MP News: मध्य प्रदेश अपनी जड़ों यानी अपनी संस्कृति को संजोय हुए तकनीक की दुनिया में भी आगे बढ़ रहा है, विकास की गाथा सुनाता हाल में एक ड्रोन शो दर्शकों के दिल में सवाल छोड़ गया ऐसा कैसे करते हैं ये आर्टिस्ट, अगर आपके मन में भी यही बात क्या है ये AI बेस्ड ड्रोन तकनीक? कैसे करती है काम? तो यहां जानें अपने हर सवाल का जवाब।
MP News: आज जमाना टेक्नोलॉजी का है, दुनिया तेजी से दौड़ रही है और जो साथ नहीं भागे समझो सबकुछ छूट गया...सबकुछ ठप… 24 घंटे में बदलने वाली टेक्नोलॉजी ही विकास को दे रही है रफ्तार... क्योंकि आज का समय कहता है 'विज्ञान से ही विकास संभव' है। इसकी गवाह बनी मध्य प्रदेश स्थापना दिवस पर आसमान में तैरती नजर आई एमपी की विरासत, संस्कृति और तकनीकी विकास की रोचक कहानी। 2000 ड्रोन की रोशनी से जगमगाया आसमान देखकर लाल परेड मैदान में उपस्थित दर्शकों की आंखें खुली रह गईं और चेहरा मध्यप्रदेश की सांस्कृतिक विरासत और तकनीक के संगम को देख गर्व से मुस्काता नजर आया। लेकिन मन में सवाल भी उठा गया आखिर ऐसे शो कैसे किए जाते हैं, क्या है इनकी तकनीक… इन सवालों पर मैपकास्ट के ईवेंट डायरेक्टर अधिराज ललित से जब patrika.com ने की बात, तो मिले आपके सवालों के जवाब.. आप भी जानें...
शो के आयोजक अधिराज ललित का कहना है कि इस बार थीम थी विरासत के विकास की ओर'। जहां एक ओर मध्य प्रदेश की सांसकृतिक जड़ें और परम्परा थीं, वहीं दूसरी ओर आधुनिक प्रदेश और भारत की तकनीकी उड़ान। ड्रोन की आकृतियों के माध्यम से दिखाया गया कि राज्य की जनजातीय और ग्रामीण पृष्ठभूमि से निकलकर तकनीक और औद्योगिक विकास की दिशा में कैसे छलांग लगाई है? इस शो में ग्वालियर का किला, भीम बैठिका, सांची स्तूप, महाकाल मंदिर, टाइगर स्टेट बाघ का सफर और फिर पल भर में ये आकृतियां हाई-टेक आकृतियों में बदल गईं। जो प्रदेश के डिजिटल, औद्योगिक और एआई भविष्य की झलक दे रहे थे।
भारत अब उन चुनिंदा देशों में शामिल हो गया है, जो अपने खुद के ड्रोन बना रहे हैं। अधिराज कहते हैं कि अब तक केवल चीन और रूस ही ऐसे बड़े ड्रोन बनाते थे। उनसे अन्य देश ये ड्रोन खरीदते हैं। लेकिन हमारे ये ड्रोन स्वदेशी हैं, भारत में ही बनाए गए हैं। भारत इन ड्रोन के लिए स्वार्म टेक्नोलॉजी का यूज करता है। ये तकनीक अभी चीन के पास भी नहीं है।
स्वार्म टेक्नीक वह तकनीक है, जिसमें हजारों ड्रोन एक दूसरे के साथ जुड़े रहते हैं। एक ही समय में सटीक पैटर्न बनाते हैं। इसे नियंत्रित करना बेहद कठिन होता है। क्योंकि हर ड्रोन का अपना एक अलग सीरियल नंबर होता है और प्रोग्रामिंग कोड भी। अगर एक भी ड्रोन असंतुलित होता है, तो पूरी आकृति बिगड़ सकती है। भारत की इस ड्रोन तकनीक ने साबित कर दिया है कि हम यहां फॉलोअर नहीं बल्कि लीडर हैं।
इसके माध्यम से हमने विकास की कहानी बताई थी। क्योंकि आज के समय में विकास विज्ञान से ही संभव है। विरासत को साथ में लेकर विकास किस तरह किया ये ड्रोन शो तकनीकी और प्रदेश की विरासत को संजोते हुए विकास की कहानी सुना रहा था।
देखा जाए तो हम जनजातीय प्रदेश थे, लेकिन आज हम इतने आगे हैं कि हम ड्रोन से आकृतियां बना रहे हैं। ग्लोबली भी हम बहुत आगे हैं। अगर हम तकनीकी विकास कर रहे हैं, तो तकनीक से ही उसे दिखाया। अभी हम एक टेस्टिंग फेज में हैं। 5 साल में हमें एमपी में ड्रोन उड़ते जरूर नजर आ जाएंगे, जो आपके घर आकर डिलिवरी देकर लौट जाएंगे। वहीं अगले 10 साल में हम इनका इस्तेमाल सुरक्षा, आपदा प्रबंधन जैसे क्षेत्रों में भी देखने की उम्मीद कर सकते हैं।
