Navratri Day 1, Maa Shailputri Vrat Katha: नवरात्रि की शुरुआत प्रतिपदा तिथि से होती है और इस दिन मां दुर्गा के प्रथम स्वरूप शैलपुत्री की पूजा-अर्चना की जाती है। शैलपुत्री की पौराणिक कथा भी बेहद ही रोचक है।
Navratri Day 1, Maa Shailputri Katha in Hindi: इस वर्ष शारदीय नवरात्रि की शुरुआत सोमवार, 22 अक्टूबर से हो रही है। नवरात्रि की शुरुआत प्रतिपदा तिथि से होती है, और इस दिन मां दुर्गा के प्रथम स्वरूप शैलपुत्री की पूजा-अर्चना की जाती है। ऐसा माना जाता है कि नवरात्र का पहला दिन आध्यात्मिक ऊर्जा को जगाने, आत्म-शुद्धि की ओर पहला कदम बढ़ाने और मां के आशीर्वाद से जीवन को सकारात्मक दिशा देने का श्रेष्ठ अवसर होता है।इस लेख में हम जानेंगे माता शैलपुत्री की पावन कथा, उनका महत्व, और क्यों इनकी पूजा से नवरात्रि की शुरुआत शुभ और फलदायी मानी जाती है।
माता शैलपुत्री को पर्वतराज हिमालय की पुत्री होने के कारण "शैलपुत्री" कहा जाता है। देवी का स्वरूप अत्यंत दिव्य है दाहिने हाथ में त्रिशूल और बाएं हाथ में कमल लिए हुए, वृषभ पर सवार माता भक्तों का कल्याण करती हैं। यह दिन शक्ति, संयम और श्रद्धा का प्रतीक है। माता शैलपुत्री का स्वरूप सौम्य, शांत और अत्यंत तेजस्वी है।
प्राचीन कथा के अनुसार, देवी शैलपुत्री का पूर्वजन्म भगवान शिव की अर्धांगिनी सती के रूप में हुआ था। प्रजापति दक्ष, जो सती के पिता थे, ने एक भव्य यज्ञ का आयोजन किया। यज्ञ में सभी देवी-देवताओं को आमंत्रण भेजा गया, लेकिन भगवान शिव को जानबूझकर निमंत्रित नहीं किया गया।
सती को जब यह बात पता चली तो भी वह पिता के यज्ञ में जाने की जिद पर अड़ गईं। शिवजी ने बिना बुलावे जाने को अनुचित बताया, लेकिन सती ने उनकी इच्छा के विरुद्ध यज्ञ में भाग लेने का निर्णय लिया।
जब वे पिता के घर पहुंचीं, तो वहां का वातावरण उनके लिए अपमान और तिरस्कार से भरा हुआ था। न तो बहनों ने सम्मान दिया और न ही प्रजापति दक्ष ने अपनी पुत्री का आदर किया। बल्कि भगवान शिव का अपमान भी वहां खुलेआम किया गया। यह अपमान सती सहन नहीं कर पाईं और क्रोध और वेदना में आकर उन्होंने यज्ञ की अग्नि में अपने प्राण त्याग दिए।
सती के देह त्याग के बाद भगवान शिव ने क्रोध में आकर पूरा यज्ञ ध्वस्त कर दिया। फिर सती ने पर्वतराज हिमालय के घर पुनर्जन्म लिया और शैलपुत्री के नाम से विख्यात हुईं।
शैलपुत्री को पार्वती के नाम से भी जाना जाता है और पुनर्जन्म के बाद उनका विवाह भी भगवान शिव से ही हुआ। काशी नगरी (वाराणसी) में मां शैलपुत्री का प्राचीन मंदिर स्थित है, जहां श्रद्धालु माता के दर्शन मात्र से मनोकामनाएं पूर्ण होने का विश्वास रखते हैं।
मान्यता है कि नवरात्रि के पहले दिन मां शैलपुत्री की पूजा करने से वैवाहिक जीवन की समस्याएं समाप्त होती हैं और दांपत्य जीवन में सुख-शांति आती है। वृषभ पर सवार होने के कारण इन्हें वृषारूढ़ा भी कहा जाता है।
भक्त जब श्रद्धा और भक्ति से मां शैलपुत्री की आराधना करते हैं, तो उन्हें शक्ति, संयम और जीवन में स्थिरता का वरदान प्राप्त होता है।