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बेरहम मां-बाप… नौकरी के लालच में बच्ची को जंगल में छोड़ा, 20 घंटे तड़पी है…3 दिन की नवजात

MP news: बहुत तकलीफ हो रही ये कहते हुए कि मामला एमपी का है, छिंदवाड़ा के रहने वाले हैं ये बेहरम मां-बाप... सरकारी शिक्षक पिता को चौथी संतान से था नौकरी का खतरा... अक्सर पुरुष कहते हैं... मर्द को दर्द नहीं होता... लेकिन क्या तीन दिन में मां की छाती भी सूख गई थी? सवाल अब इस बेहरम दंपती से नहीं...समाज के साथ सिस्टम के नियम-कायदों पर भी उठ रहे हैं...

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MP News chhindwara: मध्य प्रदेश के छिंदवाड़ा का दिल दहला देने वाला मामला। आरोपी दंपती और मासूम नवजात। (फोटो; पत्रिका)

MP News: संजना कुमार@patrika.com: छिंदवाड़ा जिले के अमरवाड़ा क्षेत्र से निकली यह खबर दिल को जार-जार रोने पर मजबूर कर रही है। कहते हुए ही आंसू निकल रहे हैं ये भयावह मामला देश के दिल मध्य प्रदेश का है। तीन दिन की नवजात, सिर्फ तीन दिन की... जिसे अपने होने का अहसास तक नहीं..., उसे जन्म देने वाले ही उसे पथरीले जंगलों जंगली जानवरों के बीच फेंक आए। तस्वीर सामने आई तो बरबस ही निकल पड़ा, जैसे वो रोती हुई कह रही हो... मां मुझे कपड़े तो पहना देती... दिल-दिमाग को सुन्न करने वाली ये घटना एक मासूम नवजात की नहीं है, बल्कि उस बेरहम मानसिकता की है जो 'नौकरी' और 'नियम' के नाम पर इंसानियत तक को कुचल रही है।

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नौकरी का लालच और मां की ममता

एमपी के सरकारी शिक्षक बबलू डांडोलिया और उसकी पत्नी ने अपनी चौथी संतान को सिर्फ इसलिए छोड़ दिया क्योंकि, 26 जनवरी 2001 के बाद सरकारी नौकरी में 'दो संतान' से ज्यादा' की अनुमति नहीं है। सवाल यह है कि नौकरी जाने का डर इंसान को इतना पत्थर दिल कैसे बना सकता है कि वह अपनी नवजात बच्ची के सूखते हलक का रुदन भी नहीं सुन सके?

कितना कठिन निर्णय... लेना मजबूरी

सवाल ये कि क्या किसी की नौकरी मां की ममता और पिता होने के अहसास से इतनी बड़ी हो सकती है? यह सवाल अब हर उस व्यक्ति से है जो नियमों और सामाजिक दबाव और नौकरी जाने के भय से जन्मीं कठोरता की वजह से रिश्तों और संवेदनाओं को दरकिनार कर रहा है। शायद ऐसे लोगों के लिए बच्चे को जन्म देना आसान है, लेकिन क्या जन्म देने के बाद उसके पालन-पोषण की सबसे बड़ी जिम्मेदारी उनकी नहीं बनती? अब ये लोग जिम्मेदारी की हत्या करने से भी नहीं चूक रहे।

MP News(फोटो: सोशल मीडिया)

मां की चुप्पी पर समाज की विफलता

घिनौनी नजर आने वाली ये घटना केवल माता-पिता की बेरहमी की कहानी नहीं सुना रही, बल्कि बता रही है कि जब बात परिवार पालने के लिए नौकरी के संकट पर आ जाए तो मां को भी ममता भूलकर अपना कलेजा कठोर करना पड़ता है। नासूर बन समाज के सामने आ खड़ी हुई ये चुनौती उसी परिस्थित का नतीजा है। लेकिन पल-पल ये सवाल साल रहा है कि इस घटना को अंजाम देने वाली मां 'क्या तीन दिन में ही उसकी छाती भी सूख गई?' नवजात के रोने से.. उसकी भूख के अहसास भर से उसका कलेजा क्यों नहीं फट पड़ा…? बच्चों की हल्की सी सिसकी पर मां की नींद उड़ जाती है, फिर ये मां तो उसे 20 घंटे तक जंगल में रोता-बिलखता छोड़ आई… और चुप्पी साध कर बैठ गई।

हैरानी की बात ये भी कि क्या समाज और परिवार भी ऐसे मां-बाप के सहयोगी थे, क्या पड़ोसियों को पता नहीं चला, गांव की औरतों ने बच्ची के न होने पर संवेदना के प्रश्न नहीं पूछे?

