Trump H-1B visa crackdown: डोनाल्ड ट्रंप की सख्त इमिग्रेशन पॉलिसी ने H-1B वीजा पर $100K फीस और चेकिंग बढ़ा दी है, जिससे विदेशी प्रोफेशनल्स अमेरिका में घुसने से वंचित हो रहे हैं।
Trump H-1B visa crackdown: डोनाल्ड ट्रंप सरकार की नई इमिग्रेशन नीतियां (Foreign professionals US immigration) विदेशी प्रोफेशनल्स के लिए अमेरिका में जॉब करने का सपना तोड़ रही हैं। डॉक्टर, इंजीनियर, टीचर और टेक एक्सपर्ट्स जैसे स्किल्ड वर्कर्स अब वीजा (Trump H-1B visa crackdown) के नाम पर बड़ी जद्दोजहद कर रहे हैं। ध्यान रहे कि सितंबर 2025 से लागू हुई सख्ती ने H-1B जैसे वीजा महंगा (H-1B visa fee 2025) और मुश्किल बना दिया है। कंपनियां चेतावनी दे रही हैं कि टेलेंट की कमी से इनोवेशन रुकेगा और जॉब्स बाहर चले जाएंगे। ये पॉलिसी 'अमेरिका फर्स्ट' का नारा तो दे रही हैं, लेकिन अर्थव्यवस्था को झटका लगा रही हैं। आइए देखें, विदेशी पेशेवरों के रास्ते में आ रहीं 5 बड़ी रुकावटें।
ट्रंप ने सितंबर 2025 में H-1B वीजा पर 1 लाख डॉलर (करीब 84 लाख रुपये) की नई फीस लगा दी। यह फीस सिर्फ नये आवेदनों पर है, लेकिन छोटी कंपनियां और स्टार्टअप्स इसे बर्दाश्त नहीं कर पा रहे हैं। व्हाइट हाउस का कहना है कि ये अमेरिकी वर्कर्स को बचाने के लिए है, क्योंकि कुछ फर्म्स विदेशियों को कम वेतन पर हायर करती हैं। लेकिन रिजल्ट? टीचर्स, नॉन-प्रॉफिट रिसर्चर्स और ग्रामीण डॉक्टर्स जॉब से बाहर हो रहे हैं। माइक्रोसॉफ्ट और अमेजन जैसी जायंट्स ने कर्मचारियों को फौरन अमेरिका लौटने की सलाह दी है, वरना जॉब खतरे में होंगे। यह फीस 12 महीने के लिए है, लेकिन इसके एक्सटेंशन की आशंका से पैनिक फैल गया है।
यूएस में अब हर वीजा आवेदन में सोशल मीडिया प्रोफाइल, क्रिमिनल बैकग्राउंड और छोटे-मोटे केस चेक होते हैं। स्टेट डिपार्टमेंट के उच्चाधिकारी का कहना है कि नेशनल सिक्योरिटी के नाम पर ड्रंक ड्राइविंग या पुराना ट्रैफिक टिकट भी रिजेक्शन का कारण बन जाता है। इसके अलावा H-1B, J-1, L-1 और O-1 (जीनियस वीजा) पर डिनायल रेट बढ़ गई है। AI और साइबर सिक्योरिटी एक्सपर्ट्स EB-1 ग्रीन कार्ड खो रहे हैं। फाइनेंशियल टेक पर काम करने वाले कैपिटल वन का एक इंडियन इंजीनियर कोर्ट गया। इमिग्रेशन के वकील कहते हैं कि यह चेकिंग लीगल प्रोग्राम को एनफोर्समेंट टूल बना रही है।
गौरतलब है कि यूएस की ओर से 19 देशों पर नया ट्रैवल बैन लगा है, जिसमें चीन, ईरान और वेनेजुएला जैसे देश शामिल हैं। विदेशी कर्मचारियों को होम कंट्री में पर्सनल इंटरव्यू देना पड़ता है, जिससे वेटिंग टाइम महीनों लंबा हो गया है। मिसाल के तौर पर सूडानी डॉक्टर मुस्तफा अलावाद को अलबामा हॉस्पिटल में जॉब मिला, लेकिन बैन के कारण वो अपनी अमेरिकी फियॉन्से से दूर रह गया। इंडियन H-1B होल्डर्स फैमिली इमरजेंसी पर घर जा कर वापस नहीं लौट सके। USCIS ने कहा कि यह सिक्योरिटी के लिए है, लेकिन वकील इसे चैलेंज कर रहे हैं। एयरपोर्ट पर सर्च और सवाल पूछने की वजह से डर का माहौल है।
