
कांग्रेस 140 साल के इतिहास में सबसे बुरे दौर से गुजर रही है।
देश की सबसे पुरानी पार्टी कांग्रेस की स्थापना को 140 साल हो गए हैं। 1885 में 28 दिसंबर को इस पार्टी की स्थापना हुई थी। राजनीतिक रूप से कांग्रेस लगभग उसी अवस्था में है, जिसमें कोई बुजुर्ग इंसान सौवें साल के करीब होता है। जर्जर काया वाला इंसान। मरणासन्न!
नेहरू के दौर की बात छोड़ दें, तो भी कभी लोकसभा की तीन-चौथाई सीटें जीत चुकी कांग्रेस 2019 में दस फीसदी सीटें भी जीत नहीं सकी थी। आम धारणा है कि 2014 में नरेंद्र मोदी के आने के बाद से कांग्रेस लगातार नीचे जा रही है और नरेंद्र मोदी के असर के चलते उसका यह हाल हुआ। लेकिन, सच यह है कि 2014 से काफी पहले से कांग्रेस ढलान की ओर जाने लगी थी। 2014 के बाद के दोनों चुनावों में उसने पहले से बेहतर प्रदर्शन ही किया है।
1984 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस को करीब 50 फीसदी वोट और 75 फीसदी से ज्यादा सीटें मिली थीं। पार्टी के अच्छे दिन उसके बाद से ही खत्म होने लगे थे।
यह बात जरूर है कि 2014 और उसके बाद के चुनावों में उसका प्रदर्शन कुछ ज्यादा ही बुरा रहा है। 2019 और 2024 में थोड़े सुधार के बावजूद इतना बुरा कि कई लोग कांग्रेस का मरसिया भी पढ़ने लगे। लेकिन, इसका कारण भी अकेले नरेंद्र मोदी या भाजपा नहीं है। खुद कांग्रेस भी है।
किस चुनाव में कांग्रेस का प्रदर्शन कैसा रहा, इस चार्ट में देखिए।
| लोकसभा चुनाव | मिली सीटें | लड़ी सीटें | स्ट्राइक रेट | वोट शेयर (%) | सीट शेयर (%) |
| 1952 | 364 | 45 | 90.77 | ||
| 1957 | 371 | 47.8 | 92.05 | ||
| 1962 | 361 | 488 | 73.97540984 | 44.72 | 73.08 |
| 1967 | 283 | 516 | 54.84496124 | 40.78 | 54.42 |
| 1971 | 352 | 441 | 79.8185941 | 43.68 | 67.95 |
| 1977 | 154 | 492 | 31.30081301 | 34.52 | 28.41 |
| 1984 | 414 | 517 | 80.07736944 | 48.12 | 76.52 |
| 1989 | 197 | 510 | 38.62745098 | 39.53 | 37.24 |
| 1991 | 244 | 500 | 48.8 | 36.4 | 45.69 |
| 1996 | 140 | 529 | 26.46502836 | 28.8 | 25.78 |
| 1998 | 141 | 477 | 29.55974843 | 25.82 | 25.97 |
| 1999 | 114 | 453 | 25.16556291 | 28.3 | 20.99 |
| 2004 | 145 | 417 | 34.77218225 | 26.53 | 26.7 |
| 2009 | 206 | 440 | 46.81818182 | 28.55 | 37.94 |
| 2014 | 44 | 464 | 9.482758621 | 19.31 | 8.1 |
| 2019 | 52 | 421 | 12.35154394 | 19.46 | 9.58 |
| 2024 | 99 | 328 | 30.18 | 21.4 | 18.23 |
सही मायने में 1996 से ही कांग्रेस के 'बुरे दिन' शुरू हो गए थे। इसकी शुरुआत असल में नेतृत्व के संकट से हुई थी। यह संकट आज तक बना हुआ है। कांग्रेस के बुरे हाल के कारणों पर एक नजर डालते हैं:
बीते सालों में कांग्रेस में नेतृत्व का संकट रहा है। पार्टी की कमान अक्सर नेहरू-गांधी परिवार के ही हाथों में रही। जब अध्यक्ष पार्टी से बाहर का रहा, तब भी। नेहरू-गांधी की विरासत का असर और सत्ता का साथ जब तक रहा, तब तक तो यह व्यवस्था ज्यादा नुकसानदायक नहीं रही, लेकिन इनके कमजोर पड़ते ही पार्टी की कमजोरी भी सामने आने लगी।
दिल्ली में जहां पार्टी का केंद्र गांधी परिवार के इर्द-गिर्द ही रहा, वहीं राज्यों में अलग-अलग क्षत्रपों ने पार्टी पर अपना कब्जा बना कर रखा। नतीजा रहा कि पार्टी कमजोर पड़ती गई। सत्ता जाने के बाद कई क्षत्रप मजबूत राजनीतिक भविष्य की तलाश में पार्टी से अलग भी होते गए।
पार्टी का परिवार या क्षत्रपों से अलग विस्तार नहीं होने के चलते संगठन का ढांचा भी कमजोर होता गया। बूथ स्तर पर कार्यकर्ताओं की भारी कमी है। बीजेपी 14 करोड़ सदस्य होने का दावा करती है। इसकी तुलना में कांग्रेस के सदस्य काफी कम हैं। कई राज्यों में कांग्रेस के पास ब्लॉक स्तर की समितियां तक नहीं हैं। केन्द्रीय या राज्य स्तर पर जो फैसले लिए जाते हैं, वे जमीनी स्तर तक पहुंच नहीं पाते और न ही उन पर अमल हो पाता है।
