क्या दुनिया में एकबार फिर विध्वंसक हथियारों के निर्माण की नई दौड़ शुरू होने वाली है, जानिए क्या था ऑपरेशन आईवी, जो एक पूरे द्वीप को निगल गया था।
30 अक्टूबर 2025 को अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने दुनिया को यह बोलकर सकते में डाल दिया था कि वह युद्ध विभाग को परमाणु परीक्षण फिर से शुरू करने का आदेश दे रहे हैं। उन्होंने यह भी कहा कि मैं परमाणु निरस्त्रीकरण देखना चाहूंगा क्योंकि हमारे पास बहुत सारे हैं और रूस दूसरे और चीन तीसरे स्थान पर है। चीन चार या पांच वर्षों में बराबरी पर आ जाएगा।
उनका यह बयान कोल्ड वार के दिनों की याद दिलाता है। जब सोवियत संघ और अमेरिका के बीच शीत युद्ध चल रहा था और दुनिया की दो महाशक्ति सामूहिक विनाश के हथियार बनाने में जुटी हुई थी, लेकिन अमेरिका जो आज फिर से न्यूक्लियर टेस्ट की बात कर रहा है। वह आज से 73 साल पहले 1 नवंबर 1952 को दुनिया का पहला थर्मोन्यूक्लियर बम (हाइड्रोजन बम) का सफल परीक्षण कर चुका था। इस घातक बम को परमाणु युग से थर्मोन्यूक्लियर युग का प्रवेश माना गया।
ऑपरेशन आइवी 1 नवंबर 1952 को किया गया एक परमाणु परीक्ष था, जो अमेरिका के पहले हाइड्रोजन बम के विस्फोट के रूप में जाना जाता है। इस ऑपरेशन के तहत दो प्रमुख परीक्षण हुए- माइक और किंग। माइक परीक्षण को इतिहास का पहला पूर्ण हाइड्रोजन बम विस्फोट माना जाता है। इसकी शक्ति लगभग 10.4 मेगाटन TNT के बराबर थी। माना जाता है कि इसकी क्षमता जापान के नागाशाकी और हिरोसीमा पर गिराए गए परमाणु बम लिटिल बॉय से 700 गुना अधिक थी। इसके परीक्षण से 3 किमी चौड़ा और 50 मीटर गहरा गड्ढा बन गया और पूरा द्वीप खत्म हो गया।
शीत युद्ध के समय अमेरिका और सोवियत संघ के बीच हथियारों के निर्माण की एक बेलगाम होड़ शुरू हुई। ऑपरेशन आइवी इसी की एक कड़ी थी। तब दोनों महाशक्ति एक-दूसरे से हमेशा एक कदम आगे रहना चाहती थी। 1949 में जब सोवियत संघ ने जब अपने पहले परमाणु बम का परीक्षण किया तो अमेरिका ने इसे चिंता की लकीर माना। इसके बाद जनवरी 1950 में अमेरिकी राष्ट्रपति हैरी ट्रूमैन ने देश के वैज्ञानिकों को हाइड्रोजन बम बनाने की मंजूरी दी।
एडवर्ड टेलर द्वारा बनाए गए थर्मोन्यूक्लियर बम दो फेज में काम करता है। प्राइमरी (फिशन) और सेकेंडरी (फ्यूजन), प्राइमरी स्टेप में में प्लूटोनियम या यूरेनियम का विखंडन होता है, जो हाई टेम्प्रेचर पैदा करता है। सेकेंडरी स्टेप में ड्यूटेरियम और ट्राइटियम जैसे हल्के आइसोटोप्स का फ्यूजन करता है। इसके बाद चार हाइड्रोजन नाभिक हीलियम (हीलियम न्यूक्लियस) में बदलते हैं, जिससे भारी मात्रा में ऊर्जा निकली है।