Rajasthan : राजस्थान में सालाना 20 लाख से अधिक बच्चों का जन्म होता है, लेकिन हर तीसरे प्रसव में शिशु का जन्म अप्रशिक्षित हाथों से हो रहा है। पढ़ें इंडेप्थ रिपोर्ट।
Rajasthan : राजस्थान में सालाना 20 लाख से अधिक बच्चों का जन्म होता है, लेकिन हर तीसरे प्रसव में शिशु का जन्म अप्रशिक्षित हाथों से हो रहा है। इनमें हर साल 25 से 30 हजार बच्चे या तो मॄत जन्म ले रहे हैं या चलने से पहले ही जीवन गंवा रहे हैं। अस्पताल में प्रसव न होने के कारण शिशु व मां को खतरा रहता है। उधर, एक खामी यह भी है कि अस्पताल में बच्चे के डिस्चार्ज के समय जन्म प्रमाण पत्र नहीं मिलने से कुछ लोग घर पर जन्म बताकर दूसरा जन्म प्रमाण पत्र बनवा रहे हैं। गांवों में ऐसा ज्यादा हो रहा है।
इस गड़बड़झाले से गैर संस्थागत (अस्पताल के बाहर) प्रसव का आंकड़ा बढ़ रहा है। अस्पताल में प्रसव बढ़ाने के लिए सरकार जननी सुरक्षा योजना (जेएसवाइ) चला रही है, लेकिन कुल जन्म के आधे ही योजना में शामिल हैं। पड़ताल में सामने आया कि कई निजी अस्पताल योजना में शामिल ही नहीं हैं, जिससे जेएसवाइ का आंकड़ा संस्थागत प्रसव (अस्पताल में जन्म) की संख्या से कम आ रहा है। 31 फीसदी प्रसव गैर संस्थागत हो रहे हैं।
आर्थिक सांख्यिकी निदेशालय की जन्म-मृत्यु पंजीयन की वार्षिक रिपोर्ट के आंकड़ों के अनुसार शहरों में 10 लाख से अधिक जन्म में से 8.47 लाख का पंजीयन 21 दिन में हो रहा है, जबकि गांवों में 9.60 लाख से अधिक जन्म में से करीब 3.97 लाख ही 21 दिन में दर्ज होते हैं और पांच लाख से अधिक जन्म एक साल में भी दर्ज नहीं हो रहे।
Q गांव में पांच लाख बच्चों का पंजीयन एक साल बाद क्यों?
जन्म के 21 दिन बाद हो रहे पंजीयन उन बच्चों से जुड़ा है, जो अस्पताल में पैदा नहीं हुए।आंकड़े कहते हैं: 2024 में 19 लाख 71 हजार 615 बच्चों का पंजीयन हुआ, जिसमें से 68.27 प्रतिशत यानी करीब दो तिहाई बच्चों का जन्म अस्पताल में हुआ।
Q अस्पताल में जन्म नहीं तो शिशु मृत्यु दर-मातृ मृत्यु दर का आंकड़ा सही कैसे?
यह आंकड़ा बच्चों का है, जो जिंदा पैदा हो रहे हैं। मृत पैदा हो रहे या जन्म के कुछ समय ही मर रहे बच्चों की पूरी संख्या इसमें नहीं आ रही।
Q योजना है, फिर कुपोषण क्यों?
जेएसवाइ में प्रसव के समय शहरी महिलाओं को 1000 व ग्रामीण महिलाओं को 1400 रुपए दिए जाते हैं। कई छोटे निजी अस्पताल योजना में शामिल नहीं हैं, जिससे इनमें जन्म ले रहे शिशु व मां को योजना का लाभ नहीं मिल रहा। इस कारण यह योजना उन बच्चों को कुपोषण से नहीं बचा पा रही।