CG News: पद्मश्री जागेश्वर यादव जो छत्तीसगढ़ में 'बिरहोर के भाई' के नाम से मशहूर हैं। वे रायपुर में आयोजित कार्यक्रम में पहुंचे। इस दौरान पत्रिका ने उनके संघर्ष को जाना...
CG News: ताबीर हुसैन. हाफ पैंट पहना हुआ एक उम्रदराज व्यक्ति। हाथ में पुराना सा की-पैड फोन। नंगे पांव। एकबारगी कोई सोचे कि शायद धोखे से पहुंच गया है। यहां बात हो रही है पद्मश्री जागेश्वर यादव की। डीडीयू ऑडिटोरियम में चल रहे ग्रीन समिट में उन्हें अतिथि के तौर पर आमंत्रित किया गया है। जो लोग उन्हें पहले कभी नहीं देखे या उनके बारे में नहीं जानते अचरज भरी नजरों से देख रहे थे।
Padma Shri Jageshwar Yadav: बातचीत में पत्रिका की ओर से सबसे पहला सवाल यही था कि आप इस तरह के आयोजनों में आते हैं तब भी चप्पल नहीं पहनते। इस पर उनका जवाब था कि मैंने कभी चप्पल पहनी ही नहीं तो अब क्यों पहनूं।
CG News: बगीचा ब्लॉक के भितघरा गांव में पहाड़ियों व जंगल के बीच रहने वाले जागेश्वर यादव साल 1989 से ही बिरहोर जनजाति के लिए काम कर रहे हैं। उन्होंने जशपुर जिले में एक आश्रम की स्थापना की है। वे बताते हैं, मेरे आदिवासी भाई जानवरों से नहीं इंसान से डरते थे। शेर के पंजे से नहीं इंसानी पैरों के निशान से डरते थे।
जंगल में रहते थे इसलिए शिक्षा, स्वास्थ्य और रोजगार से वंचित थे। मैंने उनके जीवन को बदलने का फैसला किया। इसके लिए मुझे उनके बीच रहना पड़ा। मैं चप्पल नहीं पहनता इसलिए उन्होंने मुझे स्वीकार कर लिया। मैंने उनकी भाषा और संस्कृति सीखी और शिक्षा की अलख जगाकर उन्हें स्कूलों में भेजने के लिए प्रोत्साहित किया। नतीजतन आज वे भी समाज की मुख्यधारा में शामिल हैं।
जागेश्वर यादव को इसी साल पद्मश्री सम्मान से नवाजा गया है। उन्होंने बताया कि सम्मान की सूचना मुझे मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय ने दी। रात के 9 बजे थे। फोन पर उन्होंने पूछा कि कहां हो? मैंने कहा और कहां रहूंगा। बिरहोर भाइयों के साथ हूं। इस पर सीएम ने कहा कि मुझे पता था कि तुम वहीं होगे। फिर उन्होंने बताया कि मेरा चयन पद्मश्री के लिए हो गया है।