तीन माह के लंबे इंतज़ार के बाद कुंभलगढ़ वन्यजीव अभयारण्य में आज से जंगल सफारी का रोमांच एक बार फिर लौट आया है।
कुंभलगढ़ (राजसमंद). तीन माह के लंबे इंतज़ार के बाद कुंभलगढ़ वन्यजीव अभयारण्य में आज से जंगल सफारी का रोमांच एक बार फिर लौट आया है। सामान्यतः सफारी सीजन हर साल 1 अक्टूबर से शुरू हो जाता है, लेकिन इस बार वन विभाग और जिप्सी संचालकों के बीच नियमों को लेकर मतभेद के कारण इसकी शुरुआत में 10 दिन की देरी हुई। अब जब सभी तैयारियां पूरी हो चुकी हैं, तो शुक्रवार से अभयारण्य के दरवाजे पर्यटकों के लिए आधिकारिक रूप से खोल दिए गए हैं।
कुंभलगढ़–रणकपुर क्षेत्र में सफारी संचालन के लिए कुल 65 जिप्सियां पंजीकृत हैं, मगर शुरुआती चरण में केवल 15 जिप्सियों को ही अनुमति दी गई है। जिप्सी संचालक संघ के अध्यक्ष अल्पेशअसावा के अनुसार, शुरुआती दिनों में यदि पर्यटकों की संख्या अधिक रही तो सीमित जिप्सियों की उपलब्धता के कारण असुविधा की संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता। असावा ने बताया कि “इस बार सीजन को लेकर उम्मीदें काफी ऊँची हैं। देश-विदेश से आने वाले पर्यटकों ने पहले ही बुकिंग कर रखी है। मॉनसून के बाद कुंभलगढ़ की प्राकृतिक सुंदरता अपने चरम पर होती है, इसलिए इस बार रिकार्ड संख्या में सैलानी आने की संभावना है।”
वन विभाग के अधिकारियों के अनुसार, एक सफारी ट्रिप के लिए जिप्सी किराया, गाइड शुल्क और विभागीय फीस सहित कुल खर्च लगभग 4600 रुपए तक बैठेगा। विभाग जल्द ही अपने ऑनलाइन पोर्टल पर शुल्क संरचना का विस्तृत विवरण जारी करेगा ताकि पर्यटक पहले से जानकारी लेकर बुकिंग कर सकें।
इस बार के मॉनसून ने कुंभलगढ़ नेशनल पार्क के लगभग 22 किलोमीटर लंबे सफारी मार्ग को बुरी तरह नुकसान पहुँचाया था। बारिश के कारण कई जगहों पर ट्रैक धंस गया था और कीचड़ भर जाने से जिप्सियों की आवाजाही मुश्किल हो गई थी। पिछले कुछ सप्ताहों से वन विभाग की टीम ने युद्धस्तर पर मरम्मत कार्य चलाया। अब पूरे मार्ग को समतल कर पथरीले हिस्सों पर मिट्टी और गिट्टी डालकर सुरक्षित बनाया गया है, ताकि पर्यटक बिना किसी जोखिम के सफारी का आनंद ले सकें।
मॉनसून के बाद कुंभलगढ़ का जंगल हरियाली की चादर में लिपट चुका है। नाले और झरने अभी भी बह रहे हैं, जिससे अभयारण्य का दृश्य अत्यंत आकर्षक हो गया है। सफारी के दौरान पर्यटक यहाँ चीतल, सांभर, नीलगाय, स्लॉथ भालू, जंगली बिल्ली, लोमड़ी, भेड़िया, तेंदुआ सहित कई दुर्लभ प्रजातियां देख सकते हैं।
इस समय मौसम भी सुहावना है, जिससे फोटो टूरिज्म और बर्ड वॉचिंग प्रेमियों के लिए यह सबसे उपयुक्त समय माना जा रहा है।
सफारी शुरू होने से कुंभलगढ़ और रणकपुर क्षेत्र के होटल, रिसॉर्ट, गेस्ट हाउस, गाइड और हस्तशिल्प विक्रेताओं में खुशी का माहौल है। स्थानीय व्यवसायियों का मानना है कि पिछले तीन महीनों से मॉनसून और प्रशासनिक देरी के कारण जो सुस्ती आई थी, अब वह दूर हो जाएगी।
राज्य पर्यटन विभाग ने भी कुंभलगढ़-रणकपुर बेल्ट को विशेष आकर्षण क्षेत्र के रूप में प्रमोट करने की तैयारी की है। विभाग के अधिकारियों ने बताया कि इस सीजन में इको-टूरिज्म, फोटो टूर और ग्रामीण सांस्कृतिक अनुभव जैसी नई गतिविधियों पर भी काम किया जा रहा है। इसका उद्देश्य केवल जंगल सफारी तक सीमित नहीं बल्कि पूरे क्षेत्र में पर्यटकों का ठहराव बढ़ाना है।
इस बार सफारी शुरू होने में देरी की मुख्य वजह वन विभाग और जिप्सी संचालकों के बीच किराया और शुल्क निर्धारण को लेकर मतभेद था। विभाग ने इस बार नई गाइडलाइन के तहत कुछ शर्तें जोड़ी थीं, जिनमें सफारी समय, चालक की योग्यता और पर्यावरणीय मानकों का पालन शामिल था। संचालकों ने इन नियमों को अत्यधिक कड़ा बताया और आपसी सहमति बनने में समय लगा। अब दोनों पक्षों के बीच समझौता हो गया है और संचालन शुरू हो गया है।
कुंभलगढ़ किला और रणकपुर जैन मंदिर पहले से ही राजस्थान के प्रमुख पर्यटन केंद्र हैं। इन दोनों के बीच स्थित यह वन्यजीव अभयारण्य अब धीरे-धीरे पर्यटकों का पसंदीदा आकर्षण बनता जा रहा है। सफारी के साथ-साथ ट्रेकिंग, हिल व्यू पॉइंट और जंगल वॉक जैसी गतिविधियां भी लोकप्रिय हो रही हैं। स्थानीय लोगों को उम्मीद है कि इस बार का सीजन न केवल रिकॉर्ड पर्यटक संख्या लाएगा बल्कि क्षेत्र की अर्थव्यवस्था को भी नई गति देगा।