Medical College: प्रदेश के निजी मेडिकल कॉलेजों में दूसरे राज्यों की तुलना में फीस कम होने के कारण मैनेजमेंट कोटे की 80 फीसदी सीटों पर बाहरी छात्रों का एडमिशन हो रहा है।
Medical College: प्रदेश के निजी मेडिकल कॉलेजों में दूसरे राज्यों की तुलना में फीस कम होने के कारण मैनेजमेंट कोटे की 80 फीसदी सीटों पर बाहरी छात्रों का एडमिशन हो रहा है। इस कोटे में ही स्थानीय छात्रों को प्रवेश देने की बाध्यता नहीं है। यही कारण है कि दूसरे राज्यों के छात्रों का आसानी से एडमिशन हो रहा है। प्रदेश में स्टेट व मैनेजमेंट कोटे की फीस भी समान है। इसलिए डोनेशन देने जैसी कोई बात भी नहीं है।
निजी मेडिकल कॉलेजों में 42.5 फीसदी सीटें मैनेजमेंट कोटे के लिए होती हैं। अगर किसी कॉलेज में एमबीबीएस की 150 सीटें हैं तो मैनेजमेंट कोटे की 64 सीटें आरक्षित होती है। इन्हीें सीटों पर दूसरे राज्यों के छात्रों को प्रवेश का मौका मिल रहा है।
‘पत्रिका’ की पड़ताल में पता चला है कि इसकी असल वजह कम फीस व प्रदेश के छात्रों का परफार्मेंस यानी नीट स्कोर कम होना है। जिस स्कोर पर प्रदेश में दूसरे राज्यों के छात्रों का प्रवेश हो रहा है, इसी स्कोर पर उनके राज्यों में एडमिशन मुश्किल है। इसलिए ये छात्र छत्तीसगढ़ आ जाते हैं। ऐसे छात्रों में मध्यप्रदेश के अलावा राजस्थान, महाराष्ट्र, ओडिशा राज्य शामिल हैं। राजस्थान में निजी कॉलेजों की फीस एक से डेढ़ करोड़ रुपए है। जबकि प्रदेश में सभी मद मिलाकर छात्रों को 65 लाख रुपए फीस देनी होती है।
पहले राउंड की आवंटन सूची में 498 के दो व 499 कट ऑफ वाले एक छात्र को निजी कॉलेजों में मैनेजमेंट की सीटें अलाट की गई है। इनके पास छत्तीसगढ़ का निवास प्रमाणपत्र नहीं है। ये केवल तीन उदाहरण नहीं है। ऐसे दो दर्जन से ज्यादा छात्र हैं, जिनके पास प्रदेश का डोमिसाइल नहीं है, उन्हें मैनेजमेंट कोटे की सीटें दी गई हैं।
जबकि इसी कट ऑफ में प्रदेश की यूआर कैटेगरी के छात्रों को सरकारी मेडिकल कॉलेजों में एमबीबीएस की सीटें मिली हैं। इन्हें स्टेट कोटे की सीटें नहीं दी जा सकती थीं, क्योंकि इसके लिए प्रदेश का मूल निवासी होना जरूरी है। कई बार आर्थिक रूप से कमजोर छात्र निजी कॉलेजों में न स्टेट और न ही मैनेजमेंट कोटे में एडमिशन ले पाता है। ऐसे में सीट खाली रहने पर दूसरे राउंड में भरी जाती है।
नेहरू मेडिकल कॉलेज में 186 आवंटित सीटों पर 139 छात्रों ने एडमिशन ले लिया है। 23 अगस्त तक प्रवेश की प्रक्रिया चलेगी। दूसरी ओर चार निजी मेडिकल कॉलेजों में प्रवेश की रफ्तार धीमी है। इन कॉलेजों में 10 से 12 छात्रों ने ही प्रवेश लिया है। दूसरे राउंड से निजी कॉलेजों में प्रवेश की गति बढ़ती है।
दरअसल पहले राउंड में दस्तावेजों का सत्यापन कराने के बाद प्रवेश लेने की बाध्यता नहीं रहती। इस कारण कई छात्र अच्छे कॉलेज की उम्मीद में पहले राउंड में प्रवेश नहीं लेते। दूसरे राउंड में प्रवेश लेते हैं, जबकि सरकारी कॉलेजों के लिए नियम अलग है। अगर किसी को सीट आवंटन हुई है तो उन्हें संबंधित कॉलेजों में प्रवेश लेना अनिवार्य है। ऐसा नहीं करने पर वह स्वत: ही पूरी काउंसलिंग प्रक्रिया से बाहर हो जाएगा।