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बिहार चुनाव नतीजों के आंकड़े तो देख लिए, अब डराने वाले इन आंकड़ों पर भी ध्यान दें

बिहार विधानसभा चुनाव 2025 में एनडीए की ऐतिहासिक जीत के पीछे महिलाओं के खाते में 10 हजार रुपये का बड़ा हाथ है। इस योजना से 1.5 करोड़ महिलाओं को रोजगार शुरू करने में मदद मिली, जिससे महिला मतदाताओं में एनडीए के प्रति समर्थन बढ़ा।

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Nov 15, 2025
बिहार के सीएम नीतीश कुमार। (फोटो- IANS)

बिहार विधानसभा चुनाव 2025 में एनडीए को जैसी जीत (202 सीट) मिली, वैसी पहले कभी नहीं मिली। इस जीत के कई कारण बताए जा रहे हैं।

एक बड़ा कारण चुनाव से ऐन पहले करीब डेढ़ करोड़ महिलाओं के खाते में दस-दस हजार रुपये जमा करवाने को भी माना जा रहा है। इन महिलाओं को रोजगार शुरू करने के मकसद से सरकार की ओर से ये पैसे दिए गए।

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रोजगार कैसा चलता है, इसके आधार पर आगे भी दो लाख रुपये तक मदद करने का वादा पुरानी सरकार का है। ऐसी कई और भी घोषणाएं और वादे जाती हुई सरकार ने किए हैं।

नई सरकार के लिए यह बड़ी आर्थिक चुनौती पेश करने वाली है। लेकिन, कई और चुनौतियां हैं। इन पर अगर काम हो तो वाकई राज्य का विकास हो सकता है।

लोगों की कमाई कम है, प्रति व्यक्ति आय बढ़े

बिहार में लोगों की प्रति व्यक्ति आय 60,337 रुपये (आरबीआई के मुताबिक) है, जबकि राष्ट्रीय औसत 1,88,892 रुपये का है। जाहिर है, कमाई कम होने से लोग गरीब हैं और पैसों की खातिर राज्य छोड़ कर बाहर भी जाते हैं।

राज्य के 65 फीसदी परिवार (2017 का आंकड़ा) ऐसे हैं, जिसका कम से कम एक व्यक्ति दूसरे राज्य में है। 1998-99 में ऐसे 36 प्रतिशत परिवार थे। और पहले जाएं तो 1981 में 10-15 प्रतिशत परिवार ही ऐसे थे, जिसका कम से कम एक सदस्य राज्य के बाहर रह रहा था।

पलायन बड़ी समस्या

बिहार में पलायन कोई नई समस्या नहीं है। यह अंग्रेजों के जमाने से चली आ रही है। बीते दशकों में यह तेजी से बढ़ी है। शुरू में इसका मुख्य कारण गरीबी हुआ करता था, अब इसमें कमाई के साथ पढ़ाई भी जुड़ गया है।

पढ़ने और पढ़ कर कमाने के लिए युवा बड़ी संख्या में बाहर जा रहे हैं। खेती लायक जमीन और कारखानों आदि की कमी के चलते पलायन ज्यादा होता है।

बिहार में 54 फीसदी लोग काम के लिए खेती पर निर्भर हैं, जबकि राष्ट्रीय स्तर पर यह आंकड़ा 46 फीसदी का है। उत्पादन क्षेत्र में स्थिति अलग है। पांच फीसदी कामकाजी लोग ही उत्पादन क्षेत्र में हैं, जबकि राष्ट्रीय स्तर पर 11 प्रतिशत हैं।

कमाई का जरिया नहीं

बिहार में पलायन की समस्या हर जाति –वर्ग में है। मुसलमानों में थोड़ा ज्यादा और महिलाओं में कम (2016 के मुताबिक पांच प्रतिशत) है।

2017 में राज्य से बाहर गए लोगों ने औसत सालाना 48,662 रुपये (मासिक 4000 रुपये) अपने घर भेजे। प्रवासियों द्वारा भेजी गई रकम गांवों की कुल आमदनी का 28 प्रतिशत थी।

पलायन की बड़ी वजह अवसरों की कमी है। रोजगार के जो अवसर हैं भी, उनमें कमाई ज्यादा नहीं है। नतीजा है गरीबी और बेरोजगारी।

नीति आयोग के मुताबिक, बिहार के 33.8 प्रतिशत लोग गरीब हैं। भारत के लिए यह आंकड़ा 15 प्रतिशत है। 15-29 साल के 16.7 प्रतिशत युवा बेरोजगार हैं।

पढ़ाई-लिखाई में सुधार और जनसंख्या पर लगाम की जरूरत

पढ़ाई-लिखाई की हालत भी सुधारने की जरूरत है। 2017-18 के आंकड़ों (नेशनल सैंपल सर्वे) के मुताबिक बिहार में साक्षरता दर 70.9 प्रतिशत थी, जबकि राष्ट्रीय स्तर पर 77.7 फीसदी थी।

कॉलेज में दाखिले का अनुपात 17.1 प्रतिशत (राष्ट्रीय आंकड़ा 28.4) था, जबकि मिडिल लेवल पर पढ़ाई छोड़ने वाले राष्ट्रीय औसत की तुलना में 5 गुना और सेकंडरी लेवल पर दो गुना ज्यादा थे।

इन सबके बीच बढ़ती जनसंख्या समस्या को और गंभीर कर रही है। राज्य में 2023 में जन्म दर (प्रति महिला पैदा हुए बच्चे) 2.8 थी, जबकि राष्ट्रीय स्तर पर यह आंकड़ा 1.9 था। नई सरकार इन आंकड़ों को सुधारने पर गौर नहीं करेगी, तो बिहार का हाल नहीं सुधरेगा।

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