CG Film: छालीवुड सिनेमा में अक्सर ये देखा जाता है कि फिल्मों में हीरो मार नहीं खाता है। पत्रिका ने इसे लेकर निर्माता-निर्देशक, अभिनेता, फाइट मास्टर से चर्चा कर उनकी राय जानी। जानिए क्या कहना है उनका..
CG Film: ताबीर हुसैन. आमतौर पर जितनी भी छत्तीसगढ़ी फिल्में बनी उसमें एक्शन पार्ट एक जरूरत मानी जाती है। एक तरह से कह सकते हैं कि जिस तरह बिना नमक के खाना नहीं बनता, वैसे ही फाइट बिना फिल्में ( CG Film ) अधूरी हैं। खास बात ये है कि जितने भी एक्शन सीन फिल्माए गए हैं उसमें हीरो को मार खाता नहीं दिखाया गया है।
CG Film: सीजी कमर्शियल सिनेमा का इतिहास देखें तो 24 साल में जितनी भी फिल्में आईं उसमें हीरो को मार खाना नहीं दिखाया गया है। अपवाद स्वरूप एकाध फिल्में होंगी जिसमें विलन किसी हीरो की कुटाई करता हो। हमने इसी मुद्दे पर इंडस्ट्री के कुछ लोगों से जाना कि हीरो मार क्यों नहीं खाता। कॉमन बात निकलकर आई कि वह हीरो है इसलिए मार नहीं खाता। इसी से तो उसका हीरोइज्म है।
फाइट मास्टर सतीश अन्ना ने कहा कि डायरेक्टर जैसा डिजाइन करता है हम भी वैसा सीन क्रिएट करते हैं। मैंने लगभग 50 छत्तीसगढ़ी फिल्में की हैं लेकिन उसमें एक-दो फिल्में ही होंगे जिसमें हीरो मार खाता है। मेरे छत्तीसगढ़ी कॅरियर में झन जाबे परदेस एकमात्र ऐसी फिल्म है जिसमें हीरो की खूब कुटाई हुई है। छत्तीसगढ़ी फिल्मों के हीरो मार खाना पसंद नहीं करते। कई बार सिचुएशन के हिसाब से हीरो को मार पड़ती है।
अभिनेता मन कुरैशी का कहना है कि जब हीरो मार खाता है तो पब्लिक ज्यादा अच्छे से जुड़ती है और सिम्पथी मिलती है। मैंने तो अपनी फिल्मों में खूब मार खाई है। मैं तो अपनी पहली ‘फिल्म बीए फस्र्ट ईयर’ में ही मार खाया था, दूसरी फिल्म ‘प्रेम सुमन’ में इतना मार खाया कि मार खाते-खाते मर गया। ‘आई लवयू’ में इतना मारे कि सिर पर ट्यूबलाइट फोड़ दिए।
अभिनेता अजय पटेल ने कहा कि मैंने जितनी भी फिल्में की सभी में मार खाया। क्योंकि हीरो मार खाते नहीं। ‘संघर्ष एक जंग’ में बॉडी के मामले में हीरो हर्ष चंद्रा और मैं दोनों टक्कर में हैं लेकिन विलन हूं इसलिए मार मुझे ही खानी पड़। मेरा दुर्भाग्य देखिए कि मैं पहली बार ‘झन जाबे परदेस’ में हीरो बना हूं लेकिन उसमें भी मार खा रहा हूं। हालांकि मन सर हैं जो मार खाने में सपोर्ट करते हैं।
निर्माता-निर्देशक, लेखक व गीतकार सतीश जैन का कहना है कि सीजी सिनेमा मेें ज्यादातर फाइट मास्टर साउथ के होते हैं और साउथ में हीरो मार नहीं खाता। वहां पर लोग हीरो को भगवान की तरह पूजते हैं। एनटीआर को कोई मार दे, ऑडियंस बर्दाश्त नहीं करेगी। ज्यादातर हिंदी की बड़ी फिल्मों में भी हीरो मार नहीं खाते। पूरी दुनिया में हीरो बेस्ड फिल्में होती हैं, ऑडियंस हीरो को मार खाते नहीं देखना चाहती।
निर्माता-निर्देशक मनोज वर्मा ने कहा कि वो हीरो है इसलिए मार नहीं खाता। उसका हीरोइज्म उसे मार खाने से रोकता है। आपको बड़ा हीरो बनाना है और मार खाता दिख जाए तो वह कमजोर हो जाएगा। ऐसी बहुत सी फिल्में होती हैं जिसमें शुरुआत में हीरो कमजोर होता है तो वह मार भी खाता है लेकिन जब आप हीरोइज्म वाली फिल्में बनाते हैं तो उसमें हीरो को मार खाते दिखाने पर पब्लिक शायद उतना मजा न ले क्योंकि फिल्म देखते समय जितने लडक़े बैठे रहते हैं वह अपने आप को हीरो समझते हैं और वो मार खाना कतई पसंद नहीं करेंगे।
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