उदयपुर

Rajasthan: मकान-दुकान नहीं राजस्थान में यहां बच्चों को रख रहे गिरवी, ‘20,000 में सालभर और 40,000 रुपए में हमेशा के लिए मिल जाते हैं बंधुआ’

Rajasthan News: पैसा चुकानेे के बाद बच्चों को प्रतिदिन 30-35 किमी तक भेड़ों के रेवड़ के साथ पैदल चला रहे हैं। वे उन्हें बंधुआ बाल मजदूर बनाकर शोषण कर रहे हैं। बच्चों को न भरपूर खाना मिलता और न आराम।

2 min read
Oct 02, 2025
उदयपुर बांसवाड़ा मार्ग पर बाल बंधुआ को छुड़वाती पुलिस और NGO कार्यकर्ता (फोटो: पत्रिका)

Children Mortagaged: आपने मकान-दुकान तो गिरवी रखते देखा होगा लेकिन कभी बच्चों को गिरवी रखते कभी देखा है। यह भयावह काम उदयपुर आदिवासी अंचल में बेरोकटोक हो रहा है। गरीब, लाचार परिवार आज भी 8 से 12 साल के बच्चों को 20 से 25 हजार में गड़रियों के पास एक साल के लिए गिरवी रख रहे हैं। वहीं अधिकतम 40-45 हजार रुपए में बच्चे बेच रहे हैं।

यह सौदेबाजी मारवाड़ के सिरोही पाली से आने वाले गड़रिये कर रहे हैं। पैसा चुकानेे के बाद बच्चों को प्रतिदिन 30-35 किमी तक भेड़ों के रेवड़ के साथ पैदल चला रहे हैं। वे उन्हें बंधुआ बाल मजदूर बनाकर शोषण कर रहे हैं। बच्चों को न भरपूर खाना मिलता और न आराम। ऐसे हालत में बच्चा बीमार हो जाए तो वे उन्हें वहीं छोड़ जाते हैं। कोई संस्था या पुलिस रोक कर पूछताछ करे तो ऐसा बर्ताव करते हैं जैसे उनका बच्चे से कोई लेना-देना ही नहीं।

ये भी पढ़ें

SI Paper Leak: चौंकाने वाला खुलासा… भाभी की जगह परीक्षा में बैठी थी ननद, खुद भी बनी थानेदार

सख्त कार्रवाई हो

बंधुआ बालश्रम केवल बच्चों के भविष्य के साथ खिलवाड़ नहीं है, बल्कि यह कानूनन भी गंभीर अपराध है। कुछ लोग लालच में इस कुप्रथा को जिंदा रखे हैं। आवश्यक है कि ऐसे तत्वों पर सख्त कार्रवाई हो।
डॉ. शैलेन्द्र पण्ड्या, बाल अधिकार विशेषज्ञ एवं पूर्व सदस्य, राजस्थान बाल आयोग

8 बच्चे मप्र, दो गुजरात से छुड़वाए

एक साल में मध्यप्रदेश की इंदौर पुलिस और इंदौर की संस्था ने गड़रियों से आठ बच्चे छुड़वाए। 8 से 12 साल के ये बच्चे उदयपुर संभाग के बांसवाड़ा, डूंगरपुर, प्रतापगढ़ और उदयपुर क्षेत्रों के थे। इंदौर पुलिस ने इन्हें सीडब्ल्यूसी के समक्ष पेश किया, इनके माता-पिता को पाबंद कर उन्हें सुपुर्द किया गया। इसी तरह दो बच्चों को गुजरात से और हाल ही में दो बच्चे प्रतापगढ़ और दो सलूम्बर क्षेत्र से छुड़वाए गए। यह बच्चे उदयपुर और सिरोही जिले के थे।

मुक्ति प्रमाण पत्र के बाद मिलती सहायता

बंधुआ बाल श्रमिक की श्रेणी में आने पर पुलिस और संस्था संबंधित बच्चे को मुक्त करवाने के लिए एडीएम से मुक्ति प्रमाण पत्र लेती है। यह प्रमाण पत्र न केवल बच्चे को बंधुआ मजदूरी से मुक्त घोषित करता है, बल्कि सरकारी सहायता और पुनर्वास योजनाओं का आधार भी बनता है। बच्चे को सरकार की ओर से 30 हजार रुपए अंतरिम राहत मिलती है। जिले में पुनर्वास के बाद शेष 2.70 लाख रुपए तक की सहायता भी दी जाती है।

  • सौदा राशि: 20-25 हजार में 1 साल के लिए बच्चों को रखते है गिरवी
  • आयु: 8-12 साल के बच्चे
  • रोजाना 30-35 किमी पैदल चलाते है बच्चों को
  • प्रभावित जिले: पाली, उदयपुर, डूंगरपुर, बांसवाड़ा, प्रतापगढ़

ऐसे करते हैं सौदा

  • गड़रिया परिजन को एडवांस राशि थमा देते हैं।
  • स्थानीय आदिवासी बिचौलिए इनसे संपर्क कर कमीशन लेते हैं।
  • इस सौदे को आम बोलचाल में हाली भी कहा जाता है।

ये भी पढ़ें

गुलाबी पर्ची का खेल: फिर कोई नहीं रोक सकता ओवरलोड पत्थर से भरे ट्रक! भजनलाल सरकार को लग रही करोड़ों की चपत

Updated on:
02 Oct 2025 10:58 am
Published on:
02 Oct 2025 10:57 am
Also Read
View All

अगली खबर