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एमपी कैबिनेट में ऐतिहासिक फैसला, नगरीय निकाय चुनावों में बड़ा बदलाव, जानें क्या फायदे और नुकसान?

MP News: मध्य प्रदेश की मोहन कैबिनेट में ऐतिहासिक फैसला, नगरीय निकाय चुनावों में किया बड़ा बदलाव, अब प्रत्यक्ष चुनाव प्रणाली से होंगे नगरीय निकायों के अध्यक्षों के चुनाव, जानें क्यों हैं जरूरी, नगरीय निकायों का इतिहास, डायरेक्ट इलेक्शन के फायदे और नुकसान

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Nagariya Nikay Chunav in MP Direct Election System of urban bodies

Nagariya Nikay Chunav in MP Direct Election System of urban bodies(फोटो: पत्रिका)

MP News: संजना कुमार@patrika.com: मध्यप्रदेश कैबिनेट ने एक ऐतिहासिक फैसला लेते हुए नगर पालिका और नगर परिषद अध्यक्षों के चुनाव (Nagariya Nikay Chunav) की प्रक्रिया में बड़ा बदलाव कर दिया है। अब इस पद के लिए अपना नेता जनता खुद चुनेगी। लंबे समय से चली आ रही बहस को खत्म करते हुए मोहन सरकार ने कहा है कि, 'लोकतंत्र तभी मजबूत होगा जब, जनता को प्रत्यक्ष रूप से अपने प्रतिनिधियों को चुनने का अधिकार दिया जाए। यह बदलाव न केवल राजनीतिक रूप से अहम है बल्कि, स्थानीय शासन की तस्वीर भी बदल सकता है।

जानें निकाय चुनाव क्यों ज़रूरी?

शहरी निकाय लोकतंत्र की तीसरी सीढ़ी हैं। संसद और विधानसभा जहां नीतियां बनाते हैं, वहीं नगर निगम और नगर पालिका जैसी संस्थाएं लोगों के उनके दैनिक जीवन से जुड़ी सेवाएं उपलब्ध कराती हैं। इनमें सड़क, सफाई, पानी, रोशनी और शहरी विकास जैसी सुविधाएं शामिल हैं। निकाय चुनावों के माध्यम से जनता को यह अधिकार मिलता है कि वे अपने नजदीकी प्रतिनिधियों को चुनें और सीधे उनसे सवाल पूछ का अधिकार रखें। यही कारण है कि इन चुनावों को लोकतंत्र की जड़ों को मजबूत करने वाला सबसे अहम चुनाव माना जाता है।

निकाय चुनावों का इतिहास

ब्रिटिश काल में नगरपालिकाओं का अस्तित्व सामने आया, उस समय कर संग्रह और स्थानीय प्रशासन के लिए इन संस्थाओं को स्थापित किया गया था। वहीं स्वतंत्र भारत में 74वें संविधान संशोधन (1992) के बाद शहरी निकायों को संवैधानिक मान्यता दी गई।

मध्यप्रदेश में नगरीय निकाय चुनाव का इतिहास

एमपी में 2000 के दशक तक अध्यक्षों का चुनाव जनता सीधे तौर पर ही करती रही। लेकिन 2019 में कमलनाथ सरकार ने यह व्यवस्था बदली और अध्यक्षों के चुनाव की जिम्मेदारी पार्षदों को सौंप दी। यानी पार्षद तय करते थे कि नगरीय निकायों का अध्यक्ष होगा। इसके पीछे तर्क दिया गया कि इससे सामूहिक नेतृत्व को बढ़ावा मिलेगा। जबकि इस व्यवस्था में राजनीतिक जोड़-तोड़ और अस्थिरता की स्थिति उत्पन्न हो जाती थी। बार-बार अविश्वास प्रस्ताव से काम अधर में अटक जाते थे।

जानें नई और पुरानी प्रणाली में क्या है अंतर

अब आगे क्या?

2025 में मोहन यादव सरकार ने एक बार फिर से प्रत्यक्ष चुनाव की व्यवस्था लागू करने का ऐलान कर दिया है। अब अध्यक्षों के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव की अवधि भी 3 साल से बढ़ाकर 4.5 साल कर दी गई है। इससे स्थिरता आएगी। जनता का सीधा जनादेश ही लोकतंत्र की असली ताकत है। नगर पालिका और नगर परिषद अध्यक्षों को बार-बार अविश्वास प्रस्तावों से बचाने के लिए उनके प्रत्यक्ष चुनाव की व्यवस्था लागू करने कैबिनेट ने ये अहम निर्णय लिया है। इसी को ध्यान में रखते हुए नगर पालिका (संशोधन) अध्यादेश, 2025 को मंजूरी दी गई है। इसके तहत मध्यप्रदेश नगर पालिका अधिनियम, 1961 की धारा 19, 20(2), 32 से 35, 43, 45, 47, 55, 63 और 328 सहित कई धाराओं में संशोधन किया जाएगा। तब जाकर 2027 में होने वाले नगरीय निकाय चुनावों में इस प्रक्रिया को अपनाया जाएगा।

कब से लागू होगा प्रत्यक्ष नगरीय निकाय चुनाव

प्रत्यक्ष नगरीय निकाय चुनाव के तहत अब नगर पालिका और नगर परिषदों के अध्यक्ष का चुनाव प्रत्यक्ष प्रणाली से किया जाएगा। यह नई व्यवस्था वर्ष 2027 के आम चुनाव से लागू होगी।

नगरीय निकाय के सीधे चुनाव पर विपक्ष की प्रतिक्रिया, किया बड़ा तंज

एमपी में नगरीय निकाय चुनावों में डायरेक्ट चुनाव की प्रक्रिया पर प्रदेश की बीजेपी सरकार पर विपक्ष ने बड़ा तंज किया है। नेता प्रतिपक्ष उमंग सिंघार ने बीजेपी पर बड़ा हमला बोलते हुए कहा है कि 'सरकार के पास खरीद-फरोख्त के लिए पैसा ही नहीं बचा है। इसलिए डायरेक्ट चुनाव की प्रक्रिया लागू कर दी है।' यही नहीं उमंग सिंघार ने यह भी कहा कि, 'मध्य प्रदेश की बीजेपी सरकार लगातार कर्ज में डूब रही है, सरकारी खजाना खाली हो चुका है।' छात्र संघ चुनावों की ओर सरकार का ध्यान आकर्षित करने के लिए उमंग सिंघार ने साफ कहा, मैं सरकार को बताना चाहूंगा कि छात्र संघ के चुनाव पिछले लंबे समय से बंद हैं, उन्हें फिर से शुरू किया जाना चाहिए।'