Raipur News: डॉक्यूसाइन में मेरा प्रोजेक्ट इंसाइट परफॉर्मेंस टेस्टिंग फ्रेमवर्क को स्केलेबल बनाना था। मैंने टीम के साथ मिलकर सिस्टम को 100 के. से 1 एम. प्रोडक्शन वर्कलोड तक बढ़ाया।
Raipur News: जब ज्यादातर छात्र आईआईटी का नाम सुनकर सपने देखते हैं, तब दुर्ग के चित्रांश अग्रवाल ने कंप्यूटर साइंस के अपने जुनून के लिए आईआईटी की सीट छोड़ दी। उसी जुनून ने उन्हें वहां पहुंचाया जहां हर इंजीनियर पहुंचना चाहता है। एमएनसी डॉक्यूसाइन से 76 लाख वार्षिक पैकेज का ऑफर। आइए जानते हैं, कैसे शुरू हुआ यह सफर और किन मोड़ों से गुजरकर सफलता तक पहुंचा।
इंटर्नशिप और प्रोजेक्ट अनुभव के बारे में बताइए—डॉक्यूसाइन में आपने क्या काम किया?
डॉक्यूसाइन में मेरा प्रोजेक्ट इंसाइट परफॉर्मेंस टेस्टिंग फ्रेमवर्क को स्केलेबल बनाना था। मैंने टीम के साथ मिलकर सिस्टम को 100 के. से 1 एम. प्रोडक्शन वर्कलोड तक बढ़ाया। सबसे चुनौतीपूर्ण हिस्सा था 1 मिलियन कॉन्ट्रैक्ट्स के डेटा को बिना सर्वर क्रैश किए प्रोसेस करना।
मेरे मैंने अपनी पढ़ाई को तीन हिस्सों में बांटा। डीएसए प्रैक्टिस: लीट कोड पर रोजाना सवाल हल करता था। फंडामेंटल्स: ओएस, ओओपीएस, डीबीएमएस जैसे विषयों की लगातार रीविजन करता था। प्रोजेक्ट्स: प्रैक्टिकल एप्लीकेशन पर ध्यान दिया। इसके अलावा मैं फिटनेस और म्यूजिक से खुद को रिलैक्स रखता था।
एआई का उपयोग मुझे सबसे अधिक तब अनुभव हुआ जब मैं डॉक्यूसाइन में इंटर्नशिप कर रहा था। आजकल अधिकांश कंपनियां एआई आधारित प्लेटफ़ॉर्म का उपयोग करती हैं। खासकर पीआर रिव्यू, कोड क्वालिटी चेक और एज केस की पहचान जैसे कार्यों में। एआई इन प्रक्रियाओं को काफी आसान और तेज बना देता है। मुझे नहीं लगता कि एआई पूरी तरह टीचर्स को रिप्लेस कर सकता है, क्योंकि क्लासरूम की ऑफलाइन शिक्षा का अनुभव और प्रभाव अब भी अतुलनीय है। हां, शिक्षक एआई को एक एड-ऑन टूल के रूप में अपनाकर अपने पढ़ाने के तरीकों को और बेहतर बना सकते हैं, जिससे छात्रों को विषयों की गहराई से और स्पष्ट समझ मिल सके।
मेरे आदर्श विराट कोहली हैं। उनसे मैंने यह सीखा - ऐसे अभ्यास करो जैसे तुमने कभी जीता ही नहीं और ऐसा प्रदर्शन करो जैसे तुम कभी हारे ही नहीं। यही मंत्र मेरी तैयारी और इंटरव्यू के दौरान मेरे साथ रहा।
मेरे पिता संदीप अग्रवाल भी एनआईटी रायपुर के पूर्व छात्र हैं, अब भिलाई में आईएसओ कंसल्टेशन का काम करते हैं। मां प्रीति अग्रवाल ने हमेशा मानसिक मजबूती दी, और बहन संदली जो रिम्स रायपुर में एमबीबीएस कर रही हैं, वो मेरी मोटिवेशन हैं। उनका सहयोग मेरी रीढ़ की हड्डी जैसा रहा है।
निरंतरता बनाए रखें और कभी हार न मानें। डीएसए, कंप्यूटर फंडामेंटल्स और प्रोजेक्ट्स पर फोकस करें। और सबसे जरूरी—हैकाथॉन में भाग लें, क्योंकि वहीं असली सीख और आत्मविश्वास मिलता है। सपनों को बड़ा रखो, मेहनत को रोज का हिस्सा बनाओ, क्योंकि जब कोड आपका जुनून बन जाता है तो हर असफलता सफलता की तैयारी होती है।