जिले के भीम उपखंड क्षेत्र में अरावली की ऊँची-ऊँची पहाड़ियों के बीच स्थित बेलपना आशापुरा माताजी का मंदिर आस्था, परंपरा और चमत्कार का अनोखा संगम है।
राजसमंद. जिले के भीम उपखंड क्षेत्र में अरावली की ऊँची-ऊँची पहाड़ियों के बीच स्थित बेलपना आशापुरा माताजी का मंदिर आस्था, परंपरा और चमत्कार का अनोखा संगम है। जस्साखेड़ा गाँव से लगभग 7 किलोमीटर दूर और राष्ट्रीय राजमार्ग-58 के पास बसे राजस्व ग्राम बेलपना का यह मंदिर श्रद्धालुओं के लिए ‘बेलपना माताजी’ के नाम से प्रसिद्ध है।
लगभग 600 वर्ष पूर्व युद्धकाल में रावत राजपूत समाज के देवावत वंशज पितामह डूगरसिंह को देवी ने साक्षात् दर्शन देकर आशीर्वाद प्रदान किया था। तभी से यह मंदिर उनके वंशजों और आसपास के 25–30 गाँवों के लोगों के लिए आस्था का प्रमुख केंद्र बन गया। आज भी हर रविवार यहाँ बड़ी संख्या में भक्तजन मन्नतें माँगने पहुँचते हैं। परंपराओं के अनुसार, प्रथम पुत्र होने पर परिवार ‘जात’ चढ़ाता है। अविवाहित युवक यहाँ एक बार पूजा करते हैं, जबकि विवाह के बाद यह पूजा दो बार की जाती है।
भादवा सुदी अष्टमी पर यहाँ विशाल भजन संध्या और मेला आयोजित होता है, जिसमें हजारों श्रद्धालु उमड़ते हैं। नवरात्रों के दौरान प्रथम दिन ज्योत स्थापना होती है और नवमी पर विसर्जन के अवसर पर भारी भीड़ जुटती है। डूगरसिंह के वंशज गाँव-गाँव में फैले हुए हैं, जो नवरात्रा पर माता की ज्योत अपने घर ले जाते हैं।
मंदिर परिसर अरावली की गोद में बसा है और ‘मगरा मारवाड़’ की धरोहर माना जाता है। बरसात में यहाँ का वातावरण शिमला और कश्मीर की वादियों जैसा हो जाता है। हरियाली और वादियों का संगम इस स्थान को और भी आकर्षक बना देता है।
मंदिर की देखरेख और विस्तार के लिए आशापुरा माता मंदिर विकास समिति पिछले कुछ वर्षों से लगातार कार्यरत है। भामाशाहों के सहयोग से लगभग एक करोड़ रुपए जुटाकर भवन, श्रद्धालुओं के बैठने की व्यवस्था और लगभग 2000 लोगों की क्षमता वाला विशाल सभागार बनाया गया। समिति के अध्यक्ष रिटायर्ड प्रिंसिपल दुर्गसिंह चौहान और अन्य सदस्यों — किशनसिंह, महेंद्रसिंह, चापसिंह, मनोहरसिंह, ओमप्रकाशसिंह, दलपतसिंह, एडवोकेट नंदकिशोरसिंह चौहान और मोहनसिंह समेल — ने मिलकर मंदिर के स्वरूप को नया रूप दिया। सन् 2019 में पितामह डूगरसिंह की अश्वारूढ़ प्रतिमा तत्कालीन सांसद और वर्तमान उपमुख्यमंत्री दीया कुमारी के आतिथ्य में स्थापित की गई, जो मंदिर की शोभा बढ़ा रही है।
कार्तिक पूर्णिमा पर प्रतिवर्ष सामूहिक विवाह सम्मेलन आयोजित होता है, जिसमें 40–50 कन्याओं का विवाह सम्पन्न कराया जाता है। निर्धन और आर्थिक रूप से कमजोर परिवारों के लिए यह सम्मेलन सहारा बनता है। इस अवसर पर 15–20 हजार लोगों के लिए भोजन की भी व्यवस्था होती है।
कोविड काल में विवाह सम्मेलन प्रभावित हुआ, लेकिन 2022 से एकल भामाशाह परंपरा की शुरुआत हुई।
श्रद्धालुओं की गहरी आस्था के बावजूद सरकारी स्तर पर खास सहयोग नहीं मिला है। हाल ही में मंत्री अविनाश गहलोत ने 10 लाख रुपए की सड़क स्वीकृत करवाई और प्रधान कमला चौहान ने 4 लाख रुपए मैदान समतलीकरण के लिए दिए, लेकिन अन्य प्रतिनिधियों से अपेक्षित सहयोग नहीं मिला।
इसके विपरीत भामाशाहों ने मंदिर के विकास में निरंतर योगदान दिया है। पूर्व सरपंच पुष्पा चौहान और दिलीपसिंह सिरमा ने मेले पर 2000 तस्वीरें वितरित कीं ताकि हर घर में माता की पूजा हो सके। वहीं, मोहनसिंह समेल ने व्यापक प्रचार-प्रसार कर मंदिर की पहचान और बढ़ाई।
बेलपना आशापुरा माताजी का यह मंदिर केवल धार्मिक आस्था का केंद्र ही नहीं, बल्कि समाज सेवा, सामूहिकता और लोक परंपराओं का जीवंत उदाहरण भी है। यहाँ आकर भक्त न केवल चमत्कारी आशीर्वाद पाते हैं, बल्कि एक अद्भुत सांस्कृतिक और सामाजिक धरोहर का अनुभव भी करते हैं।