ग्रामीणों ने सुनी नवजात के रोने की आवाज, तब पहुंचाया अस्पताल

जब बच्ची के रोने की आवाज आई, तब वहां से गुजर रहे ग्रामीणों ने जरूर संवेदना दिखाई कि वे उसे उठाकर अस्पताल पहुंचा गए। चलो समाज का ये चेहरा थोड़ा सुकून जरूर दे गया। लेकिन सोचकर हैरानी होती है.. इतनी बड़ी साजिश.. इस साजिश को गांव के बीच प्रसव होने के बावजूद किसी ने पहले क्यों नहीं पकड़ा?

government job niyam kanoon(फोटो: सोशल मीडिया)

उद्देश्य से भटकते नियम-कायदे

सरकार ने जनसंख्या नियंत्रण के लिए नियम बनाए कि सरकारी कर्मचारियों को दूसरी संतान के बाद तीसरी संतान होने पर नौकरी पर रोक या दंड मिल सकता है। लेकिन इन नियमों का क्या कोई ऐसा पहलू नहीं होना चाहिए जो इंसानियत को कुचलने से बचा ले?

जनसंख्या नियंत्रण की जरूरत है, लेकिन अगर इसी डर से मां-बाप अपने ही बच्चों को मारने या छोड़ने लगें तो ऐसे नियम-कायदे क्या अपने उद्देश्य से भटकते नहीं दिख रहे। यह साफ है कि सिस्टम में कहीं न कहीं मानवीय संवेदनाओं का मर्म खोता जा रहा है।

बेटियों के साथ भेदभाव भी बड़ी कड़वी घूंट

एक और कड़वी घूंट है हमारे समाज का घिनौना सच… इस घटना के बाद एक बार फिर सामने आ गया है। पहले से दो बेटियों और एक बेटे के माता-पिता के यह चौथी संतान थी और एक बेटी भी। मध्यप्रदेश समेत देश के कई हिस्सों में आज भी बेटियां बोझ मानी जाती हैं। ऐसे में चौथी संतान और तीसरी बेटी का जन्म वैसे ही अपना अस्तित्व खो चुका होगा शायद। पर क्या अगर बेटा होता तो ये बेरहमी उसके लिए भी की जाती। क्या उसे भी मरने के लिए जंगल में छोड़ आते? क्या कर पाते इतनी हिम्मत? शायद नहीं… ।

the black spot on indian society(फोटो: सोशल मीडिया)

कानून और इंसानियत के संतुलन का सवाल है

रौंगटे खड़े करने वाले इस मामले में पुलिस ने अपना काम किया। परित्याग की धारा के तहत आरोपी माता-पिता पर केस दर्ज किया गया। दोनों को गिरफ्तार किया गया है। लेकिन केवल गिरफ्तारी के बाद समाज के सामने आई दिल दहला देने वाली ये चुनौती दूर हो जाएगी? क्या न्यायालय इस पर कोई अहम फैसला सुना पाएगा?

अब आगे क्या?

हमें अब संभलना होगा… देखना होगा कि कानून और संवेदनशीलता के बीच संतुलन कैसे स्थापित किया जाए? जनसंख्या नियंत्रण कानून के साथ-साथ ऐसे मामलों के लिए काउंसलिंग, सपोर्ट सिस्टम और हेल्पलाइन शुरू करनी होनी चाहिए। मां-बाप को भी संभलना होगा... परिवार नियोजन को लेकर जागरूक होना होगा...वहीं अगर न चाहते हुए भी ऐसा हो, तो ऐसे माता-पिता को विकल्प मिलने चाहिएं ताकि, उन्हें अपनी संतान को मारने या इस तरह जंगल में छोड़ने की नौबत ही न आए।

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Updated on:
01 Oct 2025 03:00 pm
Published on:
01 Oct 2025 11:15 am
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