रतलाम. शहर में विहार कर रहे जैन संत ने शनिवार आयोजित धर्मसभा में संसार में हो रही कई बीमारियों का कारण बताया, उन्होंने इन बीमारियों से कैसे बचना है बताते हुए कहा कि जैन मर्यादा से सम्पूर्ण विश्व निरोगी हो सकता है, क्योंकि मांसाहार एवं रात्रि भोज ही बीमारी को निमंत्रण देते हैं। इससे बच […]
रतलाम. शहर में विहार कर रहे जैन संत ने शनिवार आयोजित धर्मसभा में संसार में हो रही कई बीमारियों का कारण बताया, उन्होंने इन बीमारियों से कैसे बचना है बताते हुए कहा कि जैन मर्यादा से सम्पूर्ण विश्व निरोगी हो सकता है, क्योंकि मांसाहार एवं रात्रि भोज ही बीमारी को निमंत्रण देते हैं। इससे बच गए तो कई बीमारियों से बच सकते हैं। जिनका मन धर्म में लग गया उसे परमात्मा प्रिय है, देवता भी उसे नमस्कार करते है।
यह बात रतलाम के तेजानगर महावीर धाम में जैन संत महा शतावधानी गणि चंद्रप्रभचंद्र सागर ने कही कही। आचार्य नयचंद्रसागर सूरी आदि 14 संतों के साथ तेजानगर में स्थिरता है। संत ने कहा कि परमात्मा की पूजा नहीं वरन् उनकी दिव्यता की पूजा की जाती हैं। अनादि काल से आर्दशों की नहीं आचरण के कारण पूज्यनीय है। यह विचार गणि चंद्रप्रभ चंद्रसागर ने शनिवार को तेजानगर महावीर धाम में व्यक्त किया। इस मौके पर आचार्य नयचंद्रसागर सूरी आदि संतों के साथ धर्मालुजन उपस्थित थे।
तीन दिन अवधान शिक्षण देंगे संत
पारस भंडारी ने बताया कि श्रीसंघ अध्यक्ष अशोक चौटाला ने धर्मालुजनों का आभार माना। गणिवर्य डॉ. अजितचंद्र सागर एवं शिक्षकों ने 1, 2, 3 जनवरी को 6 से 10 वर्ष एवं 10 से 16 वर्ष आयु के बालक बालिकाओं में स्मरमशक्ति बढ़ाने के साथ आंखों पर पट्टी बांध कर रंग-पेपर-टाइम-गणित अवधान शिक्षण दिया जाएगा।
सुखी साधी प्रवृत्ति है
संत ने कहा कि परमात्मा इंद्र सभी को मोक्ष सुख प्राप्त हैं, परंतु सुखी नहीं, सुखी साधु प्रवृत्ति है। जिन्हे शुद्ध वृत्ति पात्रता की शुद्धि प्राप्त हैं, महामंत्र नवकार जिसमें गुण युक्त परमात्मा, सिद्ध, साधु को पद नाम से नमन करते हैं। जिसका मन धर्म में लग गया उसे परमात्मा प्रिय हैं।