कांग्रेस से अलग होकर कई नेताओं ने अपनी अलग क्षेत्रीय पार्टी बनाई और कांग्रेस को नुकसान पहुंचाया। पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी की तृणमूल कांग्रेस, महाराष्ट्र में शरद पवार की एनसीपी, कांग्रेस में टूट से बनी पार्टियां ही हैं। ऐसे कई और उदाहरण हैं।
कांग्रेस से अलग होकर बनी पार्टियों के अलावा भी कई क्षेत्रीय दलों ने कांग्रेस को नुकसान पहुंचाया और उसके पारंपरिक वोट बैंक में सेंध लगाई। उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी व बहुजन समाज पार्टी, बिहार में राष्ट्रीय जनता दल, जेडीयू, दक्षिण भारत में डीएमके, एआईएडीएमके, टीडीपी आदि अनेक उदाहरण हैं।
1990 के दशक में जब पार्टी हारती गई और लगातार कमजोर पड़ती गई, तब से इसका ठोस समाधान नहीं निकाल पाई। यहां चार्ट में देख सकते हैं, किस चुनाव के समय कौन कांग्रेस के अध्यक्ष थे और उनकी अध्यक्षता में चुनाव परिणाम कैसा रहा।
| चुनाव वर्ष | कांग्रेस अध्यक्ष | कुल सीटें (लोकसभा) | जीती गई सीटें | परिणाम |
| 1951-52 | जवाहरलाल नेहरू | 489 | 364 | पूर्ण बहुमत |
| 1957 | यू. एन. ढेबर | 494 | 371 | पूर्ण बहुमत |
| 1962 | नीलम संजीव रेड्डी | 494 | 361 | पूर्ण बहुमत |
| 1967 | के. कामराज | 520 | 283 | बहुमत |
| 1971 | जगजीवन राम | 518 | 352 | भारी बहुमत |
| 1977 | देवकांत बरुआ | 542 | 153 | हार |
| 1980 | इन्दिरा गांधी | 542 | 351 | पूर्ण बहुमत |
| 1984 | राजीव गांधी | 533 | 415 | ऐतिहासिक रिकॉर्ड |
| 1989 | राजीव गांधी | 545 | 197 | विपक्ष में |
| 1991 | पी. वी. नरसिम्हा राव | 545 | 244 | अल्पमत सरकार |
| 1996 | पी. वी. नरसिम्हा राव | 545 | 140 | हार |
| 1998 | सीताराम केसरी | 545 | 141 | हार |
| 1999 | सोनिया गांधी | 545 | 114 | हार |
| 2004 | सोनिया गांधी | 543 | 145 | गठबंधन सरकार (UPA) |
| 2009 | सोनिया गांधी | 543 | 206 | गठबंधन सरकार (UPA-II) |
| 2014 | सोनिया गांधी | 543 | 44 | सबसे खराब प्रदर्शन |
| 2019 | राहुल गांधी | 543 | 52 | हार |
| 2024 | मल्लिकार्जुन खड़गे | 543 | 99 | विपक्ष (INDIA गठबंधन) |
पिछले कुछ सालों में कांग्रेस को भाजपा के ‘हिंदुत्व’ की नीति से बड़ी चुनौती मिली है। बीजेपी ने हिंदुत्व को लेकर अपना कट्टर रुख छिपाने की कोई कोशिश नहीं की। उसकी इस नीति का जवाब कैसे देना है, यह तय करने में कांग्रेस वैसी स्पष्टता दिखाने में पीछे रही है।
राम मंदिर के पुराने मुद्दे की काट में भी कांग्रेस ने कभी बीजेपी की तरह आक्रामकता नहीं दिखाई। कभी-कभी तो वह ‘नरम हिंदुत्व’ का सहारा लेते भी दिखी। ऐसे में उसने अपने पारंपरिक वोटर्स को भ्रमित किया और अपनी स्थिति कमजोर की।
1980 के दशक और गठबंधन सरकारों का दौर शुरू होने के बाद से भ्रष्टाचार का मुद्दा भी कांग्रेस पर भारी पड़ता गया। बोफोर्स घोटाले के मुद्दे ने कांग्रेस को भारी नुकसान पहुंचाया। आखिरी बार केंद्र में उसके सत्ता में रहते कई घोटाले (2जी, कोयला, कॉमनवेल्थ आदि) खूब चर्चा में रहे। विरोधी भाजपा के लिए कांग्रेस पर हमला बोलने में ये कारगर हथियार साबित हुए।
2014 के बाद से चुनाव में सोशल मीडिया बड़ा हथियार बनता रहा है। इसमें बीजेपी की तुलना में कांग्रेस हर बार पीछे ही रहती है। पार्टी और बूथ प्रबंधन में भी कांग्रेस पर बीजेपी हर बार भारी पड़ती रही है। बीजेपी ने राष्ट्रवाद का एक नैरेटिव बनाया है, कांग्रेस इसकी काट भी नहीं ढूंढ पा रही है।
Published on:
28 Dec 2025 06:36 am
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