Dussehra 2025: भगवान राम की वानर सेना ने लंका में रावण को हराकर विजय दिलाई। लेकिन इस जीत के बाद यह विशाल सेना कहां चली गई और फिर क्यों किसी युद्ध में शामिल नहीं हुई? पढ़ें वानर सेना से जुड़ी रोचक बातें।
Dussehra 2025: दशहरा का पावन पर्व देशभर में धूमधाम से मनाया जा रहा है। इस दिन बुराई पर अच्छाई की जीत हुई थी। इसी दिन भगवान श्रीराम ने रावण का वध किया और लंका पर विजय हासिल की। इस विजय में सबसे बड़ी भुमिका वानर सेना की रही थी। जिसे रावण ने कभी गंभीरता से नहीं लिया था। यह सेना ना तो प्रशिक्षित थी और ना ही युद्ध में पारंगत मिली थी। लेकिन श्रीराम और लक्ष्मण जी के मार्गदर्शन में इस सेना ने रावण की विशाल और शक्तिशाली सेना को मात दे दी थी। सवाल यह उठता है कि इस ऐतिहासिक युद्ध के बाद वानर सेना कहां गई और फिर क्यों कभी किसी युद्ध में हिस्सा नहीं लिया।
रामायण के अनुसार, जब श्रीराम को यह ज्ञात हुआ कि माता सीता को रावण ने लंका में कैद किया है, तो उन्होंने हनुमान और सुग्रीव की मदद से वानर सेना बनाई। यह सेना विभिन्न जनजातियों, राज्यों और वनवासी समूहों का संगठित रूप थी। इसमें किष्किंधा, कोल, भील, रीछ और अन्य वनवासी समाज शामिल थे। माना जाता है कि वानर सेना की संख्या करीब एक लाख के आसपास थी।
वाल्मीकि रामायण और उत्तरकांड के अनुसार, लंका विजय के बाद सुग्रीव को किष्किंधा का राजा और बालि के पुत्र अंगद को युवराज बनाया गया। सुग्रीव और अंगद ने वर्षों तक किष्किंधा पर शासन किया और वानर सेना उनके साथ रही। सेना के प्रमुख योद्धा नल-नील भी लंबे समय तक सुग्रीव के दरबार में मंत्री पद पर रहे। हालांकि, इसके बाद इस सेना ने कोई बड़ा युद्ध नहीं लड़ा।
किष्किंधा आज भी कर्नाटक के बेल्लारी जिले में तुंगभद्रा नदी के किनारे स्थित है। यहां प्राकृतिक गुफाएं और ऋष्यमूक पर्वत मौजूद हैं, जिनका उल्लेख रामायण में मिलता है। माना जाता है कि यहीं वानर साम्राज्य था और यहीं से सेना का संगठन हुआ।
लंका विजय के बाद भगवान श्रीराम अयोध्या लौट आए और उनका राज्याभिषेक हुआ। इस अवसर पर वानर सेना भी अयोध्या पहुंची, लेकिन इसके बाद अपने-अपने राज्यों और जनजातियों में लौट गई। श्रीराम ने लंका और किष्किंधा जैसे राज्यों को अयोध्या के अधीन करने से मना कर दिया। इसलिए यह सेना स्वतंत्र राज्यों में बंट गई और एक संगठित रूप में फिर कभी इकट्ठा नहीं हुई। बाद में जब भगवान राम ने युद्ध किए, तो उन्होंने अयोध्या की अपनी सेना का सहारा लिया।
वानर सेना भले ही लंका विजय के बाद इतिहास में कहीं खो गई, लेकिन उसका योगदान अमर है। यह सेना न केवल श्रीराम की विजय का कारण बनी, बल्कि यह उदाहरण भी पेश करती है कि संगठन और नेतृत्व से कमजोर से कमजोर सेना भी अजेय बन सकती है। दशहरे पर जब हम असत्य पर सत्य की जीत का जश्न मनाते हैं, तब वानर सेना की वीरता को भी याद करना जरूरी है।