यूएस में 55 मिलियन वीजा होल्डर्स पर 'कंटीन्यूअस वेटिंग' पॉलिसी चालू है। ICE एजेंट्स कंपनियों में सरप्राइज चेक करते हैं, डिपोर्टेशन प्रोसीडिंग्स बढ़ गई हैं। ग्रेस पीरियड में जॉब चेंज करने वालों को टारगेट किया जा रहा है। थर्ड-पार्टी प्लेसमेंट (जैसे IT सर्विसेज) पर सख्ती से कस्टमर साइट्स पर काम एक साल तक सीमित है। रिन्यूअल्स पर भी रिस्क है, क्योंकि वेज रिक्वायरमेंट्स टाइट हो गई हैं। नंबर्स USA जैसे ग्रुप्स सपोर्ट करते हैं, लेकिन ट्रंप ने खुद मीडिया से कहा, " प्रतिभा का आयात जरूरी है।" फिर भी, प्रैक्टिस में विदेशी घबरा रहे हैं।
H-1B लॉटरी खत्म करने का प्लान है। अब सलेक्शन हाईएस्ट सैलरी से लोएस्ट पर होगा, जो एंट्री-लेवल और इंटरनेशनल स्टूडेंट्स को बाहर कर देगा। फॉर्च्यून 500 की 46% कंपनियां इमिग्रेंट्स पर निर्भर हैं, लेकिन ये रूल इनोवेशन रोकेगा। प्यू रिसर्च कहता है कि डिनायल रेट 15% तक पहुंच सकती है। स्टार्टअप्स कहते हैं कि ये उन्हें विदेशी टेलेंट से महरूम कर देगा। गोल्ड कार्ड प्रोग्राम ($1 मिलियन फीस पर रेजिडेंसी) अमीरों के लिए है, लेकिन एवरीडे प्रोफेशनल्स के लिए नहीं है।
ये रोडब्लॉक्स कंपनियों के लिए प्रोजेक्ट डिले, हायरिंग स्टॉप और एक्स्ट्रा कॉस्ट ला रहे हैं। एपल ने इनवेस्टर्स को वार्निंग दी है कि ग्लोबल वर्कफोर्स रिटेन मुश्किल है। गूगल, टेस्ला व नविदिया जैसी फर्म्स ने त्रैमासिक रिपोर्ट्स में कहा है कि परफॉर्मेंस हिट हो रही हैं। ITIF रिपोर्ट के अनुसार कम H-1B के कारण पेटेंट्स घटेंगे। टेलेंट कनाडा-यूरोप शिफ्ट हो रहा है। ग्लोबल इमिग्रेशन पार्टनर्स के अलेक्जेंडर जोवी कहते हैं, "कंपनियां हायरिंग प्लान बदल रही हैं।" निस्कानेन सेंटर की सिसिलिया एस्टरलाइन बोलीं, "अमेरिका इनोवेशन हब है, टेलेंट लॉस से कॉम्पिटिटिवनेस कमजोर हो गई है।"
दरअसल ट्रंप प्रशासन 'अमेरिका फर्स्ट' नीति पर अड़ा हुआ है। स्पोक्सवुमन टेलर रॉजर्स ने कहा, "ट्रंप ने अमेरिकी कर्मचारियों को बचाने का वादा किया है।" लेकिन AILA प्रेसीडेंट जेफ जोसेफ चेताते हैं, "इसने लीगल प्रोग्राम्स को टूल बना दिया है।" USCIS ने बोला कि साइट विजिट्स से सिस्टम इंटिग्रिटी कायम है। बावजूद इसके कोर्ट चैलेंजेस चल रहे हैं।
बहरहाल विदेशी प्रोफेशनल्स में अनिश्चितता का साया है। बैकअप प्लान बनाएं: डॉक्यूमेंट्स अपडेट, सेविंग्स रखें, लीगल हैल्प लें। भारत-चीन जैसे देशों पर सबसे ज्यादा असर होगा, जहां 80% H-1B जाते हैं। लेकिन ट्रंप का गोल्ड कार्ड अमीरों को रास्ता दे रहा है। ये पॉलिसी शॉर्ट टर्म में अमेरिकी जॉब्स बचाएगी, लेकिन लॉन्ग टर्म में इकोनॉमी को नुकसान होगा। एक्सपर्ट्स कहते हैं, बैलेंस्ड अप्रोच चाहिए।
(वॉशिंग्टन पोस्ट का यह आलेख पत्रिका.कॉम पर दोनों समूहों के बीच विशेष अनुबंध के तहत पोस्ट किया गया है।)