
अरावली की पहाड़ियों को बचाने के लिए लोग आंदोलन कर रहे हैं। (Photo: IANS)
Save Aravali Hills : सुप्रीम कोर्ट की नई परिभाषा के अनुसार, अरावली पर्वतमाला को अरावली जिलों में स्थित किसी भी भू-आकृति के रूप में परिभाषित किया गया है, जिसकी स्थानीय भू-आकृति से ऊंचाई 100 मीटर या उससे अधिक हो। मतलब यह कि किसी पहाड़ी को तभी अरावली माना जाएगा, जब वह अपने स्थानीय धरातल से 100 मीटर या उससे अधिक ऊंची हो। इस परिभाषा के बाद सोशल मीडिया से सड़क तक अरावली बचाओ(Save Aravali Campaign) की बातें होनी लगी है।
Aravali Hills News : केंद्र द्वारा नियुक्त विशेषज्ञ समिति द्वारा दी गई अरावली की पहाड़ियों की परिभाषा को सर्वोच्च न्यायालय द्वारा स्वीकार किए जाने के बाद, इस फैसले ने काफी बहस छेड़ दी है। पर्यावरण कार्यकर्ताओं ने चिंता व्यक्त की है कि 100 मीटर की सीमा से नीचे आने वाली पहाड़ियां कानूनी संरक्षण खो सकती हैं और खनन के लिए उन्हें साफ किया जा सकता है, जिससे भारत की सबसे पुरानी पर्वत श्रृंखला की पारिस्थितिक निरंतरता को संभावित रूप से खतरा हो सकता है।
हालांकि सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र द्वारा नियुक्त एक विशेषज्ञ समिति की सिफारिशों के बाद अरावली पहाड़ियों की ऊंचाई-आधारित एक समान परिभाषा को स्वीकार कर लिया है, लेकिन ऐसे कई उदाहरण सामने आए हैं, जब दुनिया की सबसे पुरानी पर्वत श्रृंखलाओं में से एक की सुरक्षा के लिए सुप्रीम कोर्ट, पंजाब और हरियाणा हाई कोर्ट और एनजीटी ने कई बार सख्त तरीके से हस्तक्षेप किया। आइए, यह जानते हैं कि सुप्रीम कोर्ट ने अरावली को बचाने के लिए कब और क्या निर्देश दिए। इसके साथ ही एक्सपर्ट से यह समझने की कोशिश करते हैं क्यों पहाड़ों का बचा रहना हमारे अस्तित्व और विकास के लिए जरूरी हैं?
सुप्रीम कोर्ट ने 2014 में हरियाणा सरकार के लापरवाह अधिकारियों पर शिकंजा कसते हुए कहा कि वह अरावली पहाड़ियों में अवैध खनन और पत्थर-कुचलने वाली इकाइयों के प्रसार पर किसी और रिपोर्ट का इंतजार किए बिना सभी दोषी अधिकारियों पर मुकदमा चलाएगा।
अक्टूबर 2025 में सुप्रीम कोर्ट ने पांच सेवानिवृत्त वरिष्ठ भारतीय वन सेवा (आईएफएस) अधिकारियों और पर्यावरण अधिकार समूह 'पीपल फॉर अरावली' द्वारा दायर याचिका पर हरियाणा सरकार को प्रस्तावित अरावली जंगल सफारी पर कोई भी काम शुरू न करने का निर्देश दिया था। हरियाणा सरकार अरावली पहाड़ियों में 10 हजार एकड़ भूमि पर जंगल सफारी पार्क विकसित करना चाहती थी।
मई 2025 में सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली सरकार के वरिष्ठ अधिकारियों, दिल्ली नगर निगम (एमसीडी) के आयुक्त और एक निजी डेवलपर को कारण बताओ नोटिस जारी किया। इस नोटिस में एम सी मेहता बनाम भारत संघ मामले के तहत 1996 के अपने निर्देश के कथित उल्लंघन और वसंत कुंज के "मॉर्फोलॉजिकल रिज" क्षेत्र में एक आवासीय समिति के निर्माण को आगे बढ़ाने के लिए स्पष्टीकरण मांगा।
