Rajasthan Politics: राजस्थान में कांग्रेस पार्टी के संगठन को मजबूत करने के लिए जिलाध्यक्षों के चयन की प्रक्रिया निर्णायक दौर में पहुंच गई है।
Rajasthan Politics: राजस्थान में कांग्रेस पार्टी के संगठन को मजबूत करने के लिए जिलाध्यक्षों के चयन की प्रक्रिया निर्णायक दौर में पहुंच गई है। AICC के निर्देश पर प्रदेश के 50 जिलों में चल रहा संगठन सृजन अभियान अब अंतिम चरण में है। इस अभियान के तहत केंद्रीय पर्यवेक्षकों ने हर जिले से 6-6 नामों का पैनल तैयार करने का काम लगभग पूरा कर लिया है।
खास बात यह है कि इस बार पार्टी आलाकमान ने साफ कर दिया है कि सांसदों, विधायकों या किसी कद्दावर नेता की सिफारिश को इस प्रक्रिया में कोई तवज्जो नहीं दी जाएगी। यह निर्णय प्रदेश के कई नेताओं की चिंता का सबब बन गया है, क्योंकि अब तक जिला स्तर की नियुक्तियों में राजनीतिक सिफारिशें और जातीय समीकरण अहम भूमिका निभाते रहे हैं।
कांग्रेस हाईकमान ने राजस्थान में संगठन को जमीनी स्तर पर मजबूत करने के लिए संगठन सृजन अभियान शुरू किया है, जो गुजरात मॉडल पर आधारित है। इस अभियान का मकसद पारदर्शी और लोकतांत्रिक तरीके से जिलाध्यक्षों का चयन करना है, ताकि संगठन में सभी की भागीदारी सुनिश्चित हो और पार्टी की जमीनी ताकत बढ़े।
इसके लिए 30 केंद्रीय पर्यवेक्षक और 90 प्रदेश कांग्रेस कमेटी (PCC) के पर्यवेक्षक पिछले दो सप्ताह से इस प्रक्रिया में जुटे हैं। प्रत्येक पर्यवेक्षक को एक जिले में कम से कम सात दिन बिताकर कार्यकर्ताओं, प्रबुद्धजनों और स्थानीय नागरिकों से संवाद करना है। इस संवाद के आधार पर वे छह नामों की अनुशंसा के साथ अपनी रिपोर्ट AICC को सौंपेंगे।
पर्यवेक्षकों को 24 अक्टूबर तक अपनी अंतिम रिपोर्ट हाईकमान को सौंपनी है। इसके बाद AICC के महासचिव केसी वेणुगोपाल पर्यवेक्षकों से वन-टू-वन फीडबैक लेंगे, जिसके आधार पर जिलाध्यक्षों की औपचारिक घोषणा की जाएगी। हालांकि, उपचुनाव के चलते बारां और झालावाड़ जिलों में यह अभियान फिलहाल स्थगित कर दिया गया है।
कांग्रेस नेता राहुल गांधी के नेतृत्व में तैयार किए गए इस नए फॉर्मूले का लक्ष्य जिलाध्यक्षों को संगठन की सबसे मजबूत कड़ी बनाना है। इस बार जिलाध्यक्षों को ऐसी शक्तियां दी जाएंगी कि उनकी बात सीधे पार्टी हाईकमान तक पहुंचेगी। इतना ही नहीं, भविष्य में लोकसभा और विधानसभा चुनावों के लिए प्रत्याशियों के चयन में भी उनकी राय को महत्वपूर्ण माना जाएगा।
AICC का कहना है कि यह कदम पार्टी को नई ऊर्जा देने और जमीनी स्तर पर संगठन को मजबूत करने की दिशा में उठाया गया है। मध्यप्रदेश में इस फॉर्मूले की सफलता के बाद इसे राजस्थान में लागू किया जा रहा है। इस नए दृष्टिकोण के तहत जिलाध्यक्षों को लंबी अवधि के लिए संगठन की रीढ़ के रूप में तैयार किया जाएगा।
इस वजह से कई सांसद, विधायक, पूर्व मंत्री और पूर्व प्रत्याशी खुद भी जिलाध्यक्ष बनने की दौड़ में शामिल हो गए हैं। हालांकि, AICC ने स्पष्ट कर दिया है कि किसी भी नेता की सिफारिश इस प्रक्रिया में स्वीकार नहीं की जाएगी, जिससे पारदर्शिता बनी रहे।
संगठन सृजन अभियान के तहत कई जिलों में सीनियर नेताओं द्वारा अपने प्रभाव का इस्तेमाल कर जिलाध्यक्षों के चयन में दखल देने की कोशिशें सामने आई हैं। सूत्रों के अनुसार, सीकर में सुनीता गठाला, हनुमानगढ़ में शबनम गोदारा, गंगानगर में अंकुर मिगलानी, बालोतरा में प्रियंका मेघवाल, बाड़मेर में लक्ष्मण गोदारा और करनाराम मेघवाल, जोधपुर देहात में राकेश चौधरी और प्रमिला चौधरी, जोधपुर शहर में सलीम खान और नरेश जोशी जैसे नाम दावेदारों के रूप में चर्चा में हैं।
इसके अलावा, अजमेर में रघु शर्मा और धर्मेंद्र राठौड़ गुट, भीलवाड़ा में रामलाल जाट और धीरज गुर्जर गुट, राजसमंद में सीपी जोशी गुट, चुरू में कृष्णा पूनिया और राहुल कस्वां के बीच खींचतान देखी जा रही है। जयपुर में पुष्पेंद्र भारद्वाज का नाम सामने आने के बाद अंदरखाने विवाद शुरू हो गया है। कई जिलों में हारे हुए प्रत्याशी, पूर्व सांसद, विधायक और मंत्री भी अपने प्रभाव का इस्तेमाल करने की कोशिश में हैं।
कांग्रेस हाईकमान की मंशा भले ही पारदर्शी और निष्पक्ष चयन की हो, लेकिन दावेदारों का शक्ति प्रदर्शन और सीनियर नेताओं का दखल इस अभियान को विवादों में घेर रहा है। कुछ जिलों में गुटबाजी की खींचतान खुलकर सामने आ रही है। कांग्रेस नेतृत्व का कहना है कि दावेदारों में जोश के कारण नारेबाजी और शक्ति प्रदर्शन हो रहा है, लेकिन यह गुटबाजी नहीं है।
प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष गोविंद सिंह डोटासरा ने दावा किया कि सभी को अपनी दावेदारी जताने का हक है। फिर भी, सवाल यह उठता है कि क्या यह अभियान वाकई संगठन को मजबूत करेगा, या कांग्रेस की पुरानी गुटबाजी की बीमारी को और गहरा करेगा?