Inspirational Story Of School Lecturer Bina Singh: पति की मौत के आठ साल बाद उन्होंने अपने पैरों पर खड़े होने की सोच कर एक निजी प्राथमिक विद्यालय में पढ़ाने का फैसला लिया तो घर से ही विरोध शुरू हो गया।
Real Life Motivational Story: यदि मन में कुछ करने का जुनून हो तो तमाम चुनौतियों को मात देकर भी जिदंगी की उम्मीदों को फिर से संवारा जा सकता है। इसके लिए कई बार सामाजिक से लेकर पारिवारिक चुनौतियों से भी टकराना पड़ सकता लेकिन मन चट्टान की तरह मजबूत हो तो कोई लक्ष्य को हासिल करने से कोई नहीं रोक सकता है। कुछ इस तरह की संघर्षभरी कहानी है राजकीय बालिका उच्च माध्यमिक विद्यालय श्रीमाधोपुर की व्याख्याता बीना सिंह की।
बकौल बीना 1985 में महावीर सिंह शेखावत के साथ विवाह हुआ। उस समय वह केवल मैट्रिक पास थी। शादी के छह साल बाद 1991 में पति का निधन हो गया। पति की मौत के आठ साल बाद उन्होंने अपने पैरों पर खड़े होने की सोच कर एक निजी प्राथमिक विद्यालय में पढ़ाने का फैसला लिया तो घर से ही विरोध शुरू हो गया।
परिवार के लोगों ने कहा कि घर से बाहर निकलने पर दुनिया के कई तरह ताने सुनने पड़ेंगे और खेती-बाड़ी से ही जीवन गुजर जाएगा लेकिन मेरा भी लक्ष्य आत्मनिर्भर बनकर बच्चों को बेहतर शिक्षा दिलाने का था। इसके लिए लगभग 19 साल बाद फिर से पढ़ाई शुरू की।
बीना ने खुद के लिए शिक्षक का पेशा चुना। इसके लिए उन्होंने एक निजी विद्यालय में पढ़ाना भी शुरू कर दिया। इसके बाद स्टेट ओपन से बारहवीं पास की। वहीं घर पर रहकर यूजी की पढ़ाई शुरू कर दी।
महिला बाल विकास विभाग में कार्यरत होने के कारण बीना ने जहां स्वयं-पाठी से बीए किया तो बेटी सोनल ने नियमित बीए किया। इसके बाद बीएड करकर व्याख्याता भर्ती की तैयारी शुरू कर दी। पहले ही प्रयास में 2015 की व्याख्याता भर्ती में चयन भी हो गया।
बीना शेखावत की ओर से महिला एवं बाल विकास विभाग की मानदेय कर्मचारियों के अलावा वह सरकारी स्कूल के विद्यार्थियों का भी खुद के करियर की कहानी बताकर प्रोत्साहित कराती है।
उनका कहना है कि किताबी ज्ञान के साथ संघर्षों से तपना जरूरी है। क्योंकि बिना संघर्ष के लक्ष्य हासिल करना संभव नहीं है।
बीना सिंह का शुरुआत से सपना स्कूल व्याख्याता का था। इसके लिए उन्होंने नौकरी भी छोड़ी। उन्होंने बताया कि सबसे पहले महिला एवं बाल विकास विभाग में 2002 में ग्राम साथिन और 2006 में आंगनबाड़ी कार्यकर्ता की संविदा नौकरी भी मिली।
इसके बाद 2011 से 2015 तक तृतीय श्रेणी शिक्षक के पद पर भी सेवाएं दी। इससे पहले 2008 में स्कूल शिक्षा विभाग में प्रशिक्षु शिक्षक के पद पर भी चयन हो गया था। उनका कहना है कि पढ़ने की कोई उम्र नहीं होती जब आप चाहें तभी शिक्षा के जरिए करियर को आगे बढ़ा सकते है।