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रियासत काल से पूजी जा रही हैं मां महामाया, 400 वर्षों से श्रद्धालुओं पर बरसा रहीं कृपा, जानें नीम की छांव से भव्य मंदिर तक की कहानी

Navratri 2025: माता पहले नीम के पेड़ की छांव में पिंड रूप विराजित थीं। प्रदेश में एक रिवाज है कि प्रत्येक गांव की एक ग्राम देवी होती हैं, ताकि इनकी कृपा से गांव में दैवीय प्रकोप से लोगों की रक्षा की जा सके।

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Sep 22, 2025
सिद्धपीठ मां महामाया (फोटो सोर्स- पत्रिका)

Navratri 2025: कवर्धा नगर की देवी शक्तिपीठों में से एक आदिशक्ति मां महामाया, इन्हें ग्राम देवी के रूप में पूजा जाता है। मां महामाया को सभी देवी-देवताओं की आराध्या व जगत की मूलशक्ति माना गया है।

ग्राम के स्थापना के साथ ही ग्राम देवी की भी स्थापना की जाती है, ताकि ग्राम में दैवीय प्रकोप से बचा जा सके। इन मान्यताओं के अनुसार कवर्धा के बसने के साथ ही मां महामाया लगभग 400 वर्षों से यहां विराजित हैं और श्रद्धालुओं पर अपनी कृपा बरसा रही है। रियासत काल की शुरुआत के पहले से ही कवर्धा राज में मां महामाया विराजित हैं। उन्हें इस स्थान पर विराजित हुए लगभग 400 साल से अधिक हो चुके हैं।

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नीम पेड़ की छांव में पिंड रूप विराजित थीं

माता पहले नीम के पेड़ की छांव में पिंड रूप विराजित थीं। प्रदेश में एक रिवाज है कि प्रत्येक गांव की एक ग्राम देवी होती हैं, ताकि इनकी कृपा से गांव में दैवीय प्रकोप से लोगों की रक्षा की जा सके। रियासत काल से पहले व जब कवर्धा की बसाहट शुरु हुई तब से मां महामाया यहां विराजमान हैं। माता के पिंड को स्वयंभू माना जाता है। उसी पिंड रूपी मूल स्वरूप को बाद में माता की मूर्ति के रूप में परिवर्तित किया गया। मां महामाया की महिमा का वर्णन दुर्गा सप्तसती में भी वर्णित है। मां महामाया ही ब्रह्मांड की मूल शक्ति है। इन्हीं से पूरे जगत की उत्पत्ति हुई है और सभी देवता इनकी आराधना करते हैं।

1930 से ज्योति कलश प्रज्ज्वलित

मंदिर समिति के अध्यक्ष रामकुमार नेताम ने बताया कि हमारे बुजुर्गों के अनुसार पहले सिर्फ चैत्र नवरात्र में माता के मंदिर में ज्योति कलश की स्थापना होती थी। वह भी सिर्फ एक ज्योति कलश ही स्थापित की जाती थी। मंदिर में ज्योति कलश प्रज्ज्वलित करने की परंपरा लगभग 1930 से शुरू हुई, जो आज तक अनवरत जारी है। इसके कुछ वर्षों बाद ही क्वांर नवरात्र में भी ज्योति कलश स्थापित व प्रज्ज्वलित शुरु किया गया। इस तरह से यह परंपरा 95 वर्ष पुरानी है।

नौ दिन विशेष पूजा…

मां महामाया मंदिर के पुजारी अमित भारद्वाज ने बताया कि चैत्र और क्वार नवरात्र में श्रद्धालु बड़ी संख्या में मनोकामना ज्योति कलश प्रज्ज्वलित कराते हैं। कबीरधाम के साथ अन्य जिले से भी श्रद्धालु दर्शन के लिए पहुंचते हैं और ज्योति प्रज्ज्वलित कराते हैं। मां महामाया सभी की मनोकामनाएं पूरी करते हैं। मंदिर का इतिहास 400 साल से अधिक पुराना है। वैसे तो नवरात्र के पूरे नौ दिन विशेष पूजा अर्चना होती है। नवरात्र में मातारानी की तीन बार श्रृंगार बदला जाता है और पूरे नौ दिन महाआरती होती है। वहीं पंचमीं तिथि और अष्ठमी को मातारानी की विशेष श्रृंगार किया जाता है।

मोहल्लेवासियों का सहयोग

प्रारंभ से ही मंदिर के उत्थान व संचालन में मोहल्लावासियों का सहयोग रहा है। बाद में समिति गठित की गई। लगभग 25-26 वर्ष पूर्व बुजुर्गों ने मंदिर के संचालन का दायित्व युवाओं को सौंपा। पहले मंदिर में पुजारी नहीं थे, बाद में लगभग 50-51 वर्ष पूर्व स्व. भीमसेन लाल श्रीवास्तव यहां पुजारी हुए। उनके बाद स्व.लाला दास वैष्णव ने माता की पूजा की। तत्पश्चात स्व. भागवत दुबे और पं. गोविंद प्रसाद ने मंदिर के पुजारी की भूमिका निभाई। फिरहाल अमित भारद्वाज महामाया मंदिर में पुजारी की भूमिका निभा रहे हैं।

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Published on:
22 Sept 2025 01:37 pm
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