Prayagraj Bulldozer Action: उत्तर प्रदेश में बुलडोजर एक्शन को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने सख्त रुख अपनाते हुए इसे असंवैधानिक करार दिया है। प्रयागराज में 2021 में एक वकील, एक प्रोफेसर और तीन महिलाओं के घरों को गिराए जाने के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को सरकार को फटकार लगाई।
Prayagraj Bulldozer Action: सुप्रीम कोर्ट ने इसे नागरिक अधिकारों का खुला उल्लंघन बताया और पांचों पीड़ितों को 10-10 लाख रुपये का मुआवजा देने का आदेश दिया।
याचिकाकर्ताओं की मानें तो प्रशासन ने बिना पर्याप्त नोटिस दिए 24 घंटे के भीतर ही उनके मकानों को ध्वस्त कर दिया। याचिकाकर्ताओं का कहना है कि 1 मार्च 2021 को नोटिस जारी किया गया था लेकिन उन्हें 6 मार्च को यह मिला और अगले ही दिन यानी 7 मार्च को उनके मकानों पर बुलडोजर चला दिया गया। मामले में वकील जुल्फिकार हैदर, प्रोफेसर अली अहमद और अन्य पीड़ितों ने पहले इलाहाबाद हाईकोर्ट में अपील की थी, लेकिन हाईकोर्ट ने उनकी याचिका खारिज कर दी। इसके बाद उन्होंने सुप्रीम कोर्ट का रुख किया, जहां अदालत ने यूपी सरकार की कार्रवाई पर कड़ी टिप्पणी की।
सुनवाई के दौरान जस्टिस उज्जल भुइयां ने कहा कि 'राइट टू शेल्टर' नाम की भी कोई चीज होती है और सरकार ने उचित प्रक्रिया का पालन नहीं किया। उन्होंने यूपी के अंबेडकर नगर में 24 मार्च को हुई एक घटना का भी जिक्र किया जिसमें अतिक्रमण विरोधी अभियान के दौरान झोपड़ियों पर बुलडोजर चलाया गया और एक 8 साल की बच्ची अपनी किताबें लेकर भागती नजर आई। यह तस्वीर सभी को झकझोर देने वाली थी।
राज्य सरकार की ओर से अटॉर्नी जनरल आर वेंकटरमणी ने कहा कि सरकार ने उचित प्रक्रिया का पालन किया और नोटिस भेजने के बाद ही कार्रवाई की। उन्होंने कहा कि बड़े पैमाने पर अवैध कब्जे हटाना सरकार के लिए आवश्यक था। जस्टिस अभय एस ओका ने इस पर असहमति जताई और पूछा कि नोटिस उचित तरीके से क्यों नहीं दिया गया? उन्होंने कहा कि नोटिस को केवल चिपकाने की बजाय कूरियर से भेजा जाना चाहिए था। बिना उचित सूचना के की गई यह कार्रवाई अन्यायपूर्ण और अमानवीय है।
पीड़ितों के वकील अभिमन्यु भंडारी ने सुप्रीम कोर्ट में दलील दी कि प्रशासन ने उनके मुवक्किलों की संपत्ति को गैंगस्टर अतीक अहमद की संपत्ति समझकर ध्वस्त कर दिया। उन्होंने कहा कि राज्य सरकार को अपनी गलती स्वीकार करनी चाहिए। हालांकि यूपी सरकार ने दावा किया कि याचिकाकर्ताओं को नोटिस दिया गया था और उचित समय दिया गया था।
मीडिया रिपोर्टस की मानें तो इससे पहले इलाहाबाद हाई कोर्ट ने राज्य सरकार के बयान को स्वीकार करते हुए याचिका खारिज कर दी थी। सरकार ने कहा था कि जिस भूमि पर मकान बने थे वह नजूल लैंड थी जिसकी लीज 1996 में समाप्त हो चुकी थी। इस आधार पर सरकार ने इसे अवैध कब्जा मानते हुए बुलडोजर कार्रवाई की थी।
सुप्रीम कोर्ट ने प्रयागराज विकास प्राधिकरण को आदेश दिया है कि 6 हफ्तों के भीतर पांचों पीड़ितों को 10-10 लाख रुपये का मुआवजा दिया जाए। कोर्ट ने स्पष्ट किया कि इस तरह की मनमानी कार्रवाई को भविष्य में किसी भी कीमत पर बर्दाश्त नहीं किया जाएगा।