मृतक कानसिंह नाथावत पेशे से हलवाई थे, जिनके दो बेटे हैं। बड़े बेटे रजत सिंह ने बताया कि जब चिकित्सकों ने अंगदान का प्रस्ताव रखा तो परिवार ने बिना देर किए सहमति दे दी।
उदयपुर। सबसे बड़ा दान- अंगदान। यह महज एक कहावत नहीं, बल्कि उदयपुर में हकीकत देखने को मिली है। मृत्यु के बाद भी किसी के जरिए जीवन बचाया जा सके, इसका जीवंत उदाहरण उदयपुर में सामने आया। यहां एक व्यक्ति का ब्रेन डेड होने पर उनके फेफड़ों के दान से दो मरीजों को नई जिंदगी मिलने जा रही है। उदयपुर के आरएनटी मेडिकल कॉलेज से ग्रीन कॉरिडोर बनाकर रविवार को उनके लंग्स हैदराबाद के किम्स हॉस्पिटल भेजे गए।
चित्तौड़गढ़ जिले के बेगूं निवासी 53 वर्षीय कानसिंह नाथावत का शनिवार देर रात निधन हो गया। उन्हें 14 दिसंबर को ब्रेन स्ट्रोक आने पर एमबी हॉस्पिटल में भर्ती कराया गया था। निधन होने पर अस्पताल प्रशासन ने परिजनों से अंगदान को लेकर चर्चा की। इस पर परिवार ने सहमति जताते हुए मानवता की मिसाल पेश की। हैदराबाद से आई विशेषज्ञ चिकित्सकों की टीम ने पुलिस सुरक्षा के बीच एम्बुलेंस से फेफड़े डबोक एयरपोर्ट पहुंचाए, जहां से चार्टर विमान के जरिए हैदराबाद रवाना किया गया।
मृतक कानसिंह नाथावत पेशे से हलवाई थे, जिनके दो बेटे हैं। बड़े बेटे रजत सिंह ने बताया कि जब चिकित्सकों ने अंगदान का प्रस्ताव रखा तो परिवार ने बिना देर किए सहमति दे दी। बोले कि पिता तो चले गए, लेकिन उनके अंगों से किन्हीं लोगों की जान बचती है तो हमारे लिए सबसे बड़े गर्व की बात है।
मृतक की पत्नी सुनीता देवी ने बताया कि उनके पिता का निधन 35 वर्ष की उम्र में ही हो गया था, वजह फेफड़े खराब होना थी। कहा कि मन में यही भाव आया कि अगर पति के फेफड़े किसी और की जान बचा सकते हैं तो इससे बेहतर क्या हो सकता है। हमेशा गर्व है कि वे आज भी किसी न किसी रूप में जिंदा हैं।
संस्थान में दूसरी बार फेफडे दान हुए है। इससे पहले जनवरी 2024 में भी ऐसा ही हुआ था। कॉलेज में ट्रांसप्लांट कोऑर्डिनेटर टीम है, जो आईसीयू में ब्रेन डेड मरीजों के परिजनों से लगातार संपर्क कर उन्हें काउंसलिंग देती है, लेकिन समाज में फैली भ्रांतियों के कारण लोग आज भी अंगदान से हिचकते हैं। अपील करता हूं कि लोग नेक कार्य को समझें और आगे आकर दूसरों की जिंदगी बचाने में योगदान दें।
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