INR vs USD: आंकड़े बताते हैं कि भारतीय रुपया साल 2014 से लेकर अब तक 30.6 फीसदी गिर चुका है। यूएस टैरिफ और नई वीजा पॉलिसी ने रुपये पर दबाव बनाया है।
भारतीय रुपये में पिछले कुछ महीनों से डॉलर के मुकाबले गिरावट देखी जा रही है। गुरुवार को भी भारतीय रुपया टाइट रेंज में ट्रेड करता दिखा। गुरुवार सुबह भारतीय रुपया अमेरिकी डॉलर के मुकाबले 88.62 पर ट्रेड कर रहा था। इस हफ्ते की शुरुआत में रुपया डॉलर के मुकाबले 88.79 के रिकॉर्ड निचले स्तर पर पहुंच गया था। इस तिमाही में रुपये में 3 फीसदी से अधिक की गिरावट आई है। यह अप्रैल-जून 2022 की तिमाही के बाद से सबसे बड़ी गिरावट है। आंकड़े बताते हैं कि साल 2014 से अब तक भारतीय रुपया यूएस डॉलर के मुकाबले करीब 30.6 फीसदी गिर चुका है।
ब्रोकरेज फर्म केयर ऐज ने एक नोट में कहा, 'भारतीय रुपया डॉलर के मुकाबले 88 के लेवल को पार कर चुका है और रिकॉर्ड निचले स्तर के पास ट्रेड कर रहा है। अधिकांश प्रमुख करेंसीज ने जहां इस साल अब तक मजबूती दर्ज की है, वहीं रुपया अवमूल्यन का शिकार हुआ है। अमेरिकी सेकेंडरी टैरिफ, हाल में घोषित H-1B वीजा फीस वृद्धि और लगातार एफपीआई (विदेशी पोर्टफोलियो निवेशक) आउटफ्लो का दबाव रुपये पर बना हुआ है।'
ब्रोकरेज फर्म का अनुमान है कि रुपया दबाव में बना रहेगा। फर्म ने कहा, 'RBI करेंसी में अस्थिरता को नियंत्रित करने के लिए हस्तक्षेप कर सकता है। इसके बावजूद हम FY26 के अंत तक डॉलर-रुपया दर 85 से 87 के दायरे में रहने का अनुमान बनाए रखते हैं। यह नरम डॉलर, मजबूत युआन, भारत का संभालने योग्य चालू खाता घाटा (CAD) और संभावित अमेरिका-भारत व्यापार समझौते से समर्थित होगा।'
-डॉलर इंडेक्स इस साल अब तक करीब 10% कमजोर हुआ है, जिस पर अमेरिकी व्यापार नीति का दबाव है।
-फेड ने सितंबर में अपनी नीतिगत दर 0.25 फीसदी घटाई थी और अब उसका अनुमान है कि इस साल और दो कटौती होंगी।
-कमजोर लेबर मार्केट डेटा ने और कटौती की उम्मीदों को मजबूत किया है।
-युआन इस साल अब तक डॉलर के मुकाबले 2.5% बढ़ा है।
-इस बढ़त को कमजोर डॉलर और अमेरिकी टैरिफ दरों में कमी ने सपोर्ट किया है, जिससे चीन का ग्रोथ आउटलुक सुधरा है।
-कमजोर डॉलर, पीबीओसी (PBOC) की मजबूत डेली फिक्सिंग और मजबूत चीनी इक्विटी मार्केट युआन को निकट भविष्य में सपोर्ट दे सकते हैं।
ब्रोकरेज का अनुमान है कि भारत का CAD FY26 में जीडीपी का 0.9% रहेगा, जिसे सीमित दायरे में कच्चे तेल की कीमतें और सेवाओं का मजबूत निर्यात सहारा देंगे। ब्रोकरेज ने लिखा, 'हमारा बेसलाइन अनुमान है कि अमेरिकी टैरिफ 15-20% रहेंगे। हालांकि, यदि 50% टैरिफ बरकरार रहे, तो CAD थोड़ा बढ़कर 1.2 से 1.3% हो सकता है, लेकिन यह अभी भी मैनेजेबल रहेगा।' एफपीआई प्रवाह असमान रहा है। अब तक लगभग 10 अरब डॉलर का शुद्ध एफपीआई आउटफ्लो रहा है, जो इक्विटी आउटफ्लो से प्रेरित है, जबकि डेट इनफ्लो ने आंशिक रूप से इसकी भरपाई की है।
कम महंगाई, आरबीआई की ब्याज दरों में कटौती और लोअर टैक्स बर्डन भारत की ग्रोथ स्टोरी को सपोर्ट देते हैं, जो इसे अभी भी सबसे तेजी से बढ़ती प्रमुख अर्थव्यवस्था के रूप में स्थापित करते हैं। खासतौर पर हालिया जीएसटी सुधार एक बड़ा कदम है, जिसने भारत के इनडायरेक्ट टैक्स सिस्टम में महत्वपूर्ण सुधार किया है।
ब्रोकरेज फर्म ने कहा कि निकट अवधि का दबाव रुपये को 88 से 89 के दायरे में रख सकता है। खासतौर पर इंडिया-यूएस ट्रेड डील से जुड़ी अनिश्चितताओं और हाल में घोषित अमेरिकी H-1B वीजा फीस हाइक ने रुपये पर दबाव डाला है।
ब्रोकरेज फर्म ने कहा, 'हमने FY26 के अंत तक डॉलर-रुपया दर के लिए 85 से 87 का अनुमान बनाए रखा है, जो डॉलर में नरमी, मजबूत युआन, मैनेजेबल CAD और संभावित अमेरिका-भारत ट्रेड डील से समर्थित होगा। वास्तविक प्रभावी विनिमय दर आधार पर रुपया अवमूल्यित है और अपने पांच साल के औसत से नीचे है, जो मध्यम अवधि में कुछ सपोर्ट की गुंजाइश दिखाता है। इसके बावजूद, भारत-अमेरिका व्यापार वार्ता और अमेरिकी वीजा नीतियों पर नजर रखना जरूरी होगा, क्योंकि ये बाजार भावना और एफपीआई प्रवाह पर असर डाल सकते हैं।'