डिजिटल के दौर में यूं तो हर कार्य क्षेत्र, पुरानी कार्य पद्धतियों व तोर-तरीकों पर खासा असर पड़ा है, लेकिन कई ऐसे कार्य क्षेत्र हैं, जिन्हें डिजिटल प्रणाली ने लुप्त सा कर दिया है। इनमें से एक है डाकघर विभाग। जिसमें डिजिटल प्रणाली डाकिया का वजूद ही खत्म सा कर दिया है। मोबाइल और सोशल मीडिया का असर डाकघर के कामकाज पर ऐसा प्रभाव डाला कि चि_ी-पत्री का पहुंचाना ही लुप्त सा हो गया। चंद साल पहले जब मोबाइल नहीं थे तो डाक विभाग का काफी महत्व था।
अलवर. डिजिटल के दौर में यूं तो हर कार्य क्षेत्र, पुरानी कार्य पद्धतियों व तोर-तरीकों पर खासा असर पड़ा है, लेकिन कई ऐसे कार्य क्षेत्र हैं, जिन्हें डिजिटल प्रणाली ने लुप्त सा कर दिया है। इनमें से एक है डाकघर विभाग। जिसमें डिजिटल प्रणाली डाकिया का वजूद ही खत्म सा कर दिया है। मोबाइल और सोशल मीडिया का असर डाकघर के कामकाज पर ऐसा प्रभाव डाला कि चि_ी-पत्री का पहुंचाना ही लुप्त सा हो गया। चंद साल पहले जब मोबाइल नहीं थे तो डाक विभाग का काफी महत्व था। अपनों के संदेश के इंतजार में लोग पोस्टऑफिस जाते थे और डाकिया का इंतिजार किया करते थे।
शहरी हो या ग्रामीण अंचल चि_ी-पत्री के माध्यम से संदेशों का आदान-प्रदान किया जाता था। जिसमें पोस्टकार्ड, अंतरदेशी लिफाफा, तार आदि माध्यम होते थे। अब मोबाइल में व्हाटसएप, टेलीग्राम, फेसबुक, ट्वीटर, इंस्टाग्राम जैसे कई माध्यम हो गए, जिन पर एक क्लिक से संदेश ही नहीं फोटो से लेकर वीडियो तक पलक झपकते ही विश्व के किसी भी कौने तक पहुंचाया जा सकता है। हालांकि शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों में अभी भी डाकघर संचालित हैं, लेकिन यहां अब तार, पोस्टकार्ड व अंतरदेशीय पत्र कभी कभार ही देखने को मिलते हैं। इन डाकघरों में ज्यादातर बचत खाते, आरडी व सुकन्या सृद्धि योजना सहित बैंकीय प्रणाली का कामकाज रह गया है। ऐसे में शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों में जगह-जगह लगे लेटर बॉक्स भी जंग खा चुके हैं और कई जगहों पर यहां पक्षियों ने घोसले तक बना दिए है। मोबाइल युग से पहले गांवों में जब डाकिया चौपाल और गलियों से गुजरता था तो उसकी एक ही आवाज पर लोगों की भीड़ इक_ा हो जाती। सभी सरसरी निगाहों से अपनों के संदेशों का इंतजार करते थे। जिसका संदेश पहुंचता, वह खुशी से झूम उठता और जिसके नाम से कोई चि_ी नहीं आती तो वह मायूस सा हो जाता था।