धर्म और अध्यात्म

जोरू का गुलाम कहते हैं.., पीड़ा बताने पर भक्त को क्यों मिली फटकार, पढ़िए प्रेमानंद महाराज ने क्या कहा

Premanand Maharaj On Love: प्रेम, करुणा, ईर्ष्या आदि स्थायी भाव हैं, हर व्यक्ति में होता ही है। लेकिन एक व्यक्ति के लिए पत्नी से प्यार ही समाज के लिए निंदा और हंसी का कारण बन गया। इस पर प्रेमानंद महाराज ने जो कहा उससे प्यार का मतलब समझ में आ जाएगा।

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May 24, 2025
premanand ji maharaj ke pravachan: प्यार पर प्रेमानंद महाराज के प्रवचन (Photo Credit: Twitter)

Premanand Maharaj Pravachan On Love: मथुरा वृंदावन के संत श्रीहित प्रेमानंद गोविंद शरण महाराज ने एकांतिक वार्तालाप में भक्त की दुविधा पर जवाब दिया। भक्त ने संत से बताया कि मैं पत्नी से अपार प्यार करता हूं, लेकिन लोग जोरू का गुलाम कहते हैं, जादू टोना कर दिया ऐसा कहते हैं, क्या करूं..


महाराज ने भक्त को लगाई फटकार

प्रेमानंद महाराज ने कहा कि इसकी जड़ तुम्हारी आसक्ति है, इसमें तुम्हें सुधार करना चाहिए। तुम्हारा प्रेम ही असली नहीं है, इसमें दिखावा है, तभी तो दूसरे लोग जान रहे हैं और उस पर चर्चा कर रहे हैं वर्ना तुम्हारे प्रेम को दूसरा कैसे जान सकता है, क्योंकि प्रेम तो हृदय का विषय है। साथ ही पति-पत्नी के विषय में तीसरे को प्रवेश नहीं देना चाहिए।


सच्ची बात यह है कि प्रेम महान से होता है, लघु से नहीं और महान तो परमात्मा है। ऐसे में प्यार उसी से करना चाहिए। तुम्हें पत्नी के हृदय में विराजमान परमात्मा से प्रेम करना चाहिए, और तुम पत्नी के रूप और शरीर से प्यार कर बैठे हो, यह भोग की निशानी है। यह आज नहीं तो कल रूलाएगा ही। यह भोग नेत्र का हो सकता है या जननेंद्रिय का और इसी कारण दुर्गति होती है। पत्नी या देह से प्यार असली हो भी नहीं सकता है, क्योंकि जब परमात्मा शरीर छोड़ देता है तो हम एक पल उसे पास रख नहीं पाते।


अच्छा विचार करो कि आज से नियम दे दें कि भोग से दूर रहोगे, बल्कि परमात्मा के विषय में विचार करोगे तो कहोगे कि फिर रह क्या गया। इसलिए इससे अलग हटकर पत्नी को परमात्मा मानकर प्यार करो तो भगवत प्राप्ति हो जाएगी।


पत्नी से प्यार से भी भगवत प्राप्ति संभव


प्रेमानंद महाराज ने कहा कि जो पति पत्नी से प्यार करे और पत्नी पति से प्यार करे, साथ में भगवान का नाम जप करे, गंदी बात न करे तो उसको भगवत प्राप्ति हो जाएगी।


पत्नी के प्रति आसक्ति को भी नया रूप दे सकते हो, जब उस भावना को इस तरह बदल दोगे कि भीतर से यह भाव आए कि पत्नी के रूप में भगवान आएं हैं तो कल्याण हो जाएगा।


सात्विक गुण भी परमात्म तत्व में बाधक क्यों


एक भक्त ने पूछा कि सेवा, परहित चिंतन आदि भी परमात्म तत्व में बाधक कहा जाता है, जबकि ये सात्विक गुण हैं ऐसा क्यों। इस पर संतश्री ने कहा कि जब दान देने में सुख मिलने लगे तो यह अहंकार को जन्म दे देता है, यही बंधनकारक है। यदि आप यह समझ लें कि भगवान की वस्तु आप उनको दे रहे हैं, कोई दान पुण्य नहीं कर रहे हैं इसका चिंतन नहीं करेंगे, वर्णन नहीं करेंगे तो परेशानी नहीं होगी।


करुणा में भी क्या दोष हो सकता है


करुणा अच्छी बात है पर ममता रहित करुणा करना चाहिए, तभी बंधनमुक्त होंगे। त्रिगुणातीत भाव में कल्याण है। ऐसी चीजें जिसे पाने से भजन में बाधा हो, उसे दूसरों को बांट देनी चाहिए, ताकि भजन में वृत्ति बने।

Updated on:
24 May 2025 10:24 am
Published on:
24 May 2025 07:01 am
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