मातृकुण्डिया बांध के डूब क्षेत्र में आने वाले गांवों के प्रभावित किसानों का आंदोलन सोमवार को 20वें दिन भी जारी रहा।
रेलमगरा (राजसमंद). मातृकुण्डिया बांध के डूब क्षेत्र में आने वाले गांवों के प्रभावित किसानों का आंदोलन सोमवार को 20वें दिन भी जारी रहा। बांध गेटों पर डटे किसानों की भीड़ आज भी बड़ी संख्या में एकत्रित हुई और अपनी मांगों को लेकर लगातार नारेबाजी करती रही। किसानों का एक प्रतिनिधि मंडल राष्ट्रीय लोकतांत्रिक पार्टी (रालोपा) के नेता हनुमान बेनीवाल से मिला और उनसे बांध प्रभावित किसानों की समस्याओं पर विस्तृत चर्चा की। किसान संघर्ष समिति के अध्यक्ष माधवलाल जाट ने बताया कि समिति द्वारा गठित यह दल बेनीवाल से मुलाकात कर बांध से होने वाले नुकसान और किसानों की स्थिति पर ज्ञापन सौंपने पहुंचा था। ज्ञापन में किसानों ने बताया कि मातृकुण्डिया बांध के जलभराव से उनके खेत पूरी तरह डूब में चले गए हैं, जिससे रोज़ी-रोटी पर संकट खड़ा हो गया है। पशुओं के चारे की भी भारी समस्या उत्पन्न हो गई है। जाट के अनुसार, बेनीवाल ने किसानों को आश्वासन दिया कि वे शीघ्र ही धरना स्थल पर पहुंचने की तिथि तय कर इसकी जानकारी देंगे। इस मुलाकात के बाद किसान पुनः धरना स्थल पर लौट आए और आंदोलन जारी रखने का निर्णय लिया।
धरना स्थल पर मौजूद किसानों ने क्षेत्रीय राजनेताओं पर तीखे आरोप लगाते हुए कहा कि उन्होंने किसानों के हितों पर कुठाराघात किया है और अधिकारियों के साथ मिलीभगत कर बांध की भराव क्षमता तय की है। किसानों का कहना है कि बांध की भराव सीमा तय करते समय डूब क्षेत्र के प्रभावित किसानों के विचार तक नहीं पूछे गए। बिना परामर्श के बनाई गई इस नीति ने कई गांवों के सैकड़ों किसानों की आजीविका खतरे में डाल दी है।
इधर, बनास नदी में पानी की निरंतर आवक के चलते मातृकुण्डिया बांध का जल स्तर लगातार बढ़ रहा है। बांध का जल स्तर सोमवार को अपनी निर्धारित भराव क्षमता 22.6 फीट से बढ़कर करीब 24 फीट तक पहुंच गया। इस बढ़ते जलस्तर के कारण कई ऐसे खेत भी डूब में आने लगे हैं जो पहले प्रभावित क्षेत्र में नहीं थे। कई किसानों की खड़ी फसलें जलमग्न हो गई हैं, वहीं पशुओं के लिए चारे की गंभीर कमी भी सामने आ रही है।
जल स्तर को नियंत्रित करने के लिए सिंचाई विभाग ने रविवार देर रात बांध के कुल 52 गेटों में से एक गेट 15 सेंटीमीटर खोलकर पानी की निकासी शुरू की। हालांकि किसानों ने इसे “ऊंट के मुंह में जीरा” करार देते हुए कहा कि नदी में लगातार हो रही आवक की तुलना में यह निकासी बेहद कम है और इससे डूब क्षेत्र के हालात में कोई विशेष सुधार नहीं होगा।
किसानों ने स्पष्ट किया है कि जब तक उनकी दो प्रमुख मांगें नहीं मानी जातीं, आंदोलन जारी रहेगा —
हाल ही में संभागीय आयुक्त की अध्यक्षता में हुई समीक्षा बैठक को लेकर भी किसानों में आक्रोश है। किसानों का कहना है कि यह बैठक केवल “लीपा-पोती” थी और इसमें किसानों के वास्तविक दर्द या जमीनी हालात पर चर्चा नहीं हुई। किसान नेताओं ने कहा कि अधिकारियों और राजनीतिक प्रतिनिधियों ने बैठक में केवल औपचारिकता निभाई, जबकि डूब क्षेत्र के लोग लगातार अपनी आजीविका और आशियाने को लेकर संघर्ष कर रहे हैं।
धरना स्थल पर मौजूद किसानों ने यह भी कहा कि प्रशासन की चुप्पी और उदासीनता इस संकट को और गहरा रही है। प्रभावित किसानों के घरों में खाद्यान्न संकट शुरू हो गया है, कई जगह पशु पानी और चारे के अभाव में बीमार पड़ रहे हैं। किसानों का कहना है कि वे अब इस संघर्ष को पीछे नहीं हटने देंगे और जब तक न्याय नहीं मिलेगा, धरना जारी रहेगा।