वर्ष 1996 के निर्देश में कहा गया था कि पहाड़ी की भूमि को अतिक्रमण और अदालत की पूर्व अनुमति के बिना गैर-वन उपयोग से सुरक्षित रखा जाना चाहिए।
सुप्रीम कोर्ट ने 2018 में राजस्थान के अरावली क्षेत्र में "गायब" हो चुकी 31 पहाड़ियों पर हैरानी जताई और राज्य सरकार को वहां के 115.34 हेक्टेयर क्षेत्र में 48 घंटों के भीतर अवैध खनन रोकने का निर्देश दिया।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि हालांकि राजस्थान अरावली में खनन गतिविधियों से लगभग 5,000 करोड़ रुपये की रॉयल्टी कमा रहा है, लेकिन वह दिल्ली में लाखों लोगों के जीवन को खतरे में नहीं डाल सकता। सुप्रीम कोर्ट तर्क देते हुए कहा था कि पहाड़ियों का गायब होना राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र (एनसीआर) में प्रदूषण के स्तर में वृद्धि का एक कारण हो सकता है।
वर्ष 2019 में सुप्रीम कोर्ट ने हरियाणा सरकार को चेतावनी दी थी कि अगर उसने अरावली पहाड़ियों या वन क्षेत्र के साथ किसी भी तरह का कोई छेड़छाड़ किया है तो वह मुसीबत में पड़ जाएगी।
सुप्रीम कोर्ट ने 2021 में हरियाणा और फरीदाबाद नगर निगम को खोरी गांव के पास अरावली वन क्षेत्र में लगभग 10,000 आवासीय निर्माणों सहित अतिक्रमणों को हटाने का निर्देश देने वाले अपने आदेश पर रोक लगाने से इनकार कर दिया, यह कहते हुए कि हम चाहते हैं कि हमारी वन भूमि को खाली कराया जाए।
सर्वोच्च न्यायालय ने 7 जून 2021 को राज्य और फरीदाबाद नगर निगम को गांव के पास अरावली वन क्षेत्र में सभी अतिक्रमणों को हटाने का निर्देश दिया था, यह कहते हुए कि भूमि हड़पने वाले कानून के शासन की आड़ नहीं ले सकते और निष्पक्षता की बात नहीं कर सकते।
पहाड़, नदी और समुद्र की चिंता करने वाले सामाजिक कार्यकर्ता अनिल प्रकाश ने पत्रिका से बातचीत में कहा कि अगर अरावली में टूट-फूट जारी रही तो दिल्ली, हरियाणा और उत्तर प्रदेश के बड़े इलाकों में प्रदूषण का लेवल बढ़ जाएगा। उन्होंने कहा कि अरावली राजस्थान की गर्म हवा के थपेड़ों को दिल्ली पहुंचने से बहुत हद तक रोकती है, अन्यथा दिल्ली का पारा हर रोज नए रिकॉर्ड कायम करने में कोर, कसर नहीं रखेगा।
विज्ञान और पर्यावरण के मामलों के जानकार पत्रकार सोपान जोशी ने पत्रिका से बातचीत में कहते हैं कि इसपर बात नहीं होती कि अरावली नहीं होती तो दिल्ली देश की राजधानी नहीं बनती।
उन्होंने अरावली की महत्ता पर बताया, 'अरावली दुनिया में प्राचीनतम पहाड़ों में से एक है। दिल्ली के एक ओर यमुना है तो दूसरी ओर अरावली है। अरावली दिल्ली के दक्षिण-पश्चिम दिशा में स्थित है। यमुना दिल्ली के पूर्व में बहती है। दिल्ली शुरू से ही हप्राकृतिक तौर पर काफी सुरक्षित जगह रही है इसलिए यह राजधानी बनी। अगर अरावली नहीं होती तो दिल्ली का राजधानी बन पाना संभव नहीं हो पाता।'
Published on:
24 Dec 2025 06:00 am
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