Premanand Ji Maharaj : वृंदावन के संत प्रेमानंद जी महाराज ने कहा कि तिलक कोई दिखावा नहीं, बल्कि यह हमारी भक्ति और भगवान के प्रति प्रेम का प्रतीक है। उन्होंने समझाया कि तिलक, कंठी और माला हमारे आध्यात्मिक श्रृंगार और आराधना का हिस्सा हैं।
Premanand Ji Maharaj Tilak Meaning : वृंदावन के संत प्रेमानंद जी महाराज के प्रेरणादायक वीडियो आजकल सोशल मीडिया पर बहुत वायरल हो रहे हैं। हाल ही में एक भक्त ने उनसे पूछा महाराज जी, माथे पर तिलक लगाने का क्या महत्व है?”
इस पर प्रेमानंद जी महाराज ने बहुत सुंदर जवाब दिया। उन्होंने कहा तिलक कोई दिखावा नहीं है, यह हमारी आराधना है, हमारे भगवान के प्रति प्रेम और श्रद्धा का प्रतीक है। जैसे हम चंदन भगवान को अर्पित करते हैं, वैसे ही जब वही चंदन अपने माथे पर लगाते हैं, तो यह हमारे लिए पूजा बन जाती है, दिखावा नहीं।”
उन्होंने आगे कहा, हमारे गुरु ने हमें कंठी बांधी है, माला दी है, वेश (वस्त्र) दिया है। ये सब हमारी उपासना का हिस्सा हैं। अगर कोई कहे कि ‘दिखावा न हो इसलिए तिलक नहीं लगाएंगे या कंठी नहीं पहनेंगे’, तो फिर हमारी उपासना अधूरी हो जाएगी। ये सब हमारे भक्ति के चिन्ह हैं, भगवान से जुड़ाव का प्रतीक हैं।”
महाराज जी ने उदाहरण देकर समझाया जैसे एक सौभाग्यवती स्त्री अपने पति के लिए सोलह श्रृंगार करती है, वैसे ही एक भक्त अपने इष्टदेव के लिए तिलक और कंठी धारण करता है। यह हमारा आध्यात्मिक श्रृंगार है।”
उन्होंने यह भी कहा कि तिलक या माला का मजाक नहीं बनाना चाहिए। यह हमारे भगवान के प्रतीक हैं, जो हमें याद दिलाते हैं कि हम उनके दास हैं। लेकिन अगर हम तिलक या माला सिर्फ दिखावे के लिए करते हैं जैसे माला जपते समय सिर्फ दूसरों को दिखाने के लिए बात करते रहना तो वह सच्ची भक्ति नहीं है।”
महाराज जी ने अंत में कहा, भक्ति में बनावट या दिखावा नहीं होना चाहिए। अगर हम ध्यान में बैठे हैं तो केवल भगवान के लिए बैठें, किसी को दिखाने के लिए नहीं। सच्ची भक्ति वही है जो मन से, प्रेम से और निष्ठा से की जाए, न कि दूसरों को प्रभावित करने के लिए।”
भक्ति की अभिव्यक्ति के रूप में पवित्र प्रतीक: तिलक, कांति माला और माला केवल सजावटी नहीं हैं, बल्कि आध्यात्मिक अर्थ से ओतप्रोत हैं। ये गुरु द्वारा प्रदान किए जाते हैं और भक्त की अपने देवता के प्रति समर्पण और प्रेम का प्रतीक हैं। यह अनुष्ठान की वस्तुओं को केवल भौतिक वस्तुओं से ऊपर उठाकर उपासना के पवित्र प्रतीक बना देता है, जो भक्त और ईश्वर के बीच घनिष्ठ संबंध को दर्शाता है। यह समझ बाहरी प्रतीकों को आंतरिक भक्ति से जोड़कर धार्मिक अभ्यास की समझ को गहरा करती है।