए' गाकर दर्शकों को भावुक कर दिया। अंत में जब उन्होंने 'हमें तुमसे प्यार कितना' सुनाया तो पूरा सभागार देर तक तालियों से गूंजता रहा।