Jagannath Puri Ekadashi : एकादशी के दिन व्रत रखने वाले से नाराज होते हैं भगवान जगन्नाथ! पुरी का 'उल्टा' नियम और इसके पीछे का गहरा रहस्य
Jagannath Puri Ekadashi : जगन्नाथपुरी में एकादशी का कोई महत्व नहीं है। यहां भगवान जगन्नाथ खुद एकादशी नहीं रखते, और किसी और को भी रखने नहीं देते। उल्टा, यहां तो एकादशी के दिन जमकर खाना चाहिए, और बाकी दिनों से भी ज्यादा। यही यहां का नियम है।
अगर कोई वहां एकादशी का उपवास करता है, तो ऐसा माना जाता है कि भगवान उसे पसंद नहीं करते। मानो कहते हों, “ये नियम बाहर जाकर निभाओ, यहां नहीं। यहां तो जितना चाहे, खा सकता है।” और इसके पीछे एक वजह भी है।
दरअसल, एकादशी के दिन आम तौर पर लोग अनाज नहीं खाते, क्योंकि अनाज इंसान खुद पकाता है। लेकिन जगन्नाथपुरी में जो महाप्रसाद मिलता है, उसे लक्ष्मी माता खुद बनाती हैं। उनके हाथ लगने के बाद वो साधारण अन्न नहीं रह जाता, वो प्रसाद बन जाता है। इसी वजह से, वहां महाप्रसाद खाने से एकादशी नहीं टूटती। यही वजह है कि एकादशी के दिन भी लोग वहां महाप्रसाद खाते हैं।
जगन्नाथ पुरी में एकादशी पर चावल खाने की मनाही क्यों नहीं है? या फिर, वहां के लोग एकादशी के दिन चावल खाते हैं तो उन्हें पाप क्यों नहीं लगता? असल में, यहां सिर्फ एकादशी पर ही नहीं, बल्कि व्रत के दौरान भी चावल खाखाया जाता है। इसकी वजह एक पुरानी कथा है।
कहानी ये है कि एक बार ब्रह्मा देव खुद भगवान जगन्नाथ का महाप्रसाद खाने पुरी पहुंचे। जब वो वहां पहुंचे, तो सारा महाप्रसाद खत्म हो चुका था। बस एक पत्तल में थोड़े से चावल बचे थे, जिन्हें एक कुत्ता चाट रहा था। ब्रह्मा देव का भक्ति भाव ऐसा था कि उन्होंने उसी कुत्ते के पास बैठकर वो बचे-खुचे चावल खाने शुरू कर दिए। खास बात ये थी कि ये घटना एकादशी के दिन हुई थी।
ब्रह्मा देव की ये भक्ति देखकर भगवान जगन्नाथ खुद प्रकट हुए। उन्होंने देखा कि ब्रह्मा देव बिना किसी भेदभाव के कुत्ते के साथ महाप्रसाद खा रहे हैं। इस पर भगवान बोले—आज से मेरे महाप्रसाद पर एकादशी का कोई नियम नहीं चलेगा।
तभी से जगन्नाथ पुरी में चाहे एकादशी हो या कोई और तिथि, भगवान जगन्नाथ के महाप्रसाद में कोई रोक-टोक नहीं है। इसी वजह से यहां उल्टी एकादशी मनाई जाती है और लोग चावल खाते हैं।