Bhopal News: भोपाल रियासत के आखिरी नवाब हमीदुल्लाह की बड़ी बेटी व राजकुमारी आबिदा सुल्तान, जिन्होंने ताज के बोझ तले भी अपने बेटे के लिए मौत को ललकारा। अपने पति पर रिवॉल्वर तान दी… पति का घर छोड़ दिया, राजसी ठाठ छोड़ दिया और बस मां बनकर रह गई।
Bhopal News: हमारे समाज में मां को भगवान के समान दर्जा दिया गया है। मां चाहे अमीर हो या गरीब, कहीं की राजकुमारी हो या फिर एक आम औरत वो अपने बच्चे के लिए किसी भी चुनौती का सामना करने से पीछे नहीं हटटी। ऐसी ही एक शख्सियत थीं भोपाल रियासत के आखिरी नवाब हमीदुल्लाह की बड़ी बेटी व राजकुमारी आबिदा सुल्तान(Bhopal Princess Abida Sultan), जिन्होंने ताज के बोझ तले भी अपने बेटे के लिए मौत को ललकारा। अपने पति पर रिवॉल्वर तान दी… पति का घर छोड़ दिया, राजसी ठाठ छोड़ दिया और बस मां बनकर रह गई।
आबिदा सुल्तान भोपाल के आखिरी नवाब हमीदुल्लाह खान की सबसे बड़ी बेटी थीं। आबिदा को बचपन से ही घुड़सवारी करना, बंदूक चलाना और प्लेन उड़ाने का शौक था। लोग कहते थे ये लड़की नहीं शेर है। 17 साल की उम्र में आबिदा सुल्तान के जीवन में चौंकाने वाला मोड़ आया, जब उनकी दादी शाहजहां बेगम ने एक लफ्ज में बड़ा फैसला सुना दिया। ये फैसला था आबिदा की शादी का। शाहजहां बेगम ने कोरवाई के नवाब सरवर अली खान से आबिदा सुल्तान की शादी तय कर दी। 17 साल की उम्र में ही आबिदा की शादी हो गई और वो कोरवाई के नवाब सरवर अली खान की बेगम बन गईं।
आबिदा सुल्तान और नवाब सरवर अली खान की शादी ज्यादा दिन टिक नहीं पाई। आपसी मतभेदों के चलते आबिदा नवाब का महल, नौकर-चाकर, राजसी जीवन छोड़ अपने बेटे के साथ भोपाल लौट आईं। आबिदा सुल्तान ने अपने पति का घर छोड़ दिया, राजसी ठाठ छोड़ दिया। लेकिन एक मां का फर्ज निभाती रहीं।
आबिदा सुल्तान का ऐसा करना नवाब सरवर अली खान को बर्दाश्त नहीं हुआ। उसने वायसराय तक गुहार लगाई कि, 'मेरा बेटा मुझे वापस दो।' हालांकि, उस समय के ब्रिटिश कानून में मां को थोड़ी मोहलत थी कि जब तक बच्चा दूध पीता हो, उसे मां से अलग नहीं किया जा सकता। लेकिन नवाब ने चाल चली। उसने कोरवाई में बेटे का पहला जन्मदिन धूमधाम से मनाने का एलान कर दिया। सबको न्योता भेज दिया। सब जानते थे कि ये कोई जश्न नहीं है, बल्कि आबिदा से बच्चे को हमेशा के लिए छीनने की साजिश है।
जब ये खबर आबिदा सुल्तान तक पहुंची तब रात के एक बज रहे थे। खबर सुनते ही एक मां की तड़प ने औलाद से जुदाई के डर को पल भर में भांप गया। आबिदा के सीने में आग लगी थी और उन्होंने अपनी रिवॉल्वर उठाई, गोलियां भरीं और अकेली घोड़े पर सवार होकर भोपाल से कोरवाई के लिए निकल पड़ीं। अंधेरी रात में सौ मील का सफर तय किया वो भी बिना किसी खौफ के। रात के दो बजे ही थे कि आबिदा कोरवाई के महल में घुस गईं।
आबिदा सुल्तान सीधे सरवर के पास पहुंची। गोलियों से भरी हुई रिवॉल्वर निकाली और उसे सरवर के आगे फेंक दिया। सरवर मरने के खौफ से बौखला गए, तभी आबिदा ने कहा 'या तो तुम इसे उठाकर मुझे मार दो, या मैं तुम्हें मार दूंगी। मेरे बेटे को मुझसे अलग करने का अब बस यही एक रास्ता बचा है।' आबिदा की बातों से कमरे में सन्नाटा छा गया। नवाब सरवर का चेहरा सफेद पड़ गया। वो गिड़गिड़ाने लगा और कहा कि, 'माफ कर दो आबिदा…मैं कभी दावा नहीं करूंगा… मैं हार मानता हूं।'
उस रात के बाद नवाब ने कभी मुंह नहीं खोला। बेटा हमेशा मां के पास रहा। आबिदा सुल्तान ने उस दिन सिर्फ अपने बेटे को नहीं बचाया था। उन्होंने हर उस मां की इज्जत बचाई थी जो, चुपचाप सहती है। अपने बेटे के लिए वे चुप नहीं रहीं, वे डरीं भी नहीं। वे मां थीं और जब मां चाहे तो दुनिया की कोई ताकत उसके बच्चे को छू भी नहीं सकती।