बिल्कुल, चुनौतीपूर्ण था, हमें ये देखना था कि रडार कितना ऊपर है, जो हमारी रेंज से कितनी दूरी पर है, यदि रडार हमारी रेंज पर आता है तो इस तरह के प्रोजेक्ट करना मुश्किल हो जाता है, बल्कि पूरी-पूरी पॉसिबिलिटी है कि किया ही ना जाए। इसे प्रजेंट करने से पहले MHA की परमिशन लेनी होती है। डीजेसी के साथ ही लोकल ATC की परमिशन लेनी होती है। उन्होंने 15-20 दिन जांच-पड़ताल करने के बाद हमें इस शो की परमिशन दी थी। उसके बाद ही हम ये शो कर पाए।
रेड जोन (जहां से फ्लाइट निकलती हैं या चार्टर्ड या हेलिकॉप्टर की आवाजाही होती है) में इस तरह के शो नहीं किए जाते। सुरक्षा का बाकायदा पूरा ध्यान रखा जाता है।
हमें सबसे पहले एक थीम दे दी जाती है। जैसे इस बार थीम दी गई थी, विरासत से विकास की ओर। इस थीम पर हम रिसर्च करते हैं, क्या-क्या हम ले सकते हैं, जो विरासत से विकास की ओर गया। एक सप्ताह रिसर्च किया हमने इस पर। फिर स्क्रिप्ट बनाई। फाइनल स्क्रिप्ट को हमने डबिंग करवाया। वॉइस ओवर कराया। उसे सुनकर हमने समझा कि हमें कहां किस-किस आकृति की जरूरत है।
फिर हमने उन आकृतियों के स्कैच बनाए। उन आकृतियों को हमने डॉट्स में कन्वर्ट किया। जहां-जहां हमने डॉट्स लगाए वहां ड्रोन को रखा। ड्रोन्स का पर्टिकुलर एक नंबर होता है। जिसे सिरियल नंबर कहते हैं। इन्हीं नंबर्स पर प्रोग्रामिंग होती है। कि उन्हें जाकर उसी नंबर पर लगना है। इन 2000 ड्रोन्स को नंबर दिया गया कि किस ड्रोन को कहां जाना है। जब वे सारे सिंक्रनाइज हो जाते हैं, तभी एक फॉर्मेशन बनाते हैं। इन सारे प्रोसेस को करने में हमें 25 दिन लगे।
जब लाइव शो होना था उससे एक दिन पहले 26 वें और 27वें दिन हम आसमान में शो की फाइनल रिहर्सल करते हैं। जो हमने लाल परेड पर की थी। उस रिहर्सल में हमें देखना होता है कि कहीं कुछ गलत या कमतर तो नहीं लग रहा। खास तौर पर मौसम, तेज हवाएं इस शो को प्रभावित कर सकते हैं। इस बार मौसम खराब था, बारिश भी हो रही थी। हमें लगा हवा भी चल सकती है। इसलिए इस शो में हमें फॉर्मशन की दिशा भी बदलनी पड़ी थी।
इस शो की तैयारी में 70-80 लोगों की टीम होती है। इसमें 10-15 ग्राफिक डिजाइनर होते हैं। तीन पायलट होते हैं। जो एक रिमोट के माध्यम से सिग्नल टावर लगाकर इन्हें उडा़ता है। ये सिग्नल टावर ही ड्रोन को सटीक लोकेशन पर भेजते हैं। हर पायलट एक बार में 100 से ज्यादा ड्रोन एक साथ नियंत्रित कर सकता है। हमारे तीन पायलट ने एक साथ 2000 ड्रोन कंट्रोल किए। वहीं लाइव शो का संचालन करने के लिए इस बार 25 लोगों की टीम को लगना पड़ा।
आने वाले 5 सालों में ये बहुत आगे होगा कि इसमें उपयोग किए गए ये भारत में ही बनाए गए, अकेला एक ऐसा देश है चीन जिसने इन्हें बनाया। इसके बाद रशिया ने इन्हें बनाया। दुनिया के कई देश चीन और रशिया से इनका आयात करते हैं। लेकिन भारत एकलौता देश है जो इस तरह के अपने ड्रोन बनाकर प्रदर्शिक कर रहा है। आज चीन से भी बड़ी टेक्नोलॉजी हमारे पास है। इसे स्वार्म टेक्नोलॉजी कहते हैं। वो चीन के पास भी नहीं है अब तक, तो इस मामले में हम चीन से भी अपडेट चल रहे हैं।
कहना होगा कि ये ड्रोन शो कोई साधारण शो नहीं था, मध्य प्रदेशसमेत भारत की तकनीकी आत्मनिर्भरता और सांस्कृतिक चेतना का संगम था। इस ड्रोन शो ने साबित कर दिया कि सांस्कृतिक विरासत को संजोते हुए विज्ञान की दुनिया से संगम ही आपका अब आपका हमारा विकास है। विकास की ऐसी गाथा आसमान के मंच पर शोर मचा सकती है। दुनिया को दिखा सकती है हम किसी से कम नहीं।